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अंग्रेजों के जमाने की है ये 'रेलवे क्वीन', जाने इस अनोखी धरोहर के बारे में

रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार में रखी 'रेलवे क्वीन' अपने आप में विशेष है. ये इंजन  भारतीय रेलवे की एक धरोहर है. 1909 से लगातार सेवा दे रही रेलवे क्वीन 1995 में सेवानिवृत्त हुई है. अब रांची रेल मंडल की शोभा बढ़ा रही है.

अंग्रेजों के जमाने की है ये 'रेलवे क्वीन'
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Published : Apr 26, 2019, 5:24 PM IST

रांचीः पुरानी धरोहरे हमें विरासत से रुबरु कराती है. ऐसी ही एक धरोहर है लोकोमोटिव इंजन जिसे रेलवे क्वीन के नाम से जाना जाता है. 1914 में भारत आई और 1995 में सेवानिवृत्त हुई ये रेलवे क्वीन देखने में भी आलीशान है और राजधानी के रेलवे स्टेशन की शोभा बढ़ा रही है.

अंग्रेजों के जमाने की है ये 'रेलवे क्वीन'

1909 में बनी थी ये रेलवे क्वीन

रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार के ठीक सामने रखे गए इस इंजन के बारे में शायद ही लोग जानते हैं. ये भारतीय रेलवे की एक धरोहर है. जिसे रांची रेल मंडल ने अबतक संजोए रखा है. इस स्टीम लोको नंबर 676 सीसी के लोकोमोटिव इंजन का निर्माण 1909 में किया गया था. इंजन को 1914 में एक जहाज से बंगाल नागपुर रेलवे कंपनी ने भारत में आयात किया गया. जिसे कोलकाता पोर्ट पर उतारा गया था.

1976 में रांची हुआ स्थानांतरित

लोकोमोटिव को 1935 में बंगाल डिवीजन के नागपुर डिवीजन में कमीशन किया गया. आजादी के बाद रेलवे नागपुर छिंदवाड़ा नैनपुर सेक्टर में 32 केएमपीएच की अधिकतम गति के साथ यात्री और मालगाड़ी सेवा के लिए इसका उपयोग किया गया. 28 अक्टूबर 1976 को लोकोमोटिव इंजन को रांची लोहरदगा सेक्शन को आगरा डिवीजन के अंतर्गत आने वाले रांची में स्थानांतरित किया गया. जिसका उपयोग जून 1987 तक यात्री और माल ट्रेन सेवा दोनों में लाया गया.

ये भी पढ़ें- लोकसभा चुनाव 2019: जीत के लिए राजनैतिक पार्टियां अपना रहीं ये हथकंडा

1995 में हुआ सेवानिवृत्त

1987 में ही आगरा डिवीजन के बांकुरा दामोदर रिवर वे सेक्शन में भी काम के लिए बांकुरा स्थानांतरित कर दिया गया. आखिरकार दक्षिण पूर्व रेलवे के आगरा डिवीजन के बांकुरा राजनगर खंड में मिश्रित यात्री ट्रेन सेवा के काम करने के बाद 8 अप्रैल 1995 को इस ट्रेन को सेवानिवृत्त दे दिया गया. जिसके बाद रांची रेल मंडल ने लोकोमोटिव इंजन को रांची रेलवे स्टेशन पर स्थापित किया है. जिससे लोग अपने इस धरोहर को जानें और इससे जुड़ी रोचक जानकारियां भी हासिल कर सके,

लोग रेलवे से जुड़े धरोहरों को जाने और दूसरे लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचाए. रेलवे क्वीन के नाम से जाना जाने वाला ये इंजन कई मायनों में खास है. रेल विभाग के लिए इसी रेल इंजन से रेलवे के क्षेत्र में क्रांति लाया गया. ये इंजन भारत के विभिन्न क्षेत्र में अपनी सेवा दे चुकी है. इसी वजह से रांची रेल मंडल ने इस लोकोमोटिव इंजन को संजोए रखा है.

रांचीः पुरानी धरोहरे हमें विरासत से रुबरु कराती है. ऐसी ही एक धरोहर है लोकोमोटिव इंजन जिसे रेलवे क्वीन के नाम से जाना जाता है. 1914 में भारत आई और 1995 में सेवानिवृत्त हुई ये रेलवे क्वीन देखने में भी आलीशान है और राजधानी के रेलवे स्टेशन की शोभा बढ़ा रही है.

अंग्रेजों के जमाने की है ये 'रेलवे क्वीन'

1909 में बनी थी ये रेलवे क्वीन

रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार के ठीक सामने रखे गए इस इंजन के बारे में शायद ही लोग जानते हैं. ये भारतीय रेलवे की एक धरोहर है. जिसे रांची रेल मंडल ने अबतक संजोए रखा है. इस स्टीम लोको नंबर 676 सीसी के लोकोमोटिव इंजन का निर्माण 1909 में किया गया था. इंजन को 1914 में एक जहाज से बंगाल नागपुर रेलवे कंपनी ने भारत में आयात किया गया. जिसे कोलकाता पोर्ट पर उतारा गया था.

