ETV Bharat / state

झारखंड आदिवासी महोत्सव पर राजनीति शुरू, सरना समिति ने सरकार को घेरा, झामुमो का जवाब, भाजपा का सुझाव, पढ़ें रिपोर्ट

9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है. झारखंड में इसे भव्य तरीके से मनाने की तैयारी चल रही है. इसे यहां झारखंड आदिवासी महोत्सव के रूप में मनाया जाएगा. हालांकि अब इस महोत्सव पर राजनीति होने लगी है.

Politics on World Tribal Day In Jharkhand
Politics on World Tribal Day In Jharkhand
author img

By

Published : Aug 5, 2023, 5:57 PM IST

Updated : Aug 5, 2023, 7:56 PM IST

रांची: विश्व आदिवासी दिवस को यादगार बनाने की जोर-शोर से तैयारी चल रही है. इसमें कोई शक नहीं कि झारखंड में विश्व आदिवासी दिवस को किसी ने व्यापक पहचान दिलायी तो वो हैं राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन. उनकी पहल पर पहली बार साल 2022 में मोरहाबादी में तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ. उसे 'झारखंड जनजातीय महोत्सव' का नाम दिया गया. इस साल वह नाम बदल गया है. जगह भी बदल गया है. स्वरूप भी बदल गया है. एक तरह से कहें तो इस आयोजन को और व्यापक स्वरूप दिया जा रहा है.

ये भी पढ़ें: Uniform Civil Code: आदिवासियों को अपनी जमीन जाने का क्यों है डर, जानिए, क्या कहता है जनजातीय समाज

इस साल विश्व आदिवासी दिवस को 'झारखंड आदिवासी महोत्सव' के रूप में मनाए जाने की तैयारी है, जो दो दिन दिन तक चलेगा. मुख्य आयोजन पुराना जेल रोड स्थित भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह संग्रहालय में होगा. जनजातीय कला संस्कृति, खान-पान, वेश-भूषा का अनोखा संगम दिखेगा. राष्ट्रीय स्तर के आदिवासी मामलों के जानकार मंथन करने जुटेंगे. जिला स्तर पर खेल का आयोजन होगा. स्थानीय कलाकार अपनी आवाज से समा बांधेंगे तो नृत्यकार थिरकने पर विवश करेंगे. अब सवाल है कि इतने व्यापक स्तर पर विश्व आदिवासी दिवस को मनाने के पीछे का आखिर क्या मकसद हो सकता है. आखिर राज्य बनने के साथ ही इस परंपरा को क्यों नहीं शुरू किया गया.

आदिवासी सरना समिति निकालेगी आक्रोश मार्च: पूर्व विधायक देवकुमार धान ने कहा कि देश में इतना कुछ हो रहा है और मुख्यमंत्री उत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं. मुख्यमंत्री को क्यों नहीं समझ में आ रहा है कि मणिपुर में आदिवासी समाज पर अत्याचार हो रहा है. दूसरी तरफ यूनिफॉर्म सिविल कोड लाकर आदिवासियों की पहचान खत्म करने की तैयारी चल रही है. मध्य प्रदेश में दलित पर पेशाब करने जैसी अमानवीय घटना हुई है. लिहाजा, आदिवासी सरना समिति अपने गौरव दिवस को उत्सव के रूप में नहीं बल्कि आक्रोश को रूप में मनाएगी. हम कोई खुशी नहीं मनाएंगे. हम न नाचेंगे और न गायेंगे. काला बिल्ला लगाकर पूरे देश में मार्च करेंगे. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार सिर्फ वोट बैंक के लिए आदिवासी प्रेम दिखाने की कोशिश कर रही है.

Politics on World Tribal Day In Jharkhand
देवकुमार धान का बयान

भाजपा का सवालों के साथ सुझाव: आदिवासी कला-संस्कृति को बढ़ाने का भाजपा हमेशा समर्थन करती है. लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले इस तरह के आयोजन पर सवाल तो उठेगा ही. भाजपा प्रवक्ता प्रतुल नाथ शाहदेव ने कहा कि सरकार को चाहिए कि आदिम जनजातियों की समृद्ध संस्कृति से भी लोगों को रूबरू कराए.

