रांची/दिल्ली: झारखंड पर प्रकृति ने असीम कृपा बरसाई है. यहां के घने जंगल, पहाड़ और झरने पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. वहीं रांची से करीब 65 किलोमीटर दूर एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए बसाया गया मैक्लुसकीगंज खूबसूरत वादियों और सुनहरे मौसम की वजह से पूरे देश में विख्यात है. इसको मिनी इंग्लैंड भी कहा जाता है. अब इसी मैक्लुस्कीगंज ने पर्यटन के मानचित्र पर झारखंड का नाम रौशन किया है. विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित कार्यक्रम के दौरान मैक्लुसकीगंज को सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक चुना गया है. झारखंड के पर्यटन विभाग के संयुक्त सचिव मोइनुद्दी खान ने इस पुरस्कार को रिसिव किया.
क्यों मशहूर है मैक्लुसकीगंज, कैसे मिला यह नाम: कोलकाता के एंग्लो इंडियन समुदाय के एर्नेस्ट टिमोथी मैक्लुस्की के नाम पर इस जगह को मैक्लुसकीगंज नाम मिला. अर्नेस्ट टिमोथी के पिता आयरलैंड के थे जबकि उनकी मां भारतीय थीं. अर्नेस्ट एक बड़े व्यवसायी थे. उनको यह इलाका आयरलैंड की याद दिलाता था. इसी को ध्यान में रखकर उन्होंने 1933 में कोलोनाइजेशन सोसायटी के नाम से एक कोऑपरेटिव बनाई थी. इसके लिए उन्होंने प्लान तैयार कर रातु के तत्कालीन राजा से 10 हजार एकड़ जमीन लीज पर ली थी. इसके बाद 20 हजार एंग्लो इंडियन को कोऑपरेटिन का शेयर खरीदने के बदले लैंड देने के लिए आमंत्रित किया था. उनके इस आकर्षक प्रस्ताव पर एंग्लो इंडियन समुदाय से जुड़े 250 परिवार साल 1939 में यहां आकर बसे थे. इन परिवारों ने 10 हजार एकड़ में से 6,800 एकड़ जमीन खरीदी थी. शेष जमीन गैरमजरूआ की श्रेणी में आ गई जिसे वन विभाग ने अधिगृहित कर लिया. उस दौर में एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों ने स्लोप वाले आकर्षक घर और सुंदर गार्डेन बनाए थे.
यहां गर्मी में भी सर्दी का एहसास होता है. यह इलाका प्राकृतिक खूबसूरती से भरा पड़ा है. 1935 में अर्नेस्ट टिमोथी मैक्लुस्की के निधन पर लापरा सेटलमेंट के तहत इस इलाके को मैक्लुसकीगंज नाम मिला. लेकिन समय के साथ संसाधनों की कमी की वजह से एंग्लो इंडियन परिवार यहां से शिफ्ट होते चले गये. ज्यादातर लोगों ने अपने नौकरों को अपने बंग्ले दे दिए. वहीं कुछ की जमीन हड़प ली गई. अब यहां के जर्जर हो चुके बंग्ले एंग्लों इंडियन की याद दिलाते हैं. हालांकि अभी भी यूरोप समेत विश्व के कई जगहों से लोग यहां घूमने आते हैं. यहां कई गेस्ट हाउस बने हुए हैं. मैक्लुस्कीगंज में अक्सर फिल्म की शूटिंग भी होती रहती है. लेकिन सच यह है कि यहां आने पर अब मायूसी ही हाथ लगती है. इसके बावजूद इसका आकर्षण बरकरार है. एंग्लो इंडियन परिवार से जुड़े कुछ लोग अभी भी हैं लेकिन उनकी माली हालत बेहद खराब है. खास बात है कि उन परिवार में आज भी अंग्रेजी भाषा का ही चलन है.
विश्व पर्यटन दिवस पर प्रगति मैदान में ट्रैवल फॉर लाइफ कार्यक्रम का आयोजन हुआ. कार्यक्रम में केंद्रीय पर्यटन, संस्कृति और विकास मंत्री जी. किशन रेड्डी ने अपने संबोधन में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दिया. इस दौरान रांची जिला पर्यटन के नोडल अधिकारी शिवेंद्र कुमार सिंह और एंग्लो इंडियन समुदाय की ओर से एशले गोम्स मौजूद थे. विभागीय अधिकारियों ने उम्मीद जतायी है कि इस पुरस्कार से मैक्लुस्कीगंज में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.