1976 में रांची हुआ स्थानांतरित

लोकोमोटिव को 1935 में बंगाल डिवीजन के नागपुर डिवीजन में कमीशन किया गया. आजादी के बाद रेलवे नागपुर छिंदवाड़ा नैनपुर सेक्टर में 32 केएमपीएच की अधिकतम गति के साथ यात्री और मालगाड़ी सेवा के लिए इसका उपयोग किया गया. 28 अक्टूबर 1976 को लोकोमोटिव इंजन को रांची लोहरदगा सेक्शन को आगरा डिवीजन के अंतर्गत आने वाले रांची में स्थानांतरित किया गया. जिसका उपयोग जून 1987 तक यात्री और माल ट्रेन सेवा दोनों में लाया गया.

ये भी पढ़ें- लोकसभा चुनाव 2019: जीत के लिए राजनैतिक पार्टियां अपना रहीं ये हथकंडा

1995 में हुआ सेवानिवृत्त

1987 में ही आगरा डिवीजन के बांकुरा दामोदर रिवर वे सेक्शन में भी काम के लिए बांकुरा स्थानांतरित कर दिया गया. आखिरकार दक्षिण पूर्व रेलवे के आगरा डिवीजन के बांकुरा राजनगर खंड में मिश्रित यात्री ट्रेन सेवा के काम करने के बाद 8 अप्रैल 1995 को इस ट्रेन को सेवानिवृत्त दे दिया गया. जिसके बाद रांची रेल मंडल ने लोकोमोटिव इंजन को रांची रेलवे स्टेशन पर स्थापित किया है. जिससे लोग अपने इस धरोहर को जानें और इससे जुड़ी रोचक जानकारियां भी हासिल कर सके,

लोग रेलवे से जुड़े धरोहरों को जाने और दूसरे लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचाए. रेलवे क्वीन के नाम से जाना जाने वाला ये इंजन कई मायनों में खास है. रेल विभाग के लिए इसी रेल इंजन से रेलवे के क्षेत्र में क्रांति लाया गया. ये इंजन भारत के विभिन्न क्षेत्र में अपनी सेवा दे चुकी है. इसी वजह से रांची रेल मंडल ने इस लोकोमोटिव इंजन को संजोए रखा है.

Intro:रेडी टू एयर.....

रांची-

8 अप्रैल 1995 को सेवानिवृत्त हुए और 1914 में भारत आए यह लोकोमोटिव इंजन राजधानी रांची रेलवे स्टेशन का शोभा बढ़ा रही है रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार के ठीक सामने रखे गए,इस इंजन के बारे में शायद ही लोग जानते हैं लेकिन यह भारतीय रेलवे के एक धरोहर है जिसे रांची रेल मंडल ने संजोए रखा है इस रेल इंजन को रेलवे क्वीन के नाम से जाना जाता है देखिए विशेष रिपोर्ट और जानिए क्या है यह रेल क्वीन.....


Body:रेल क्वीन के नाम से जाने जाने वाला स्टीम लोको नंबर 676 सीसी का लोकोमोटिव इंजन का निर्माण 1909 में किया गया था, और इस इंजन को 1914 में एक जहाज द्वारा बंगाल नागपुर रेलवे कंपनी ने भारत में आयात किया ,जिसे कोलकाता पोर्ट पर उतारा गया था .लोकोमोटिव को 1935 में बंगाल डिवीजन के नागपुर डिवीजन में कमीशन किया गया,आजादी के बाद रेलवे नागपुर छिंदवाड़ा नैनपुर सेक्टर में 32 केएमपीएच की अधिकतम गति के साथ यात्री और मालगाड़ी सेवा के लिए इसका उपयोग किया गया, 28 अक्टूबर 1976 को लोकोमोटिव इंजन को रांची लोहरदगा सेक्शन में उस दौरान आगरा डिवीजन के अंतर्गत आने वाले रांची में स्थानांतरित किया गया ,जिसका उपयोग जून 1987 तक यात्री और माल ट्रेन सेवा दोनों में लाया गया और उसके बाद 1987 के वर्ष में ही आगरा डिवीजन के बांकुरा दामोदर रिवर वे सेक्शन में भी काम के लिए बांकुरा स्थानांतरित कर दिया गया. आखिरकार दक्षिण पूर्व रेलवे के आगरा डिवीजन के बांकुरा राजनगर खंड में मिश्रित यात्री ट्रेन सेवा के काम करने के बाद 8 अप्रैल 1995 को इस ट्रेन को सेवानिवृत्त दे दिया गया उसके बाद रांची रेल मंडल ने लोकोमोटिव इंजन को रांची रेलवे स्टेशन पर स्थापित किया ,ताकि लोग अपने इस धरोहर को जाने और इससे जुड़े रोचक जानकारियां भी हासिल कर सके।

रांची रेल मंडल का उद्देश्य था कि लोग रेलवे से जुड़े अपने धरोहरों को जाने और लोगों को भी इसकी जानकारी पहुंचाएं.रेल क्वीन के नाम से जाने जाने वाला यह इंजन कई मायनों में खास है और रेल विभाग के लिए इसी रेल इंजन द्वारा रेलवे के क्षेत्र में क्रांति लाया गया. यह इंजन भारत के विभिन्न क्षेत्र में अपनी सेवा दे चुकी है और इसी वजह से रांची रेल मंडल ने इस लोकोमोटिव इंजन को संजोत कर रखा है.

बाइट-नीरज कुमार, वरीय अधिकारी ,परिचालन विभाग ,रांची मंडल।


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