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राज्यसभा चुनाव 2016: रांची पुलिस को जांच में नहीं मिली कोई साक्ष्य, केस को असत्य करार देकर बंद करने की अनुशंसा

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Published : Mar 1, 2020, 1:50 AM IST

राज्यसभा चुनाव 2016 में दर्ज एफआईआर में रांची पुलिस को अनुसंधान में कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला है. रिपोर्ट में पुलिस ने लिखा है कि अभी तक के अनुसंधान में कांड के नामजद आरोपी एडीजी अनुराग गुप्ता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के तत्कालीन राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला है.

रांची पुलिस
Ranchi Police

रांची: राज्यसभा चुनाव 2016 में दर्ज एफआईआर में रांची पुलिस को अनुसंधान में कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला है. राज्य सरकार ने एडीजी अनुराग गुप्ता के निलंबन के बाद इस संबंध में रिपोर्ट की मांग रांची पुलिस से की थी.

केस का सुपरविजन

सरकार को भेजी रिपोर्ट में रांची पुलिस ने लिखा है कि अभी तक के अनुसंधान में कांड के नामजद आरोपी एडीजी अनुराग गुप्ता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के तत्कालीन राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला है. रांची के सिटी एसपी सौरभ की ओर से इस कांड का प्रगति प्रतिवेदन भी निकाला गया है, जिसमें जिक्र है कि केस का सुपरविजन डीएसपी बेड़ो की ओर से किया गया है. सुपरविजन में पाया गया है कि कांड को जिन धाराओं में दर्ज किया गया है, उन धाराओं में इसे असत्य पाया गया है.

ये भी पढ़ें-राज्यसभा में अल्पसंख्यक उम्मीदवार का कांग्रेस ने किया था वादा, अब क्या उसे पूरा करने के लिए होगी पहल?

पुलिस की रिपोर्ट

डीएसपी ने अपने अंतिम प्रतिवेदन में केस के अनुसंधानकर्ता को आदेश दिया है कि वह केस को असत्य करार देकर अनुशंसा भेजें. रांची पुलिस की रिपोर्ट में जिक्र है कि अनुसंधान के क्रम में ट्रांसक्रिप्ट में मोबाइल नंबर 9631464615 और 7050911065 के धारक अशोक राम का बयान लिया गया था. मामले में उसने बताया था कि फोन पर योगेंद्र साव से कोई बात नहीं हुई थी. अशोक के अनुसार जब अनुराग गुप्ता हजारीबाग एसपी थे तब योगेंद्र साव बतौर मुखबीर उनसे मिलते थे.

मानव तस्करी के खिलाफ काम

पुलिस ने दूसरे गवाह बैद्यनाथ कुमार का भी बयान लिया. बैद्यनाथ ने बताया है कि वह मानव तस्करी के खिलाफ काम करने के दौरान अनुराग गुप्ता के संपर्क में आए थे. तब अनुराग गुप्ता सीआईडी में आईजी थे. योगेंद्र साव का अनुराग गुप्ता के कार्यालय में आना-जाना था. साव खुद पर दर्ज आपराधिक मामलों की पैरवी करवाने का दबाव डालते थे. बैद्यनाथ के अनुसार जब अनुराग गुप्ता एडीजी स्पेशल ब्रांच में थे तब भी उनकी मौजूदगी में योगेंद्र साव वहां आए थे.

ये भी पढ़ें-रांची के हरमू मैदान में लगा 21वां हुनर हाट, 150 स्टॉल में दिखेगी देश के कला संस्कृति की झलक

मुकदमा वापस लेने की पैरवी

योगेंद्र ने मुकदमा वापस लेने की पैरवी सरकार से करने का आग्रह किया था तब एडीजी ने उन्हें समझाया था कि जब कोई नक्सली सरेंडर करता है तभी सरकार मुकदमे वापस लेती है. अन्यथा कोई प्रावधान नहीं है. तब योगेंद्र साव ने कहा कि एक दिन ऐसा काम करेंगे कि सरकार बाध्य होकर मुकदमा वापस ले लेगी. रिपोर्ट में आरोपी एडीजी और सीएम के तत्कालीन राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार के बयान का भी जिक्र है. दोनों ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि योगेंद्र साव अपने ऊपर दर्ज मामलों को वापस लेने की पैरवी करते थे.

अब तक नहीं मिल पाया है रिकॉर्डेंड ऑडियो फाइल और मूलयंत्र

रिपोर्ट के अनुसार रिकॉर्डिंग के मूलयंत्र के लिए कई बार योगेंद्र साव को नोटिस भेजा गया, लेकिन वे यह कह कर मूलयंत्र देने से इंकार करते रहे कि हाईकोर्ट का आदेश आने तक मूलयंत्र नहीं देंगे. पुलिस ने जेल जाकर उनका बयान लिया तो उन्होंने कहा कि मूलयंत्र कहां है उन्हें पता नहीं है. दुबारा बयान में उन्होंने मूलयंत्र एक हफ्ते में जमा कराने की बात कही थी, लेकिन पुलिस को सीडी में उपलब्ध रिकॉर्डेंड ऑडियो फाइल और मूलयंत्र अब तक नहीं मिल पाया है. कोर्ट के आदेश पर रिकार्डिंग को दुबारा एफएसएल भेजा गया है.

