रांचीः प्राइवेट स्कूल्स एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन यानी पासवा ने राज्य सरकार से निजी विद्यालयों के लिए पिछली सरकार में बनी कड़े कानून को वापस लेने की मांग की है. झारखंड दौरे पर पासवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद शमायल अहमद ने कहा है कि अगर राज्य सरकार चाहती है कि झारखंड में सभी बच्चे स्कूल जाएं और उन्हें स्कूली शिक्षा से वंचित नहीं होना पड़े तो सरकार को सभी निजी विद्यालयों को मान्यता देनी होगी, इसके लिए पिछली सरकार में बनी नियमावली में संशोधन करना होगा.
इसके अलावा पासवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद शमायल अहमद ने कहा कि पासवा लगातार सरकार से इसको लेकर मांग करती रही है, इसके बावजूद सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है. यह सीधे तौर पर मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि राज्य के सभी बच्चों को स्कूली शिक्षा मिले इसके लिए सरकारी स्कूलों के साथ-साथ निजी विद्यालयों को भी मान्यता देनी होगी. जब राज्य में सरकारी विद्यालय चार कमरों में चल सकते हैं तो निजी विद्यालय चार कमरों में क्यों नहीं चल सकते. समय के साथ शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन कम होती चली जा रही हैं. ऐसे में झारखंड ही एक ऐसा राज्य है जहां देश भर में बने नियम से अलग यहां का नियम बना हुआ है.
आरटीई कानून में संशोधन कर झारखंड ने बनाया अलग कानून- आलोक दूबेः 2009 में देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया था जिसके तहत स्कूलों के संचालन के तौर तरीके को भी परिभाषित किया गया था. इस कानून के तहत राज्यों को भी इसमें बदलाव का अधिकार दिया गया था. 2014 में जब झारखंड में रघुवर दास के नेतृत्व में सरकार बनी तो इसमें कई तरह के संशोधन किए गए जिसके तहत शहरी क्षेत्र में निजी स्कूल खोलने पर 75 डिसमिल जमीन होना अनिवार्य किया गया.
वहीं ग्रामीण क्षेत्र में एक एकड़ जमीन की अनिवार्यता रखी गई. इस नियम के बाद शहरी क्षेत्र में नए और पुराने चल रहे छोटे बड़े स्कूलों के लिए मान्यता पर संकट आ गई. आज हालात यह है कि आज भी बड़ी संख्या में निजी स्कूल राज्य में बगैर मान्यता के चल रहे हैं. पासवा के प्रदेश अध्यक्ष आलोक दूबे ने सरकार से इसे गंभीरता से लेने की मांग करते हुए कहा है कि समय के साथ जमीन कम होता जा रहा है ऐसे में सरकार को निजी विद्यालयों के लिए बन कर कानून में संशोधन करना चाहिए जिससे सभी निजी विद्यालयों को मान्यता मिल सके.
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