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जमीन हस्तांतरण विवाद पर भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने, भाजपा ने जांच पर उठाए सवाल तो कांग्रेस ने सराहा - झारखंड की सियासत

झारखंड में जमीन हस्तांतरण पर सियासत शुरू हो गई है. झारखंड सरकार के 1932 से 2021 तक आदिवासियों की जमीन के अवैध हस्तांतरण की रिपोर्ट मांगे जाने पर बयानबाजी शुरू हो गई है. भाजपा ने जहां 89 साल का रिकॉर्ड खंगाले जाने के मामले पर सवाल उठाया है तो कांग्रेस ने हेमंत सरकार के इस कदम की सराहना की है.

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जमीन हस्तांतरण विवाद
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Published : Dec 26, 2021, 11:13 AM IST

रांची : जमीन हस्तांतरण विवाद की जांच पर सियासत शुरू हो गई है. विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इसे सरकार का उलझाने वाला कदम करार दिया है. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने सरकार के इस फैसले पर कहा कि क्या मुख्यमंत्री ऐसे नेताओं और अधिकारियों पर कारवाई कर पाएंगे जो इसके लिए जिम्मेदार हैं. उन्होंने सवाल किया कि 89 वर्षों की फाइल खंगालने में कितने वर्ष लगेंगे ये सभी जानते हैं.

इधर जमीन हस्तांतरण विवाद पर सत्तारूढ़ कांग्रेस भी मैदान में उतर आई है. उसने सरकार के इस कदम की सराहना की है. कांग्रेस ने कहा है कि राज्य गठन के बाद सबसे ज्यादा समय तक भाजपा ही शासन में रही है. उसके कार्यकाल में सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन की साजिश रची गई है.

देखें पूरी खबर

ये भी पढ़ें-पश्चिम बंगाल के अपराधियों को रोकने के लिए मनिकापाड़ा में आउटपोस्ट जल्द, ग्रामीण विकास मंंत्री बोले-यही कर रहे पाकुड़ में अपराध

दरअसल, राज्य सरकार के भू राजस्व विभाग ने 1932 से 2021 तक की अवधि में आदिवासियों के जमीन के अवैध हस्तांतरण का पता लगाने के लिए सभी आयुक्तों और उपायुक्तों को चिट्ठी लिखी है. विभाग द्वारा लिखे गए पत्र में सीएनटी एसपीटी एक्ट के प्रावधान के तहत 14 बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी गई है. रिपोर्ट के जरिए सरकार यह जाना चाहती है कि 1932 में आदिवासियों के पास कुल कितनी जमीन थी और अब कितनी जमीन है. पत्र में यह भी लिखा गया है कि सीएनटी एक्ट 1960 की धारा 72 के तहत 1932 से 1947 तक की अवधि में आदिवासियों की कितनी जमीन सरेंडर हुई और कितने रकबे का सेटलमेंट हुआ.

आयुक्तों से मांगी रिपोर्ट

वहीं धारा 73 के तहत कितने आदिवासियों ने टिनेंट छोड़ दिया. आजादी के बाद से अब तक उपायुक्तों के आदेश से कितनी जमीन का सरेंडर और सेटलमेंट हुआ.न्यायालय के आदेश के तहत कितनी जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांतरित की गई एवं सीएनटी एक्ट की धारा 20 का उल्लंघन कर आदिवासियों की कितनी जमीन को हस्तांतरित किया गया.इन तमाम बिंदुओं पर राज्य सरकार के भू राजस्व विभाग ने सभी उपायुक्तों एवं आयुक्तों को पत्र भेजकर रिपोर्ट मांगा है.

रांची : जमीन हस्तांतरण विवाद की जांच पर सियासत शुरू हो गई है. विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इसे सरकार का उलझाने वाला कदम करार दिया है. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने सरकार के इस फैसले पर कहा कि क्या मुख्यमंत्री ऐसे नेताओं और अधिकारियों पर कारवाई कर पाएंगे जो इसके लिए जिम्मेदार हैं. उन्होंने सवाल किया कि 89 वर्षों की फाइल खंगालने में कितने वर्ष लगेंगे ये सभी जानते हैं.

इधर जमीन हस्तांतरण विवाद पर सत्तारूढ़ कांग्रेस भी मैदान में उतर आई है. उसने सरकार के इस कदम की सराहना की है. कांग्रेस ने कहा है कि राज्य गठन के बाद सबसे ज्यादा समय तक भाजपा ही शासन में रही है. उसके कार्यकाल में सीएनटी एसपीटी एक्ट में संशोधन की साजिश रची गई है.

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दरअसल, राज्य सरकार के भू राजस्व विभाग ने 1932 से 2021 तक की अवधि में आदिवासियों के जमीन के अवैध हस्तांतरण का पता लगाने के लिए सभी आयुक्तों और उपायुक्तों को चिट्ठी लिखी है. विभाग द्वारा लिखे गए पत्र में सीएनटी एसपीटी एक्ट के प्रावधान के तहत 14 बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी गई है. रिपोर्ट के जरिए सरकार यह जाना चाहती है कि 1932 में आदिवासियों के पास कुल कितनी जमीन थी और अब कितनी जमीन है. पत्र में यह भी लिखा गया है कि सीएनटी एक्ट 1960 की धारा 72 के तहत 1932 से 1947 तक की अवधि में आदिवासियों की कितनी जमीन सरेंडर हुई और कितने रकबे का सेटलमेंट हुआ.

आयुक्तों से मांगी रिपोर्ट

वहीं धारा 73 के तहत कितने आदिवासियों ने टिनेंट छोड़ दिया. आजादी के बाद से अब तक उपायुक्तों के आदेश से कितनी जमीन का सरेंडर और सेटलमेंट हुआ.न्यायालय के आदेश के तहत कितनी जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांतरित की गई एवं सीएनटी एक्ट की धारा 20 का उल्लंघन कर आदिवासियों की कितनी जमीन को हस्तांतरित किया गया.इन तमाम बिंदुओं पर राज्य सरकार के भू राजस्व विभाग ने सभी उपायुक्तों एवं आयुक्तों को पत्र भेजकर रिपोर्ट मांगा है.

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