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सुप्रीम कोर्ट में केद्र सरकार के हलफनामे पर झारखंड में गरमाई हिन्दू अल्पसंख्यक पर राजनीति, जानिए किसने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है. इसके जवाब में केंद्र सरकार की ओर से दिए गए हलफनामें पर झारखंड की राजनीति गरमा गई है.

Politics over Hindu minority
सुप्रीम कोर्ट में केद्र सरकार की ओर से दिया गया हलफनामा
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Published : Mar 28, 2022, 10:17 PM IST

रांचीः केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को अवगत कराया है कि राज्य सरकारें भी राज्य की सीमा में हिन्दू सहित धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं. केंद्र सरकार की इस दलील पर झारखंड में राजनीति शुरू हो गई है. भाजपा विधायक सीपी सिंह ने इसे सही बताते हुए कहा है कि पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में हिन्दुओं की संख्या काफी कम है. इन हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए.

यह भी पढ़ेंःराज्य भी धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकते हैं : केंद्र


बीजेपी विधायक सीपी सिंह ने कहा कि जिस हिंदु समुदायों की संख्या कम हैं, उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देकर सभी सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए. इसमें क्या हर्ज है. उन्होंने कहा कि राज्यों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की शक्ति जरूर दी गई है. लेकिन इसमें आनाकानी की जा रही है. वहीं, झारखंड कांग्रेस प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह अधिकार संबंधित राज्यों को है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन होना चाहिए.

क्या कहते हैं नेता


दरअसल, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया है कि राज्य सरकारें भी राज्य की सीमा में हिन्दू सहित धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं. यह दलील अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल याचिका के जवाब में दी गई है. इसमें उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है. उपाध्याय ने अपनी अर्जी में धारा-2(एफ) की वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि यह केंद्र को अकूत शक्ति देती है जो 'साफ तौर पर मनमाना, अतार्किक और आहत करने वाला है. याचिकाकर्ता ने देश के विभिन्न राज्यों में अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तय करने के निर्देश देने की मांग की है. उनकी यह दलील है कि देश के कम से कम 10 राज्यों में हिन्दू भी अल्पसंख्यक हैं. लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि हिंदू, यहूदी, बहाई धर्म के अनुयायी उक्त राज्यों में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और उन्हें चला सकते हैं.

रांचीः केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को अवगत कराया है कि राज्य सरकारें भी राज्य की सीमा में हिन्दू सहित धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं. केंद्र सरकार की इस दलील पर झारखंड में राजनीति शुरू हो गई है. भाजपा विधायक सीपी सिंह ने इसे सही बताते हुए कहा है कि पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में हिन्दुओं की संख्या काफी कम है. इन हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए.

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बीजेपी विधायक सीपी सिंह ने कहा कि जिस हिंदु समुदायों की संख्या कम हैं, उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा देकर सभी सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए. इसमें क्या हर्ज है. उन्होंने कहा कि राज्यों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की शक्ति जरूर दी गई है. लेकिन इसमें आनाकानी की जा रही है. वहीं, झारखंड कांग्रेस प्रवक्ता राकेश सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह अधिकार संबंधित राज्यों को है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन होना चाहिए.

क्या कहते हैं नेता


दरअसल, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया है कि राज्य सरकारें भी राज्य की सीमा में हिन्दू सहित धार्मिक और भाषाई समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं. यह दलील अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल याचिका के जवाब में दी गई है. इसमें उन्होंने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है. उपाध्याय ने अपनी अर्जी में धारा-2(एफ) की वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि यह केंद्र को अकूत शक्ति देती है जो 'साफ तौर पर मनमाना, अतार्किक और आहत करने वाला है. याचिकाकर्ता ने देश के विभिन्न राज्यों में अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तय करने के निर्देश देने की मांग की है. उनकी यह दलील है कि देश के कम से कम 10 राज्यों में हिन्दू भी अल्पसंख्यक हैं. लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि हिंदू, यहूदी, बहाई धर्म के अनुयायी उक्त राज्यों में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और उन्हें चला सकते हैं.

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