झारखंड मुक्ति मोर्चा का जवाब: केंद्रीय सरना समिति के सवाल पर झामुमो नेता मनोज पांडेय ने जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि केंद्रीय सरना समिति कई धड़ों में बंटा है. देवकुमार धान का भाजपा के प्रति रूझान है. वह भाजपा के इशारे पर ऐसी बातें कह रहे हैं. वह भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. हमारी पार्टी ने आदिवासी दिवस को परंपरा के रूप में मनाने की शुरूआत की है. हमारी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी कला-संस्कृति, साहित्य को पहचान दिलायी है. यह बात विरोधियों को नहीं पच रही है. इसलिए अनर्गल बातें कर रहे हैं.

Politics on World Tribal Day In Jharkhand
मनोज पांडे का बयान

आदिवासी वोट बैंक का खेल: राजनीति के जानकारों का मानना है कि आदिवासी वोट साधे बगैर सत्ता तक पहुंचना टेढ़ी खीर है. इसको सभी पार्टियां समझतीं हैं. वर्तमान में एसटी की 28 सीटों में सबसे ज्यादा झामुमो के पास 19 सीटें हैं. 6 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे स्थान पर है. 2014 के चुनाव में 11 सीटें जीतने वाली भाजपा 02 सीटों पर सिमट गई है. इसलिए सभी पार्टियों पर नजर आदिवासी वोट बैंक पर है. भाजपा ने तो बाबूलाल मरांडी को सामने लाकर मैसेज भी दे दिया है कि वह आदिवासी समाज की कितनी हिमायती है. लेकिन हेमंत सोरेन अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने में जुटे हैं. इसलिए ऐसे महोत्सव को जरिए आदिवासी युवाओं को भावनात्मक रूप से जोड़ रहे हैं. वह बताना चाह रहे हैं कि राज्य की सत्ता सबसे ज्यादा समय तक भाजपा के हाथ में रही है फिर भी आदिवासी समाज का भला नहीं हो पाया.

कई राज्यों से जुटेंगे स्कॉलर: जनजातीय शोध संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार ने कहा कि मैं राजनीतिक मसले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता. उन्होंने बताया कि शोध संस्थान के निदेशक के नाते हमारी कोशिश है कि आदिवासी दर्शन, इतिसाह, साहित्य और मानवता पर चर्चा हो. इसके लिए नॉर्थ इस्ट के सभी राज्यों से कई साहित्यकार आमंत्रित किए गये हैं. इनमें मणिपुर से भी दो जानकार आ रहे हैं. पैनल डिस्कसन में महाराष्ट्र, राजस्थान, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के भी साहित्यकार आमंत्रित हैं. उन्होंने बताया कि ट्राइबल फिल्म फेस्टिवल में कलम, कूची और कैमरा के जरिए आदिवासी दर्शन, कला और साहित्य पर आधारित शाश्वत ज्ञान की परंपरा से रूबरू कराने की कोशिश की जाएगी.

क्यों मनाया जाता है विश्व आदिवासी दिवस: विश्व आदिवासी दिवस संयुक्त राष्ट्र महासभा की देन है. संयुक्त राष्ट्र कार्यसमूह ने 1982 में मूल निवासियों के संवर्धन और संरक्षण पर पहली बैठक की थी. इसके बाद 23 दिसंबर 1994 के प्रस्ताव से 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत हुई. इस दिन को पूरे विश्व के आदिवासी सेलिब्रेट करते हैं. पारंपरिक लिबास पहनते हैं. सांस्कृतक कार्यक्रम आयोजित करते हैं. पारंपरिक भोजन का तुत्फ उठाते है और अपने अधिकारों को लेकर चर्चा करते हैं. भारत के राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में करीब 705 तरह के आदिवासी समाज निवास करत हैं.

झारखंड में किसने शुरू की पहल: संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहल पर 1994 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई थी. लेकिन झारखंड में इसकी शुरूआत प्रख्यात भाषाविद, समाजशास्त्री और आदिवासी मामलों के जानकार डॉ रामदयाल मुंडा ने शुरू कराई. उनकी पहल पर 9 अगस्त को बुद्धिजीवी जुटते थे और आदिवासी समाज की कला-संस्कृति, रीति-रिवाज पर चर्चा के साथ उनके संवर्धन पर मंथन करते थे. इसको एक उत्सव का रूप दिया पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने. वह पारंपरिक जनजातीय वेशभूषा के साथ रांची की सड़कों पर पदयात्रा करने लगे.

Politics on World Tribal Day In Jharkhand
GFX ETV BHARAT

आदिवासी जनसंख्या का राज्यवार प्रतिशत: झारखंड को आदिवासी बहुल राज्य कहा जाता है. इसकी वजह है कि झारखंड की कुल आबादी में आदिवासी जनसंख्या की हिस्सेदारी करीब 26.21 प्रतिशत है. 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में आदिवासियों की संख्या 10.42 करोड़ है. इनमें से 9.38 करोड़ आबादी गांवों, पहाड़ों, जंगलों में निवास करती है. जबकि महज 01 करोड़ आबादी शहरी क्षेत्रों में. भारत में आदिवासियों की आबादी कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत है. झारखंड में कुल 32 जनजातियां हैं. इनमें 08 आदिम जनजातियां हैं.

लेकिन देश में आदिवासियों की कुल जनसंख्या के मामले में झारखंड छठे स्थान पर है. भारत में सबसे ज्यादा 14.7 प्रतिशत आदिवासी मध्य प्रदेश में रहते हैं. महाराष्ट्र में 10.1 प्रतिशत, ओड़िशा में 9.2 प्रतिशत, राजस्थान में 8.9 प्रतिशत, गुजरात में 8.6 प्रतिशत और झारखंड में 8.3 प्रतिशत आदिवासी निवास करते हैं. इसके बाद 7.50 प्रतिशत के साथ छत्तीसगढ़ 7वें नंबर पर है. जाहिर है, विविधताओं से भरे इतने बड़े समूह की अनदेखी नहीं हो सकती. लिहाजा, वक्त के साथ राजनीति में आदिवासी समाज की भागीदारी पर फोकस किया जाने लगा. इसका असर उन राज्यों में ज्यादा हुआ, जहां आदिवासी समाज की जनसंख्या वहां की कुल जनसंख्या की तुलना में इतनी है जो चुनाव का रुख बदल सकती हैं.

झारखंड में आदिवासियों के लिए योजनाएं: आदिवासी छात्र-छात्राओं में शिक्षा का अलख जगाने के लिए सात एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, 11 आस्रम विद्यालय, 07 आवासीय प्राथमिक विद्यालय, आदिम जनजाति के लिए 9 प्राथमिक आवासीय विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं. प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत कक्षा 01 से 05, कक्षा 06 से 08 और कक्षा 09 से 10 के लिए 1500 रु., 2500 रु., और 4500 रु 10 माह के लिए दिए जा रहे हैं.

दसवीं के बाद पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना की भी सुविधा दी जा रही है. चयनित आदिवासी छात्र-छात्राओं को विदेश में पढ़ाई के लिए मरांड गोमके जयपाल सिंह मुंडा पारदेशीय छात्रवृत्ति योजना चल रही है. 13 अनुसूचित जिलों में 50 शैय्या वाले 16 कल्याण अस्पताल संचालित किए जा रहे हैं. इसके अलावा पहाड़िया स्वास्थ्य उपकेंद्र, आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्र और मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सहायता योजना का भी लाभ दिया जा रहा है. आदिवासी संस्कृति एवं कला केंद्र के अलावा धुमकुड़िया भवन का निर्माण हो रहा है. प्रेझा फाउंडेशन की ओर से 21 कल्याण गुरूकुल, 08 नर्सिंग कॉलेज और एक आईटीआई कौशल कॉलेज का संचालन हो रहा है.

रांची: विश्व आदिवासी दिवस को यादगार बनाने की जोर-शोर से तैयारी चल रही है. इसमें कोई शक नहीं कि झारखंड में विश्व आदिवासी दिवस को किसी ने व्यापक पहचान दिलायी तो वो हैं राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन. उनकी पहल पर पहली बार साल 2022 में मोरहाबादी में तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ. उसे 'झारखंड जनजातीय महोत्सव' का नाम दिया गया. इस साल वह नाम बदल गया है. जगह भी बदल गया है. स्वरूप भी बदल गया है. एक तरह से कहें तो इस आयोजन को और व्यापक स्वरूप दिया जा रहा है.

ये भी पढ़ें: Uniform Civil Code: आदिवासियों को अपनी जमीन जाने का क्यों है डर, जानिए, क्या कहता है जनजातीय समाज

इस साल विश्व आदिवासी दिवस को 'झारखंड आदिवासी महोत्सव' के रूप में मनाए जाने की तैयारी है, जो दो दिन दिन तक चलेगा. मुख्य आयोजन पुराना जेल रोड स्थित भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान सह संग्रहालय में होगा. जनजातीय कला संस्कृति, खान-पान, वेश-भूषा का अनोखा संगम दिखेगा. राष्ट्रीय स्तर के आदिवासी मामलों के जानकार मंथन करने जुटेंगे. जिला स्तर पर खेल का आयोजन होगा. स्थानीय कलाकार अपनी आवाज से समा बांधेंगे तो नृत्यकार थिरकने पर विवश करेंगे. अब सवाल है कि इतने व्यापक स्तर पर विश्व आदिवासी दिवस को मनाने के पीछे का आखिर क्या मकसद हो सकता है. आखिर राज्य बनने के साथ ही इस परंपरा को क्यों नहीं शुरू किया गया.

आदिवासी सरना समिति निकालेगी आक्रोश मार्च: पूर्व विधायक देवकुमार धान ने कहा कि देश में इतना कुछ हो रहा है और मुख्यमंत्री उत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं. मुख्यमंत्री को क्यों नहीं समझ में आ रहा है कि मणिपुर में आदिवासी समाज पर अत्याचार हो रहा है. दूसरी तरफ यूनिफॉर्म सिविल कोड लाकर आदिवासियों की पहचान खत्म करने की तैयारी चल रही है. मध्य प्रदेश में दलित पर पेशाब करने जैसी अमानवीय घटना हुई है. लिहाजा, आदिवासी सरना समिति अपने गौरव दिवस को उत्सव के रूप में नहीं बल्कि आक्रोश को रूप में मनाएगी. हम कोई खुशी नहीं मनाएंगे. हम न नाचेंगे और न गायेंगे. काला बिल्ला लगाकर पूरे देश में मार्च करेंगे. उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार सिर्फ वोट बैंक के लिए आदिवासी प्रेम दिखाने की कोशिश कर रही है.

Politics on World Tribal Day In Jharkhand
देवकुमार धान का बयान

भाजपा का सवालों के साथ सुझाव: आदिवासी कला-संस्कृति को बढ़ाने का भाजपा हमेशा समर्थन करती है. लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले इस तरह के आयोजन पर सवाल तो उठेगा ही. भाजपा प्रवक्ता प्रतुल नाथ शाहदेव ने कहा कि सरकार को चाहिए कि आदिम जनजातियों की समृद्ध संस्कृति से भी लोगों को रूबरू कराए.

