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CM के पूर्व ओएसडी गोपाल जी तिवारी के खिलाफ ACB ने दर्ज की पीई, आय से अधिक संपत्ति का मामला - गोपाल जी तिवारी मामले की एसीबी जांच करेगी

आय से अधिक संपत्ति मामले में सीएम हेमंत सोरेन के पूर्व ओएसडी गोपाल जी तिवारी की मुश्किलें बढ़ती जा रही है. दरअसल, सीएम ने एंटी करप्शन ब्यूरो को मामले की जांच के आदेश दिए हैं, जिसके बाद एंटी करप्शन ब्यूरो ने गोपाल जी तिवारी के खिलाफ प्रारंभिक जांच दर्ज कर ली है.

Disproportionate assets case.
एंटी करप्शन ब्यूरो.
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Published : Jul 28, 2020, 2:04 PM IST

रांचीः सीएम हेमंत सोरेन ने अपने ही पूर्व ओएसडी गोपाल जी तिवारी के खिलाफ जांच का फैसला लिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एंटी करप्शन ब्यूरो को आदेश दिया है कि वह गोपाल जी तिवारी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और गलत तरीके से रुपये कमाने के मामले की जांच करें, जिसके बाद एंटी करप्शन ब्यूरो ने मामले में प्रारंभिक जांच यानी पीई दर्ज कर ली है.

ओएसडी से दिया था इस्तीफा
बता दें कि हाई कोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार ने हाल में ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर गोपाल जी तिवारी पर गलत तरीके से संपत्ति अर्जित करने और करीब 21.55 करोड़ रुपये अलग-अलग जगहों पर निवेश करने से संबंधित कागजात सौंपे थे. आय से अधिक संपत्ति और दूसरे विवादों में अपना नाम आने के बाद हेमंत सोरेन के काफी करीबी रहे गोपाल जी तिवारी ने मुख्यमंत्री के ओएसडी से अपना इस्तीफा दे दिया था.

मामले की जांच शुरू
मुख्यमंत्री के आदेश के बाद एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने गोपाल जी तिवारी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और रसूख के बल पर निवेश किए गए पैसे को लेकर अपनी जांच शुरू कर दी. एसीबी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस मामले में जल्द ही एसीबी की एक टीम गोपाल जी तिवारी से पूछताछ करेगी.

इसे भी पढ़ें- मेनहर्ट नियुक्ति घोटाले से जुड़ी किताब हुई रिलीज, सरयू राय ने कहा- मांस की पोटली की रखवाली कर रहे थे गिद्ध


क्या है पूरा मामला
दरअसल, मुख्यमंत्री को सौंपे गए कागजातों में यह आरोप है कि गोपाल जी तिवारी ने जमीन और फ्लैट में बड़ी राशि निवेश की है. वहीं, गोपाल जी तिवारी के बेटे के नाम पर करोड़ों रुपये का निवेश किया गया है. इसके लिए बकायदा एक कंपनी भी बनाई गई है, जिसमें गोपाल जी तिवारी का बेटा भी पार्टनर है. साथ ही उन पर यह भी आरोप है कि उनका 12.5 करोड़ रुपये का फ्लैट भी नोएडा में है. इसके अलावा कई बड़े शहरों में भी करोड़ों की बेनामी संपत्ति है.

एंटी करप्शन ब्यूरो को जांच के आदेश
हाई कोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार के द्वारा सौपें गए दस्तावेजों के आधार पर ही मुख्यमंत्री ने गोपाल जी तिवारी के खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो को जांच के आदेश दिए थे. झारखंड में यह पहला मामला है जब एक मुख्यमंत्री ने अपने ही विशेष कार्य अधिकारी के खिलाफ जांच के आदेश दिए है.

रांचीः सीएम हेमंत सोरेन ने अपने ही पूर्व ओएसडी गोपाल जी तिवारी के खिलाफ जांच का फैसला लिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एंटी करप्शन ब्यूरो को आदेश दिया है कि वह गोपाल जी तिवारी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और गलत तरीके से रुपये कमाने के मामले की जांच करें, जिसके बाद एंटी करप्शन ब्यूरो ने मामले में प्रारंभिक जांच यानी पीई दर्ज कर ली है.

ओएसडी से दिया था इस्तीफा
बता दें कि हाई कोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार ने हाल में ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर गोपाल जी तिवारी पर गलत तरीके से संपत्ति अर्जित करने और करीब 21.55 करोड़ रुपये अलग-अलग जगहों पर निवेश करने से संबंधित कागजात सौंपे थे. आय से अधिक संपत्ति और दूसरे विवादों में अपना नाम आने के बाद हेमंत सोरेन के काफी करीबी रहे गोपाल जी तिवारी ने मुख्यमंत्री के ओएसडी से अपना इस्तीफा दे दिया था.

मामले की जांच शुरू
मुख्यमंत्री के आदेश के बाद एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने गोपाल जी तिवारी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और रसूख के बल पर निवेश किए गए पैसे को लेकर अपनी जांच शुरू कर दी. एसीबी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस मामले में जल्द ही एसीबी की एक टीम गोपाल जी तिवारी से पूछताछ करेगी.

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क्या है पूरा मामला
दरअसल, मुख्यमंत्री को सौंपे गए कागजातों में यह आरोप है कि गोपाल जी तिवारी ने जमीन और फ्लैट में बड़ी राशि निवेश की है. वहीं, गोपाल जी तिवारी के बेटे के नाम पर करोड़ों रुपये का निवेश किया गया है. इसके लिए बकायदा एक कंपनी भी बनाई गई है, जिसमें गोपाल जी तिवारी का बेटा भी पार्टनर है. साथ ही उन पर यह भी आरोप है कि उनका 12.5 करोड़ रुपये का फ्लैट भी नोएडा में है. इसके अलावा कई बड़े शहरों में भी करोड़ों की बेनामी संपत्ति है.

एंटी करप्शन ब्यूरो को जांच के आदेश
हाई कोर्ट के अधिवक्ता राजीव कुमार के द्वारा सौपें गए दस्तावेजों के आधार पर ही मुख्यमंत्री ने गोपाल जी तिवारी के खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो को जांच के आदेश दिए थे. झारखंड में यह पहला मामला है जब एक मुख्यमंत्री ने अपने ही विशेष कार्य अधिकारी के खिलाफ जांच के आदेश दिए है.

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