रांची: झारखंड में नक्सलवाद बड़ी समस्या है. इसकी शुरुआत 1980 के दशक में राज्य के विभिन्न जिलों में हुआ था, जिसके बाद धीरे-धीरे कुछ जिलों को छोड़कर पूरे राज्य भर में यह अपना पांव पसारने लगा. देश के दूसरे राज्यों से झारखंड में नेटवर्क बनाकर काम कर रहे हैं. नक्सली हिंसा आए दिन होती रहती है. हालांकि हाल के वर्षों में नक्सलियों के खिलाफ चले अभियान की वजह से उसमें कमी आई है.
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार पुलिस की दबिश और सरकार की प्रत्यर्पण नीति की वजह से झारखंड के 24 में से 5 जिले वर्तमान समय में नक्सलवाद से जूझ रहा है. झारखंड के जंगलों में सबसे पुराना और बड़ा होने की वजह से बूढ़ा पहाड़ के रूप में जाना जाने वाला यह क्षेत्र नक्सलियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह मानी जाती है. वीहड़ और दुर्गम क्षेत्र होने की वजह से इस क्षेत्र को नक्सल मुक्त करना सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के लिए चुनौती बनी हुई थी. लातेहार और गढ़वा जिला में स्थित बूढ़ा पहाड़ झारखंड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ से मिलती है इस वजह से जब कभी भी छत्तीसगढ़ में पुलिस ऑपरेशन होते हैं तो नक्सली भागकर बूढ़ा पहाड़ क्षेत्र में पहुंच जाते थे.
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नक्सलवाद पर होती रही है राजनीति: जब कभी भी नक्सली हिंसा होती है तो इस पर राजनीति होती रही है. सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने-सामने होता रहा है. मगर हकीकत यह है कि नक्सलवाद को पनपने में कहीं ना कहीं झारखंड के कई सफेदपोश राजनेताओं का भी हाथ रहा है, जिसको लेकर आज भी सियासत जारी है. पूर्व स्पीकर और वर्तमान में रांची के बीजेपी विधायक सीपी सिंह का मानना है कि रघुवर सरकार में नक्सली हिंसा में काफी कमी हुई थी इसके पीछे पुलिस की दबिश और सरकार की नीति को माना जाता है. मगर जैसे ही सरकार बदली राज्य में नक्सली अपना पांव पसारने लगे. आज हालत यह है कि राज्य के कई जिलों में नक्सली हिंसा शुरू हो गई है.
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इधर, बीजेपी के आरोप पर पलटवार करते हुए सत्तारूढ़ दल कांग्रेस का मानना है कि 18 वर्षों तक राज्य में सत्ता सुख भोगने वाली भारतीय जनता पार्टी इसके लिए जिम्मेदार है. जिसने कभी भी यहां के लोगों की समस्या का समाधान करने की कोशिश नहीं की. कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी ने बीजेपी को इसके लिए जिम्मेदार मानते हुए दावा किया है कि हेमंत सरकार के साढ़े तीन वर्षों में नक्सली हिंसा में कमी आई है और आने वाले समय में सरकार इस दिशा में और कठोर कदम उठाएगी.