रांची: कोर्ट फी वृद्धि के विरोध में अधिवक्ताओं का कार्य बहिष्कार (Work boycott of advocates) सोमवार को भी जारी रहा. झारखंड राज्य बार काउंसिल के आह्वान पर राज्यभर के अधिवक्ता न्यायिक कार्य से बीते शुक्रवार से दूर हैं. जिस वजह से न्यायिक कार्यों पर खासा असर पड़ा है. रांची सिविल कोर्ट सहित राज्य के अन्य न्यायालयों में केसों की सुनवाई नहीं हो पा रही है. सबसे ज्यादा परेशानी वैसे लोगों को हो रही है जिन्हें हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से पूर्व में बेल मिलने के बाद जमानत पर रिहा होना है. (Protest against increase in court fee)
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सोमवार को सिविल कोर्ट परिसर में पूर्व विधायक निर्मला देवी के लोग खासे परेशान दिखे. अधिवक्ताओं के कार्य बहिष्कार की वजह से हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाबजूद बेल बॉन्ड नहीं भरा जा सका. इसी तरह से एक अनुमान के मुताबिक राज्यभर के विभिन्न न्यायालयों में 28 हजार केसों की सुनवाई पर असर पड़ा है. इधर, आंदोलन कर रहे अधिवक्ताओं ने कोर्ट फी वृद्धि को वापस लेने की मांग को दोहराते हुए सरकार से जनहित में फैसले लेने की अपील की है. झारखंड स्टेट बार काउंसिल के प्रवक्ता संजय विद्रोही ने कार्य बहिष्कार को सफल बताते हुए कहा कि झारखंड में बेतहाशा कोर्ट फी में बढ़ोतरी से आम लोग परेशान हैं, जिसका खामियाजा यहां के अधिवक्ता को उठाना पड़ रहा है.
कार्य बहिष्कार से परेशान रहे मुवक्किल: कोर्ट फी वृद्धि वापस लेने के अलावा अधिवक्ताओं की मांगों में एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने, बजट में अधिवक्ता कल्याण के लिए निधि आवंटित नहीं करने, लोक अभियोजक एवं अपर लोक अभियोजक राज्य के बार एसोसिएशन से लेना शामिल है. जिसको लेकर सोमवार को जारी कार्य बहिष्कार ने कोर्ट आने वाले मुवक्किलों के लिए परेशानी बढा दी है. कोर्ट सुनवाई के लिए न्यायालय आये एजाजुल बताते हैं कि कांटटोली जमीन विवाद को लेकर वे न्यायालय में गुहार लगाने आए थे, मगर कार्य बहिष्कार की वजह से सुनवाई नहीं हो सकी.
इधर, कार्य बहिष्कार कर रहे अधिवक्ता अविनाश पांडे का मानना है कि यह मुद्दा जनता से जुड़ा हुआ है जो न्याय की गुहार लगाने यहा पह़ुंचते हैं. यदि सात गुणा कोर्ट फी बढ़ा दिया जायेगा तो कौन न्याय की गुहार लगा पायेगा. उन्होंने सरकार से ओडिशा और बिहार में जारी कोर्ट फी का अध्ययन कर इसे लागू करने की सलाह दी है. गौरतलब है कि विवाद का मुख्य कारण झारखंड सरकार के द्वारा कोर्ट फीस में की गई वृद्धि है जिसे भले ही संशोधित किया गया है मगर राज्य सरकार के इस फैसले से अधिवक्ता संतुष्ट नहीं हैं. दिसंबर 2021 में कैबिनेट से पास होने के बाद राज्य सरकार ने विभिन्न न्यायालयों में लगने वाले कोर्ट फी में अप्रत्याशित वृद्धि की गई थी जिसके खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी.