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आदिवासियों पर प्रेम लुटा रही हैं पार्टियां, 28 एसटी सीटों का खेल, भाजपा के बाद झामुमो का बड़ा दांव

झारखंड की राजनीति (Politics of Jharkhand) में आदिवासी समाज की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. यहां आदिवासी समाज जिसके साथ होता है, सत्ता भी उसी के हाथ में जाती है. इसलिए सभी राजनीतिक दल आदिवासी समाज को अपने पक्ष में करने के लिए जुटे रहते है. इसी कड़ी में झारखंड में 9 अगस्त से जनजातीय महोत्सव (Tribal Festival) का आयोजन हो रहा है.

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Published : Aug 5, 2022, 4:08 PM IST

रांची: राज्य गठन के बाद से ही झारखंड की राजनीति (Politics of Jharkhand) आदिवासी समाज के ईर्द-गिर्द घूमती रही है. रघुवर दास कों छोड़ दें तो अबतक आदिवासी समाज के हाथ में ही इस प्रदेश की कमान रही है. भले चेहरे किसी भी पार्टी के रहे हों. लेकिन द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद यह समाज देश की राजनीति के केंद्र में आ गया है. आजादी के बाद पहली बार एक आदिवासी महिला देश के शीर्ष पद पर आसीन हुई हैं. भाजपा ने इसका श्रेय भी खूब बटोरा. खुद को आदिवासियों का सच्चा पैरोकार बताया. लेकिन झामुमो ने विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के बजाए द्रौपदी मुर्मू के लिए वोटिंग कर बता दिया कि वह आदिवासी एजेंडे से कोई कॉमप्रोमाइज नहीं करने वाला.

ये भी पढ़ें- माननीयों के आदिवासी प्रेम का सच, ज्यादातर को भाते हैं गैर आदिवासी, ईटीवी भारत की खरी-खरी

इधर, झारखंड की राजनीति में मचे उथल-पुथल के बीच झामुमो ने आदिवासी हित में एक और दांव खेल दिया है. राज्य बनने के बाद पहली बार झारखंड जनजातीय महोत्सव कराया जा रहा है. इसके जरिए समृद्ध जनजातीय जीवन दर्शन की झलकियां दिखायी जाएंगी. विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर 9 अगस्त को महोत्सव का आगाज होगा जो 10 अगस्त तक चलेगा. इसमें आदिवासियों की कला-संस्कृति, साहित्य, मानवशास्त्र पर संगोष्ठियां होंगी. उनके खान-पान को प्रदर्शित किया जाएगा. परिधान पर फोकस करते हुए फैशन शो होगा. इस महोत्सव में आदिवासी बहुल छत्तीगढ़, ओडिशा, मिजोरम समेत कई राज्यों के कलाकार शामिल होंगे. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को भी आमंत्रित किया गया है. इस महोत्सव की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि मुख्यमंत्री ने इससे जुड़ा प्रतीक चिन्ह जारी किया है.

आदिवासी प्रेम का मकसद: अब सवाल है कि आदिवासी समाज पर इतना प्रेम क्यों बरसाया जा रहा है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है वोट बैंक. फिलहाल झारखंड का आदिवासी समाज झामुमो के सबसे करीब है. 2019 के विधानसभा चुनाव में एसटी के लिए रिजर्व 28 सीटों में सबसे ज्यादा झामुमो को 19 सीटों पर जीत मिली है. दूसरे स्थान पर 6 सीटों के साथ कांग्रेस रही. जबकि भाजपा को खूंटी और तोरपा से संतोष करना पड़ा. शेष एक सीट जेवीएम के खाते में गयी थी. लेकिन चुनाव बाद जेवीएम के टूटने से समीकरण बदल गया है. कांग्रेस के पास एसटी सीट की संख्या 7 हो गई है. सभी पार्टियां बखूबी समझती हैं कि आदिवासी सपोर्ट के बिना झारखंड की सत्ता पर काबिज होना असंभव है. जानकारों का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा इस समाज को अपनी ओर करने की कोशिश में है. इसलिए जनजातीय महोत्सव (Tribal Festival) के जरिए झामुमो यह मैसेज देना चाह रहा है कि वही आदिवासियों का सच्चा हितैषी है.

ये भी पढ़ें- सत्ता का खेल: अरवा चावल को भाजपा बनाएगी आदिवासी प्रेम का प्रतीक, 5 जून को रांची में होगी आदिवासी महारैली, क्या है मकसद?

2014 में भाजपा क्यों हुई थी सत्ता पर काबिज: 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को 37 सीटों पर जीत मिली थी. तब मोदी लहर चल रही थी. उस दौरान भाजपा ने एसटी की 28 सीटों में से 11 सीटों पर कब्जा जमाया था. उसके सहयोगी आजसू को भी एसटी की दो सीटें मिली थी. इसके बावजूद 13 एसटी सीटों पर जीत के साथ झामुमो टॉप पर रहा. झामुमो ने साबित कर दिया था कि मोदी लहर के बावजूद आदिवासी उनके साथ थे. इसके अलावा निर्दलीय गीता कोड़ा और एनोस एक्का की जीत हुई थी. लेकिन 2019 के चुनाव में एसटी की 9 सीटें गंवाकर भाजपा सत्ता से बाहर हो गई. जानकारों का कहना है कि इसी कमी को पाटने के लिए आदिवासी वोट बैंक को साधने की कवायद चल रही है. हालाकि 2024 आने में वक्त है. तब देखना होगा कि राष्ट्रपति के पद पर द्रौपदी मुर्मू का आना भाजपा को फायदा पहुंचा पाता है या आदिवासियों की सहानुभूति झामुमो के साथ बनी रहती है.

रांची: राज्य गठन के बाद से ही झारखंड की राजनीति (Politics of Jharkhand) आदिवासी समाज के ईर्द-गिर्द घूमती रही है. रघुवर दास कों छोड़ दें तो अबतक आदिवासी समाज के हाथ में ही इस प्रदेश की कमान रही है. भले चेहरे किसी भी पार्टी के रहे हों. लेकिन द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद यह समाज देश की राजनीति के केंद्र में आ गया है. आजादी के बाद पहली बार एक आदिवासी महिला देश के शीर्ष पद पर आसीन हुई हैं. भाजपा ने इसका श्रेय भी खूब बटोरा. खुद को आदिवासियों का सच्चा पैरोकार बताया. लेकिन झामुमो ने विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के बजाए द्रौपदी मुर्मू के लिए वोटिंग कर बता दिया कि वह आदिवासी एजेंडे से कोई कॉमप्रोमाइज नहीं करने वाला.

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इधर, झारखंड की राजनीति में मचे उथल-पुथल के बीच झामुमो ने आदिवासी हित में एक और दांव खेल दिया है. राज्य बनने के बाद पहली बार झारखंड जनजातीय महोत्सव कराया जा रहा है. इसके जरिए समृद्ध जनजातीय जीवन दर्शन की झलकियां दिखायी जाएंगी. विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर 9 अगस्त को महोत्सव का आगाज होगा जो 10 अगस्त तक चलेगा. इसमें आदिवासियों की कला-संस्कृति, साहित्य, मानवशास्त्र पर संगोष्ठियां होंगी. उनके खान-पान को प्रदर्शित किया जाएगा. परिधान पर फोकस करते हुए फैशन शो होगा. इस महोत्सव में आदिवासी बहुल छत्तीगढ़, ओडिशा, मिजोरम समेत कई राज्यों के कलाकार शामिल होंगे. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को भी आमंत्रित किया गया है. इस महोत्सव की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि मुख्यमंत्री ने इससे जुड़ा प्रतीक चिन्ह जारी किया है.

आदिवासी प्रेम का मकसद: अब सवाल है कि आदिवासी समाज पर इतना प्रेम क्यों बरसाया जा रहा है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह है वोट बैंक. फिलहाल झारखंड का आदिवासी समाज झामुमो के सबसे करीब है. 2019 के विधानसभा चुनाव में एसटी के लिए रिजर्व 28 सीटों में सबसे ज्यादा झामुमो को 19 सीटों पर जीत मिली है. दूसरे स्थान पर 6 सीटों के साथ कांग्रेस रही. जबकि भाजपा को खूंटी और तोरपा से संतोष करना पड़ा. शेष एक सीट जेवीएम के खाते में गयी थी. लेकिन चुनाव बाद जेवीएम के टूटने से समीकरण बदल गया है. कांग्रेस के पास एसटी सीट की संख्या 7 हो गई है. सभी पार्टियां बखूबी समझती हैं कि आदिवासी सपोर्ट के बिना झारखंड की सत्ता पर काबिज होना असंभव है. जानकारों का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा इस समाज को अपनी ओर करने की कोशिश में है. इसलिए जनजातीय महोत्सव (Tribal Festival) के जरिए झामुमो यह मैसेज देना चाह रहा है कि वही आदिवासियों का सच्चा हितैषी है.

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2014 में भाजपा क्यों हुई थी सत्ता पर काबिज: 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को 37 सीटों पर जीत मिली थी. तब मोदी लहर चल रही थी. उस दौरान भाजपा ने एसटी की 28 सीटों में से 11 सीटों पर कब्जा जमाया था. उसके सहयोगी आजसू को भी एसटी की दो सीटें मिली थी. इसके बावजूद 13 एसटी सीटों पर जीत के साथ झामुमो टॉप पर रहा. झामुमो ने साबित कर दिया था कि मोदी लहर के बावजूद आदिवासी उनके साथ थे. इसके अलावा निर्दलीय गीता कोड़ा और एनोस एक्का की जीत हुई थी. लेकिन 2019 के चुनाव में एसटी की 9 सीटें गंवाकर भाजपा सत्ता से बाहर हो गई. जानकारों का कहना है कि इसी कमी को पाटने के लिए आदिवासी वोट बैंक को साधने की कवायद चल रही है. हालाकि 2024 आने में वक्त है. तब देखना होगा कि राष्ट्रपति के पद पर द्रौपदी मुर्मू का आना भाजपा को फायदा पहुंचा पाता है या आदिवासियों की सहानुभूति झामुमो के साथ बनी रहती है.

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