रांचीः झारखंड में ओबीसी हाशिए पर है. ओबीसी के नाम पर राजनीति होती रही है. लेकिन सरकारी नौकरी में आरक्षण का दायरा बढ़ने के बजाए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में आरक्षण से इस बार इस समाज को हाथ धोना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में राज्य सरकार ने जो फैसला लिया उससे ओबीसी समाज में नाराजगी बढ़ गई है.
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बिहार से अलग होकर बने झारखंड राज्य में ओबीसी की अच्छी खासी आबादी है. शुरुआती समय में ओबीसी को इसी आधार पर झारखंड में 27 फीसदी आरक्षण मिलता था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल केस का हवाला देते हुए तत्कालीन बाबूलाल मरांडी सरकार ने इसे घटाकर 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान कर दिया था. इसके बाद से जारी आंदोलन आज तक जारी है. इन सबके बीच पंचायत चुनाव से ओबीसी आरक्षण समाप्त किए जाने का चौतरफा विरोध हो रहा है.
पंचायत चुनाव में ओबीसी को आरक्षण नहींः राज्य निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव में सरकार के फैसले के अनुरूप बगैर ओबीसी आरक्षण का चुनाव कराने की घोषणा की है. जिसके तहत आयोग ने सभी उपायुक्तों को पत्र भेजकर पूर्व में निर्धारित ओबीसी सीट को सामान्य सीट घोषित करने का निर्देश दिया है. इस तरह से राज्य में 9077 पदों पर ओबीसी का आरक्षण समाप्त करते हुए इसे सामान्य सीटें घोषित की गई हैं. राज्य निर्वाचन आयोग के इस फैसले के बाद पूर्व निर्धारित 25,725 अनारक्षित सीटों की संख्या बढ़कर अब 34,802 हो गई है.
क्या कहते हैं मौजूदा आंकड़ेः ओबीसी आरक्षण समाप्त होने के बाद पदवार आरक्षित सीटों की मौजूदा हाल इस प्रकार है. जिप सदस्य के कुल 536 पद हैं, जिसमें एसटी/एससी- 64/178 और सामान्य 294 पद हैं. पंचायत समिति सदस्य के कुल पद 5341 हैं, जिसमें एसटी/एससी- 639/1773 और सामान्य 2929 पद हैं. वहीं मुखिया के कुल पद 4345 हैं, जिसमें एसटी/एससी- 412/2272 और सामान्य पद 1261 हो गए हैं. इसी तरह ग्राम पंचायत सदस्य के कुल पद 53479 हैं, जिसमें एसटी/एससी- 6101/17060 और सामान्य पद 30318 हो गए हैं.
झारखंड में ओबीसी के नाम पर राजनीतिः प्रदेश में ओबीसी आरक्षण बढ़ाने को लेकर राजनीति होती रही है. पिछले विधानसभा चुनाव में भी ओबीसी आरक्षण का मुद्दा छाया रहा. भाजपा पर ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगाते हुए सत्तारूढ़ गठबंधन दल जेएमएम, कांग्रेस और राजद ने चुनावी एजेंडा बनाते हुए सत्ता में आने पर ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था. इसको आधार बनाकर विपक्ष बजट सत्र में भी हमलावर रहा.
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इस बार बगैर ओबीसी आरक्षण के पंचायत चुनाव कराने के फैसले के बाद राजनीतिक सामाजिक संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ओबीसी मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष कैलाश यादव ने सरकार के इस फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा है कि सरकार को ना केवल पंचायत चुनाव बल्कि भविष्य के विधानसभा और लोकसभा में भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इधर विपक्षी दल बीजेपी ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि मध्य प्रदेश में विपक्ष में रह रही कांग्रेस वहां सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार आयोग गठित कर पिछड़ों का सर्वे कराकर आरक्षण देने की वकालत कर रही है.
उन्होंने हेमंत सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि झारखंड में सत्तासीन कांग्रेस बगैर ओबीसी आरक्षण का पंचायत चुनाव कराने पर आमादा है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने दलीय आधार पर चुनाव कराने की मांग करते हुए कहा है कि राज्य सरकार में अगर दम है तो आयोग का गठन कर उसकी रिपोर्ट पर पिछड़ों का आरक्षण का प्रावधान करें. इधर सामाजिक राजनीतिक आलोचना को झेल रहे ग्रामीण विकास सह पंचायती राज मंत्री आलमगीर आलम ने पलटवार करते हुए कहा है कि ओबीसी का 27 प्रतिशत आरक्षण को कम कर 14 प्रतिशत करने वाली बीजेपी को बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.
पूरे देश में झारखंड ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहां सबसे ज्यादा आबादी ओबीसी की है, फिर भी राज्य स्तर पर सबसे कम आरक्षण मिल रहा है. जबकि एसटी को 26% आबादी की तुलना में 26% आरक्षण मिल रहा है यानी 100 फीसदी. वहीं अनुसूचित जाति को 12.1% आबादी की तुलना में 10% आरक्षण मिल रहा है. ऐसे में इस बार के पंचायत चुनाव में भागीदारी खत्म होते ही एक बार फिर ओबीसी आरक्षण को लेकर सियासत परवान पर है.