रांची: राज्यसभा चुनाव 2016 में दर्ज एफआईआर में रांची पुलिस को अनुसंधान में कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला है. राज्य सरकार ने एडीजी अनुराग गुप्ता के निलंबन के बाद इस संबंध में रिपोर्ट की मांग रांची पुलिस से की थी.

केस का सुपरविजन

सरकार को भेजी रिपोर्ट में रांची पुलिस ने लिखा है कि अभी तक के अनुसंधान में कांड के नामजद आरोपी एडीजी अनुराग गुप्ता और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के तत्कालीन राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिला है. रांची के सिटी एसपी सौरभ की ओर से इस कांड का प्रगति प्रतिवेदन भी निकाला गया है, जिसमें जिक्र है कि केस का सुपरविजन डीएसपी बेड़ो की ओर से किया गया है. सुपरविजन में पाया गया है कि कांड को जिन धाराओं में दर्ज किया गया है, उन धाराओं में इसे असत्य पाया गया है.

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पुलिस की रिपोर्ट

डीएसपी ने अपने अंतिम प्रतिवेदन में केस के अनुसंधानकर्ता को आदेश दिया है कि वह केस को असत्य करार देकर अनुशंसा भेजें. रांची पुलिस की रिपोर्ट में जिक्र है कि अनुसंधान के क्रम में ट्रांसक्रिप्ट में मोबाइल नंबर 9631464615 और 7050911065 के धारक अशोक राम का बयान लिया गया था. मामले में उसने बताया था कि फोन पर योगेंद्र साव से कोई बात नहीं हुई थी. अशोक के अनुसार जब अनुराग गुप्ता हजारीबाग एसपी थे तब योगेंद्र साव बतौर मुखबीर उनसे मिलते थे.

मानव तस्करी के खिलाफ काम

पुलिस ने दूसरे गवाह बैद्यनाथ कुमार का भी बयान लिया. बैद्यनाथ ने बताया है कि वह मानव तस्करी के खिलाफ काम करने के दौरान अनुराग गुप्ता के संपर्क में आए थे. तब अनुराग गुप्ता सीआईडी में आईजी थे. योगेंद्र साव का अनुराग गुप्ता के कार्यालय में आना-जाना था. साव खुद पर दर्ज आपराधिक मामलों की पैरवी करवाने का दबाव डालते थे. बैद्यनाथ के अनुसार जब अनुराग गुप्ता एडीजी स्पेशल ब्रांच में थे तब भी उनकी मौजूदगी में योगेंद्र साव वहां आए थे.

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मुकदमा वापस लेने की पैरवी

योगेंद्र ने मुकदमा वापस लेने की पैरवी सरकार से करने का आग्रह किया था तब एडीजी ने उन्हें समझाया था कि जब कोई नक्सली सरेंडर करता है तभी सरकार मुकदमे वापस लेती है. अन्यथा कोई प्रावधान नहीं है. तब योगेंद्र साव ने कहा कि एक दिन ऐसा काम करेंगे कि सरकार बाध्य होकर मुकदमा वापस ले लेगी. रिपोर्ट में आरोपी एडीजी और सीएम के तत्कालीन राजनीतिक सलाहकार अजय कुमार के बयान का भी जिक्र है. दोनों ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि योगेंद्र साव अपने ऊपर दर्ज मामलों को वापस लेने की पैरवी करते थे.

अब तक नहीं मिल पाया है रिकॉर्डेंड ऑडियो फाइल और मूलयंत्र

रिपोर्ट के अनुसार रिकॉर्डिंग के मूलयंत्र के लिए कई बार योगेंद्र साव को नोटिस भेजा गया, लेकिन वे यह कह कर मूलयंत्र देने से इंकार करते रहे कि हाईकोर्ट का आदेश आने तक मूलयंत्र नहीं देंगे. पुलिस ने जेल जाकर उनका बयान लिया तो उन्होंने कहा कि मूलयंत्र कहां है उन्हें पता नहीं है. दुबारा बयान में उन्होंने मूलयंत्र एक हफ्ते में जमा कराने की बात कही थी, लेकिन पुलिस को सीडी में उपलब्ध रिकॉर्डेंड ऑडियो फाइल और मूलयंत्र अब तक नहीं मिल पाया है. कोर्ट के आदेश पर रिकार्डिंग को दुबारा एफएसएल भेजा गया है.

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