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Ramgarh By Election: रामगढ़ उपचुनाव में जीत सोरेन परिवार के लिए क्याें है इतना अहम, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

रामगढ़ उपचुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है. एनडीए और यूपीए ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है. खुद सूबे के मुखिया हेमंत सोरेन ने चुनाव प्रचार में मोर्चा संभाल लिया है. दोनों तरफ से जीत के दावे भी किए जा रहे हैं. लेकिन भविष्य के गर्त में क्या है यह तो दो मार्च को ही पता चला पाएगा. उपचुनाव के लिए मतदान 27 फरवरी को होगा.

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Ramgarh By Election Important For Soren Family
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Published : Feb 19, 2023, 7:45 PM IST

Updated : Feb 19, 2023, 8:23 PM IST

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रांचीः कांग्रेस विधायक ममता देवी के सजायाफ्ता होने से खाली हुई रामगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. 27 फरवरी को रामगढ़ की जनता उपचुनाव वोट करेगी. लिहाजा एक ओर जहां भाजपा और आजसू के नेताओं ने अपनी सारी ताकत एनडीए उम्मीदवार सुनीता चौधरी को जीत दिलाने के लिए झोंक दी है, वहीं दूसरी ओर सत्ताधारी दल के नेताओं के साथ-साथ अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी मोर्चा संभाल लिया है. रविवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रामगढ़ में चुनाव सभाएं कर रहे हैं. सवाल यह है कि रामगढ़ एक उपचुनाव भर है या इसके नतीजे राज्य की राजनीति को प्रभावित करेंगे. कैसे कांग्रेस के साथ-साथ यह उपचुनाव सोरेन परिवार खासकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए भी बेहद अहम है.

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क्यों सोरेन परिवार के लिए बेहद खास है रामगढ़ विधानसभा का उपचुनाव: रामगढ़ में आजसू-भाजपा गठबंधन बेहद मजबूत रहा है. 2019 में रघुवर दास की सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी और आजसू-भाजपा के अलग-अलग चुनाव लड़ने का नतीजा हुआ कि कांग्रेस उम्मीदवार ममता देवी की जीत रामगढ़ से हुई थी. चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन के लिए अब रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव सिर्फ उपचुनाव भर नहीं है, यह उनके लिए साख की लड़ाई है. इस चुनाव के नतीजे से भले ही सरकार के बनने-बिगड़ने पर कोई असर नहीं पड़ता हो, लेकिन रामगढ़ का मैसेज राज्य की राजनीति में 2024 की चुनावी राजनीति को प्रभावित करेगा. अगर इस उपचुनाव में एनडीए की ओर से आजसू प्रत्याशी सुनीता चौधरी की जीत होती है तो भाजपा यह कहने में देर नहीं करेगी कि सत्ता में रहकर भी हेमंत सोरेन अपने पैतृक क्षेत्र का किला नहीं बचा सकें.

भाजपा नेता ने कहा-महागठबंधन के नेता संभावित पराजय से सहमे हैंः इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा कहते भी हैं कि रामगढ़ उपचुनाव एनडीए पूरी गंभीरता से लड़ रहा है, तो महागठबंधन के नेता संभावित पराजय से सहमे हुए हैं. यही वजह है कि अब मुख्यमंत्री को मोर्चा संभालना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन भी रामगढ़ में कांग्रेस उम्मीदवार को जीत नहीं दिलवा सकते, क्योंकि पिछले छह महीने में भ्रष्टाचार सहित कई आरोपों के घेरे में मुख्यमंत्री खुद हैं. प्रदीप सिन्हा ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और सोरेन परिवार के लिए रामगढ़ इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि यहां की हार से राज्य भर में संदेश जाएगा कि मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन अपने पैतृक इलाके की सीट भी महागठबंधन की झोली में नहीं डाल सकें. भाजपा नेता ने कहा कि इसका असर महागठबंधन की एकता पर भी पड़ेगा. यहां यह बताना जरूरी है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भले ही राजनीति संथाल परगना इलाके से करते रहे हों, लेकिन उनका पैतृक गांव नेमरा रामगढ़ जिले के गोला के पास है.
भाजपा दिवा स्वप्न न देखें, रामगढ़ में जीत रही है कांग्रेस-झामुमो: वहीं मुख्यमंत्री के पैतृक गांव से रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव को जोड़कर देखने को झारखंड मुक्ति मोर्चा भाजपा की एक रणनीतिक चाल बता रही है. इस संबंध में झामुमो के केंद्रीय कमेटी के सदस्य और प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते हैं कि अगर पैतृक गांव ही जीत-हार का पैमाना होता है तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के हिमाचल इलाके में कैसे भाजपा की हार हो गई. झामुमो नेता ने कहा कि कोई अगर-मगर की बात ही नहीं है. हेमंत सोरेन की लोकप्रियता और उनकी सरकार में हुए काम की वजह से न सिर्फ रामगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में मुख्यमंत्री के पक्ष में हवा चल रही है. हेमंत सोरेन की लोकप्रियता की वजह से महागठबंधन की जीत तय है.

