रांचीः ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल यानी टीएसी को लेकर विवाद में राजभवन और राज्य सरकार आमने सामने (dispute regarding TAC in Jharkhand) है. राज्यपाल के अधिकार में कटौती कर मुख्यमंत्री को टीएसी में अधिकार देकर पावरफुल बनाये जाने के बाद से दोनों संवैधानिक संस्था में खटास बढ़ गई है. इसको लेकर सियासी दलों में बयानबाजी भी खूब हो रही है.
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राज्यपाल के द्वारा हाल ही में राज्य के मुख्य सचिव को तीसरी बार चिठ्ठी भेजकर जवाब तलब किये जाने के बाद विवाद बढ़ गया (Tribal Advisory Council) है. टीएसी की मान्यता को लेकर उठ रहे सवाल के बीच लगातार बैठक के जरिए प्रस्ताव पास की जा रही है, मगर यह प्रस्ताव कितना मान्य होगा इसपर संवैधानिक बहस चल रही है. इन सबके बीच राज्यपाल के द्वारा भेजी गई चिट्ठी ने इस विवाद में आग में घी डालने का काम किया है. राज्यपाल ने पूर्व में दिए गए निर्देश का अनुपालन के बिना टीएसी द्वारा की जा रही कार्रवाई पर गंभीर चिंता एवं आपत्ति व्यक्त की है.
राज्यपाल ने निर्देश दिया है कि उनके द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देश के अनुपालन की स्थिति से उन्हें तत्काल अवगत कराया जाए, साथ ही इतने दिनों तक इसका अनुपालन क्यों नहीं हुआ इसका कारण बताया जाए. राज्यपाल रमेश बैस ने विधि विशेषज्ञों से मिले मंतव्य का हवाला देते हुए टीएसी के गठन संबंधित नियमावली को असंवैधानिक बताया था, साथ ही उन्होंने उसमें संशोधन के निर्देश राज्य सरकार को दिए थे. उन्होंने कहा था कि टीएसी के गठन में कम से कम 2 सदस्यों का मनोनयन राजभवन से अनिवार्य रूप से होना चाहिए. इधर विधि विशेषज्ञों का मानना है कि चूंकि पांचवीं अनुसूची के कस्टोडियन राज्यपाल होते हैं, इसलिए उनकी शक्ति को कम नहीं किया जा सकता. विधि विशेषज्ञ संजय कुमार के अनुसार संविधान की धारा 244 (1) में राजपाल की शक्ति का स्पष्ट प्रावधान है.
टीएसी पर सियासत गर्म, राष्ट्रपति शासन की उठी मांगः टीएसी को लेकर उठे विवाद के बीच इस पर राजनीति भी तेज हो गई (Jharkhand tribal advisory council controversy) है. पूर्व स्पीकर और रांची से भाजपा सांसद सीपी सिंह ने कहा है कि जिस तरह से टीएसी में राज्यपाल के स्थान पर मुख्यमंत्री को अध्यक्ष बनाकर मनमाने ढंग से फैसले लिए जा रहे हैं, उससे लोकतंत्र की धज्जियां उड़ रही हैं, इस विवाद को खत्म किया जाना चाहिए. वहीं पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने टीएसी को लेकर उठे विवाद पर कहा कि यह संविधान, राष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा और प्रतिष्ठा पर सीधा हमला है. इस पर अनुच्छेद 356 के तहत संज्ञान लेते हुए राज्यपाल हेमंत सरकार को शो कॉज कर सकते हैं और अगर समुचित जवाब नहीं आता है तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाना चाहिए. यह राजभवन और राज्य सरकार के रस्साकशी के बीच संविधान को निष्क्रिय करने तोड़ने और अमान्य करने का गंभीर मामला है. वहीं टीएसी को लेकर चौतरफा घिरी हेमंत सरकार को बचाने में झारखंड मुक्ति मोर्चा जुट गई है पार्टी के नेता विनोद पांडे ने कहा है कि राजभवन के द्वारा जिस तरह से टिप्पणी की गई है उस पर सरकार गंभीर है और जल्द ही इसका समुचित जवाब दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि टीएसी के द्वारा लिए जा रहे फैसले और उनके क्रियान्वयन पर स्वाभाविक रूप से प्रभाव पड़ेगा, जिसको देखते हुए सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है. उन्होंने कहा कि टीएसी के अलावा अन्य मसलों पर राज्य सरकार द्वारा लिए जा रहे निर्णय को जिस तरह से लटकाया या उलझाया जा रहा है वह कहीं से भी उचित नहीं है.
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नवगठित टीएसी में के सदस्यः नवगठित टीएसी की अब तक चार बैठक हो चुकी है. टीएसी के पदेन अध्यक्ष मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हैं, वहीं कल्याण मंत्री चंपाई सोरेन को टीएसी उपाध्यक्ष बनाया गया है. 19 सदस्यीय समिति में मुख्यमंत्री, मंत्री समेत 17 विधायक और दो मनोनीत सदस्य हैं. मुख्यमंत्री के पदेन अध्यक्ष और कल्याण मंत्री के पदेन उपाध्यक्ष के अलावा अनुसूचित जनजाति के जिन 15 विधायकों को सदस्य बनाया गया है. जिसमें प्रो. स्टीफन मरांडी, नीलकंठ सिंह मुंडा, बाबूलाल मरांडी, बंधू तिर्की, सीता सोरेन, दीपक बिरुआ, चमरा लिंडा, कोचे मुंडा, भूषण तिर्की, सुखराम उरांव, दशरथ गागराई, विकास कुमार मुंडा, नमन विक्सल कोंगाड़ी, राजेश कच्छप, सोनाराम सिंकू शामिल हैं. वहीं दो मनोनीत सदस्य के रुप में विश्वनाथ सिंह सरदार और जमल मुंडा शामिल हैं.