रांची: दीपावली, छठ और कई महत्वपूर्ण पर्वों में कुम्हार द्वारा बनाया गया मिट्टी का दिया शुभ माना जाता है. दीपावली (Diwali 2022) के मौके पर मिट्टी के दीए को जलाने का प्रचलन था, लेकिन धीरे-धीरे आधुनिकरण के इस दौर में लोग बिजली से जलने वाले दिए और बल्ब जलाने लगे (Potter Income Declining due to Chinese Product). इससे कुम्हार समाज से ताल्लुक रखने वाले लोगों के व्यापार का खासा नुकसान हुआ है.
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कुम्हार के सामने कई समस्याएं: रांची के चुटिया स्थित मिट्टी का दिया बना रहे कुम्हार राम स्वरूप बताते हैं कि आज की तारीख में कुम्हारों को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. अब मूर्तियां और मिट्टी के सामान बनाने वाले मिट्टी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. अगर किसी जगह इस तरह की मिट्टी उपलब्ध होती है तो उस जगह का मालिक उस मिट्टी की कीमत अत्यधिक बताते हैं जिस वजह से कुम्हारों को काम करना मुश्किल होता है. उन्होंने बताया कि आज भी राजधानी रांची सहित ग्रामीण क्षेत्रों में कई ऐसे कुम्हार समाज के लोग हैं जो अपने इस काम को छोड़कर दूसरे काम से जुड़ गए, क्योंकि अब मिट्टी के काम में लोगों को लाभ नहीं हो पा रहा हैं.
चाइनीस सामान के आगे मिट्टी के सामान की बिक्री कम: मिट्टी के दिए बना रही कुंती देवी बताती हैं कि आज की तारीख में उनके लिए सबसे बड़ी समस्या बाजार है. बाजार में सस्ती से सस्ती कीमत पर चाइनीस सामान मिल रहे हैं इसलिए भी लोग मिट्टी का दीया कम खरीदते हैं (earthen pot demand is reducing). कुम्हारों ने अपनी समस्याएं बताते हुए कहा कि एक तो उन्हें अच्छी मिट्टी नहीं मिलती है और अगर अच्छी मिट्टी मिल भी जाए तो उसके लिए उन्हें मोटी कीमत देनी पड़ती है. ऐसे में कुम्हार अपने सामान का दाम कम रखते हैं तो उन्हें सीधा नुकसान होता है. जरूरी है देश के लोग चाइनीज सामानों का बहिष्कार करें और देश में कुम्हारों के हाथों से बने मिट्टी का दिया जलाने का काम करें.
मिट्टी का दीया पर्यावरणनुकुल: मिट्टी का दिया खरीदने आई ग्राहक प्रिया कुमारी बताती हैं कि मिट्टी का दिया जलाने से पर्यावरण को नुकसान भी कम पहुंचता है और हमारे देश में काम करने वाले कुम्हार समाज के लोगों का आर्थिक मदद भी होता है. इसके साथ हिंदू समाज अपनी परंपरा को भी कायम रख पाते हैं.