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रामगढ़ की जीत-हार सभी के लिए कुछ संदेश देनेवाला होगा: झारखंड की राजनीति को नजदीक से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार कहते हैं कि रामगढ़ का उपचुनाव काफी कांटे का होगा. यहां के नतीजे एक ओर जहां महागठबंधन सरकार के लिए संदेश भरा होगा तो दूसरी ओर एनडीए के लिए भी. अगर भाजपा-आजसू महागठबंधन की हार होती है तो इसका अर्थ यह निकाला जाएगा कि 2019 के विधानसभा उपचुनाव में अलग-अलग लड़ी पार्टियां आजसू और भाजपा के नेताओं ने हाथ तो मिला लिया है, लेकिन जमीन पर कार्यकर्ताओं के दिल अभी नहीं मिले हैं. इसके लिए काम करना होगा. इसी तरह अगर कांग्रेस उम्मीदवार की हार होती है तो पहला असर यह होगा कि कांग्रेस के अंदर प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के खिलाफ गुटबाजी तेज होगी. महागठबंधन के नेताओं को यह सोचना होगा कि जिन मुद्दों को लेकर वह 2023 रामगढ़ उपचुनाव में गए थे. वहीं मुद्दे एनडीए को हराने के लिए काफी होंगे या बचे हुए दो वर्षों में कुछ और करने की जरूरत है. वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि उपचुनाव में जीत का रिकॉर्ड कायम रहे, ताकि जनता में यह संदेश जाए कि राज्य में झामुमो-कांग्रेस और राजद का महागठबंधन अजेय है. इस महागठबंधन के साथ सामाजिक समीकरण की काट भाजपा या एनडीए के पास नहीं है.

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रांचीः कांग्रेस विधायक ममता देवी के सजायाफ्ता होने से खाली हुई रामगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है. 27 फरवरी को रामगढ़ की जनता उपचुनाव वोट करेगी. लिहाजा एक ओर जहां भाजपा और आजसू के नेताओं ने अपनी सारी ताकत एनडीए उम्मीदवार सुनीता चौधरी को जीत दिलाने के लिए झोंक दी है, वहीं दूसरी ओर सत्ताधारी दल के नेताओं के साथ-साथ अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी मोर्चा संभाल लिया है. रविवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रामगढ़ में चुनाव सभाएं कर रहे हैं. सवाल यह है कि रामगढ़ एक उपचुनाव भर है या इसके नतीजे राज्य की राजनीति को प्रभावित करेंगे. कैसे कांग्रेस के साथ-साथ यह उपचुनाव सोरेन परिवार खासकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए भी बेहद अहम है.

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क्यों सोरेन परिवार के लिए बेहद खास है रामगढ़ विधानसभा का उपचुनाव: रामगढ़ में आजसू-भाजपा गठबंधन बेहद मजबूत रहा है. 2019 में रघुवर दास की सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी और आजसू-भाजपा के अलग-अलग चुनाव लड़ने का नतीजा हुआ कि कांग्रेस उम्मीदवार ममता देवी की जीत रामगढ़ से हुई थी. चुनाव के बाद महागठबंधन की सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन के लिए अब रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव सिर्फ उपचुनाव भर नहीं है, यह उनके लिए साख की लड़ाई है. इस चुनाव के नतीजे से भले ही सरकार के बनने-बिगड़ने पर कोई असर नहीं पड़ता हो, लेकिन रामगढ़ का मैसेज राज्य की राजनीति में 2024 की चुनावी राजनीति को प्रभावित करेगा. अगर इस उपचुनाव में एनडीए की ओर से आजसू प्रत्याशी सुनीता चौधरी की जीत होती है तो भाजपा यह कहने में देर नहीं करेगी कि सत्ता में रहकर भी हेमंत सोरेन अपने पैतृक क्षेत्र का किला नहीं बचा सकें.