झारखंड मुक्ति मोर्चा का जवाब: केंद्रीय सरना समिति के सवाल पर झामुमो नेता मनोज पांडेय ने जवाब दिया है. उन्होंने कहा कि केंद्रीय सरना समिति कई धड़ों में बंटा है. देवकुमार धान का भाजपा के प्रति रूझान है. वह भाजपा के इशारे पर ऐसी बातें कह रहे हैं. वह भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. हमारी पार्टी ने आदिवासी दिवस को परंपरा के रूप में मनाने की शुरूआत की है. हमारी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी कला-संस्कृति, साहित्य को पहचान दिलायी है. यह बात विरोधियों को नहीं पच रही है. इसलिए अनर्गल बातें कर रहे हैं.

Politics on World Tribal Day In Jharkhand
मनोज पांडे का बयान

आदिवासी वोट बैंक का खेल: राजनीति के जानकारों का मानना है कि आदिवासी वोट साधे बगैर सत्ता तक पहुंचना टेढ़ी खीर है. इसको सभी पार्टियां समझतीं हैं. वर्तमान में एसटी की 28 सीटों में सबसे ज्यादा झामुमो के पास 19 सीटें हैं. 6 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे स्थान पर है. 2014 के चुनाव में 11 सीटें जीतने वाली भाजपा 02 सीटों पर सिमट गई है. इसलिए सभी पार्टियों पर नजर आदिवासी वोट बैंक पर है. भाजपा ने तो बाबूलाल मरांडी को सामने लाकर मैसेज भी दे दिया है कि वह आदिवासी समाज की कितनी हिमायती है. लेकिन हेमंत सोरेन अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने में जुटे हैं. इसलिए ऐसे महोत्सव को जरिए आदिवासी युवाओं को भावनात्मक रूप से जोड़ रहे हैं. वह बताना चाह रहे हैं कि राज्य की सत्ता सबसे ज्यादा समय तक भाजपा के हाथ में रही है फिर भी आदिवासी समाज का भला नहीं हो पाया.

कई राज्यों से जुटेंगे स्कॉलर: जनजातीय शोध संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार ने कहा कि मैं राजनीतिक मसले पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता. उन्होंने बताया कि शोध संस्थान के निदेशक के नाते हमारी कोशिश है कि आदिवासी दर्शन, इतिसाह, साहित्य और मानवता पर चर्चा हो. इसके लिए नॉर्थ इस्ट के सभी राज्यों से कई साहित्यकार आमंत्रित किए गये हैं. इनमें मणिपुर से भी दो जानकार आ रहे हैं. पैनल डिस्कसन में महाराष्ट्र, राजस्थान, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के भी साहित्यकार आमंत्रित हैं. उन्होंने बताया कि ट्राइबल फिल्म फेस्टिवल में कलम, कूची और कैमरा के जरिए आदिवासी दर्शन, कला और साहित्य पर आधारित शाश्वत ज्ञान की परंपरा से रूबरू कराने की कोशिश की जाएगी.

क्यों मनाया जाता है विश्व आदिवासी दिवस: विश्व आदिवासी दिवस संयुक्त राष्ट्र महासभा की देन है. संयुक्त राष्ट्र कार्यसमूह ने 1982 में मूल निवासियों के संवर्धन और संरक्षण पर पहली बैठक की थी. इसके बाद 23 दिसंबर 1994 के प्रस्ताव से 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने की शुरूआत हुई. इस दिन को पूरे विश्व के आदिवासी सेलिब्रेट करते हैं. पारंपरिक लिबास पहनते हैं. सांस्कृतक कार्यक्रम आयोजित करते हैं. पारंपरिक भोजन का तुत्फ उठाते है और अपने अधिकारों को लेकर चर्चा करते हैं. भारत के राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में करीब 705 तरह के आदिवासी समाज निवास करत हैं.

