रांचीः पुरानी धरोहरे हमें विरासत से रुबरु कराती है. ऐसी ही एक धरोहर है लोकोमोटिव इंजन जिसे रेलवे क्वीन के नाम से जाना जाता है. 1914 में भारत आई और 1995 में सेवानिवृत्त हुई ये रेलवे क्वीन देखने में भी आलीशान है और राजधानी के रेलवे स्टेशन की शोभा बढ़ा रही है.
1909 में बनी थी ये रेलवे क्वीन
रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार के ठीक सामने रखे गए इस इंजन के बारे में शायद ही लोग जानते हैं. ये भारतीय रेलवे की एक धरोहर है. जिसे रांची रेल मंडल ने अबतक संजोए रखा है. इस स्टीम लोको नंबर 676 सीसी के लोकोमोटिव इंजन का निर्माण 1909 में किया गया था. इंजन को 1914 में एक जहाज से बंगाल नागपुर रेलवे कंपनी ने भारत में आयात किया गया. जिसे कोलकाता पोर्ट पर उतारा गया था.
1976 में रांची हुआ स्थानांतरित
लोकोमोटिव को 1935 में बंगाल डिवीजन के नागपुर डिवीजन में कमीशन किया गया. आजादी के बाद रेलवे नागपुर छिंदवाड़ा नैनपुर सेक्टर में 32 केएमपीएच की अधिकतम गति के साथ यात्री और मालगाड़ी सेवा के लिए इसका उपयोग किया गया. 28 अक्टूबर 1976 को लोकोमोटिव इंजन को रांची लोहरदगा सेक्शन को आगरा डिवीजन के अंतर्गत आने वाले रांची में स्थानांतरित किया गया. जिसका उपयोग जून 1987 तक यात्री और माल ट्रेन सेवा दोनों में लाया गया.
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1995 में हुआ सेवानिवृत्त
1987 में ही आगरा डिवीजन के बांकुरा दामोदर रिवर वे सेक्शन में भी काम के लिए बांकुरा स्थानांतरित कर दिया गया. आखिरकार दक्षिण पूर्व रेलवे के आगरा डिवीजन के बांकुरा राजनगर खंड में मिश्रित यात्री ट्रेन सेवा के काम करने के बाद 8 अप्रैल 1995 को इस ट्रेन को सेवानिवृत्त दे दिया गया. जिसके बाद रांची रेल मंडल ने लोकोमोटिव इंजन को रांची रेलवे स्टेशन पर स्थापित किया है. जिससे लोग अपने इस धरोहर को जानें और इससे जुड़ी रोचक जानकारियां भी हासिल कर सके,
लोग रेलवे से जुड़े धरोहरों को जाने और दूसरे लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचाए. रेलवे क्वीन के नाम से जाना जाने वाला ये इंजन कई मायनों में खास है. रेल विभाग के लिए इसी रेल इंजन से रेलवे के क्षेत्र में क्रांति लाया गया. ये इंजन भारत के विभिन्न क्षेत्र में अपनी सेवा दे चुकी है. इसी वजह से रांची रेल मंडल ने इस लोकोमोटिव इंजन को संजोए रखा है.