भाजपा नेता ने कहा-महागठबंधन के नेता संभावित पराजय से सहमे हैंः इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा कहते भी हैं कि रामगढ़ उपचुनाव एनडीए पूरी गंभीरता से लड़ रहा है, तो महागठबंधन के नेता संभावित पराजय से सहमे हुए हैं. यही वजह है कि अब मुख्यमंत्री को मोर्चा संभालना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि हेमंत सोरेन भी रामगढ़ में कांग्रेस उम्मीदवार को जीत नहीं दिलवा सकते, क्योंकि पिछले छह महीने में भ्रष्टाचार सहित कई आरोपों के घेरे में मुख्यमंत्री खुद हैं. प्रदीप सिन्हा ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और सोरेन परिवार के लिए रामगढ़ इस लिए भी महत्वपूर्ण है कि यहां की हार से राज्य भर में संदेश जाएगा कि मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन अपने पैतृक इलाके की सीट भी महागठबंधन की झोली में नहीं डाल सकें. भाजपा नेता ने कहा कि इसका असर महागठबंधन की एकता पर भी पड़ेगा. यहां यह बताना जरूरी है कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन भले ही राजनीति संथाल परगना इलाके से करते रहे हों, लेकिन उनका पैतृक गांव नेमरा रामगढ़ जिले के गोला के पास है.
भाजपा दिवा स्वप्न न देखें, रामगढ़ में जीत रही है कांग्रेस-झामुमो: वहीं मुख्यमंत्री के पैतृक गांव से रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव को जोड़कर देखने को झारखंड मुक्ति मोर्चा भाजपा की एक रणनीतिक चाल बता रही है. इस संबंध में झामुमो के केंद्रीय कमेटी के सदस्य और प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते हैं कि अगर पैतृक गांव ही जीत-हार का पैमाना होता है तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के हिमाचल इलाके में कैसे भाजपा की हार हो गई. झामुमो नेता ने कहा कि कोई अगर-मगर की बात ही नहीं है. हेमंत सोरेन की लोकप्रियता और उनकी सरकार में हुए काम की वजह से न सिर्फ रामगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में मुख्यमंत्री के पक्ष में हवा चल रही है. हेमंत सोरेन की लोकप्रियता की वजह से महागठबंधन की जीत तय है.

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रामगढ़ की जीत-हार सभी के लिए कुछ संदेश देनेवाला होगा: झारखंड की राजनीति को नजदीक से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार कहते हैं कि रामगढ़ का उपचुनाव काफी कांटे का होगा. यहां के नतीजे एक ओर जहां महागठबंधन सरकार के लिए संदेश भरा होगा तो दूसरी ओर एनडीए के लिए भी. अगर भाजपा-आजसू महागठबंधन की हार होती है तो इसका अर्थ यह निकाला जाएगा कि 2019 के विधानसभा उपचुनाव में अलग-अलग लड़ी पार्टियां आजसू और भाजपा के नेताओं ने हाथ तो मिला लिया है, लेकिन जमीन पर कार्यकर्ताओं के दिल अभी नहीं मिले हैं. इसके लिए काम करना होगा. इसी तरह अगर कांग्रेस उम्मीदवार की हार होती है तो पहला असर यह होगा कि कांग्रेस के अंदर प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के खिलाफ गुटबाजी तेज होगी. महागठबंधन के नेताओं को यह सोचना होगा कि जिन मुद्दों को लेकर वह 2023 रामगढ़ उपचुनाव में गए थे. वहीं मुद्दे एनडीए को हराने के लिए काफी होंगे या बचे हुए दो वर्षों में कुछ और करने की जरूरत है. वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि उपचुनाव में जीत का रिकॉर्ड कायम रहे, ताकि जनता में यह संदेश जाए कि राज्य में झामुमो-कांग्रेस और राजद का महागठबंधन अजेय है. इस महागठबंधन के साथ सामाजिक समीकरण की काट भाजपा या एनडीए के पास नहीं है.

Last Updated : Feb 19, 2023, 8:23 PM IST
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