झारखंड में किसने शुरू की पहल: संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहल पर 1994 में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई थी. लेकिन झारखंड में इसकी शुरूआत प्रख्यात भाषाविद, समाजशास्त्री और आदिवासी मामलों के जानकार डॉ रामदयाल मुंडा ने शुरू कराई. उनकी पहल पर 9 अगस्त को बुद्धिजीवी जुटते थे और आदिवासी समाज की कला-संस्कृति, रीति-रिवाज पर चर्चा के साथ उनके संवर्धन पर मंथन करते थे. इसको एक उत्सव का रूप दिया पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने. वह पारंपरिक जनजातीय वेशभूषा के साथ रांची की सड़कों पर पदयात्रा करने लगे.

Politics on World Tribal Day In Jharkhand
GFX ETV BHARAT

आदिवासी जनसंख्या का राज्यवार प्रतिशत: झारखंड को आदिवासी बहुल राज्य कहा जाता है. इसकी वजह है कि झारखंड की कुल आबादी में आदिवासी जनसंख्या की हिस्सेदारी करीब 26.21 प्रतिशत है. 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में आदिवासियों की संख्या 10.42 करोड़ है. इनमें से 9.38 करोड़ आबादी गांवों, पहाड़ों, जंगलों में निवास करती है. जबकि महज 01 करोड़ आबादी शहरी क्षेत्रों में. भारत में आदिवासियों की आबादी कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत है. झारखंड में कुल 32 जनजातियां हैं. इनमें 08 आदिम जनजातियां हैं.

लेकिन देश में आदिवासियों की कुल जनसंख्या के मामले में झारखंड छठे स्थान पर है. भारत में सबसे ज्यादा 14.7 प्रतिशत आदिवासी मध्य प्रदेश में रहते हैं. महाराष्ट्र में 10.1 प्रतिशत, ओड़िशा में 9.2 प्रतिशत, राजस्थान में 8.9 प्रतिशत, गुजरात में 8.6 प्रतिशत और झारखंड में 8.3 प्रतिशत आदिवासी निवास करते हैं. इसके बाद 7.50 प्रतिशत के साथ छत्तीसगढ़ 7वें नंबर पर है. जाहिर है, विविधताओं से भरे इतने बड़े समूह की अनदेखी नहीं हो सकती. लिहाजा, वक्त के साथ राजनीति में आदिवासी समाज की भागीदारी पर फोकस किया जाने लगा. इसका असर उन राज्यों में ज्यादा हुआ, जहां आदिवासी समाज की जनसंख्या वहां की कुल जनसंख्या की तुलना में इतनी है जो चुनाव का रुख बदल सकती हैं.

झारखंड में आदिवासियों के लिए योजनाएं: आदिवासी छात्र-छात्राओं में शिक्षा का अलख जगाने के लिए सात एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, 11 आस्रम विद्यालय, 07 आवासीय प्राथमिक विद्यालय, आदिम जनजाति के लिए 9 प्राथमिक आवासीय विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं. प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत कक्षा 01 से 05, कक्षा 06 से 08 और कक्षा 09 से 10 के लिए 1500 रु., 2500 रु., और 4500 रु 10 माह के लिए दिए जा रहे हैं.

दसवीं के बाद पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना की भी सुविधा दी जा रही है. चयनित आदिवासी छात्र-छात्राओं को विदेश में पढ़ाई के लिए मरांड गोमके जयपाल सिंह मुंडा पारदेशीय छात्रवृत्ति योजना चल रही है. 13 अनुसूचित जिलों में 50 शैय्या वाले 16 कल्याण अस्पताल संचालित किए जा रहे हैं. इसके अलावा पहाड़िया स्वास्थ्य उपकेंद्र, आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्र और मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सहायता योजना का भी लाभ दिया जा रहा है. आदिवासी संस्कृति एवं कला केंद्र के अलावा धुमकुड़िया भवन का निर्माण हो रहा है. प्रेझा फाउंडेशन की ओर से 21 कल्याण गुरूकुल, 08 नर्सिंग कॉलेज और एक आईटीआई कौशल कॉलेज का संचालन हो रहा है.

Last Updated : Aug 5, 2023, 7:56 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.