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झारखंड विधानसभा का अजीब है पॉलिटिकल ट्रेंड, उम्मीदवारों की जीत के बजाए हार में ज्यादा है इंटरेस्ट

झारखंड विधानसभा के पांचों चरण का चुनाव शुक्रवार को संपन्न हो गया. इस बार के चुनाव में लोगों को एक अलग ट्रेंड देखने को मिल रहा है. इस बार विधानसभा की 81 सीटों पर हुए चुनाव में प्रत्याशियों की जीत से ज्यादा हार के बारे में जानने को लेकर ज्यादा उत्सुकता नजर आ रही है.

झारखंड विधानसभा का अजीब है पॉलिटिकल ट्रेंड, उम्मीदवारों की जीत के बजाए हार में ज्यादा है इंटरेस्ट
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Published : Dec 21, 2019, 3:16 PM IST

Updated : Dec 22, 2019, 12:27 AM IST

रांचीः झारखंड में हुए 5 चरणों में विधानसभा चुनाव को लेकर एक अजीब तरीके का ट्रेंड देखने को मिल रहा है. झारखंड विधानसभा की 81 सीटों पर हुए चुनाव में प्रत्याशियों की जीत से ज्यादा हार के बारे में जानने को लेकर ज्यादा उत्सुकता नजर आ रही है. दरअसल इस ट्रेंड को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि आखिर ऐसी स्थितियां क्यों आ रही है.

देखें पूरी खबर

इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में दरअसल सत्तारूढ़ बीजेपी ने अपने कुछ ऐसे विधायकों को मौका नहीं दिया, जिसकी वजह से वह बागी हो गए. उनमें से एक सरयू राय ने अपना विधानसभा इलाका छोड़ मुख्यमंत्री रघुवर दास के विधानसभा से नॉमिनेशन कर दिया. उसके बाद से प्रदेश की पॉलिटिक्स में जीत और हार दोनों शब्दों के मायने पर चर्चा शुरू हो गई.

आयातित उम्मीदवार भी हैं एक वजह

दूसरी प्रमुख वजह यह रही कि बीजेपी शासनकाल में एक दर्जन से अधिक सीटों पर वैसे लोगों को टिकट दिया गया जिनके खिलाफ 2014 में पार्टी कैडर ने अपना पसीना बहाया था. उनमें सबसे प्रमुख कांग्रेस और झामुमो के 2-2 विधायक थे. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की माने तो जिन उम्मीदवारों के खिलाफ 2014 में पार्टी कैडर गोल बंदहुआ और उनके खिलाफ प्रचार में लगा रहा अब उनके नाम का झंडा ढ़ोने में उन्हें असहजता महसूस होने लगी. ऐसे में उन इलाकों के कथित तौर पर उन उम्मीदवारों की हार में अपनी जीत तलाशने लगे. यही वजह भी प्रमुख मानी जा रही है कि अब उम्मीदवारों की जीत के बचाए हार को लेकर ज्यादा चर्चा हो रही है.

यह भी पढ़ें- हजारीबाग की विधवा महिला समूह को दिल्ली में मिलेगा सम्मान, जानिए उनकी खासियत

वैसी सीटें जिन पर है खास नजर

इस विधानसभा चुनाव में पूरे देश की नजर जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा इलाके पर है. जहां से मुख्यमंत्री रघुवर दास बीजेपी के प्रत्याशी हैं जबकि उन्हें उनके ही कैबिनेट सहयोगी रहे सरयू राय ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनौती दी है. राय जमशेदपुर पश्चिमी सीट से विधायक रहे लेकिन इस बार बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और उन्होंने मुख्यमंत्री को चुनौती दे डाली है. इसके अलावा पक्ष और विपक्ष की नजर दुमका, लोहरदगा, बहरागोड़ा, छतरपुर समेत एक दर्जन से अधिक विधानसभा इलाकों पर है जिन पर बीजेपी को विपक्षी दल कड़ी टक्कर दे रहे हैं.

यह भी पढ़ें- धनबादः DC ने किया मतगणना केंद्र का निरीक्षण, तैयारियों की दी जानकारी

क्या कहती है बीजेपी और जेएमएम

हालांकि इस विषय पर बीजेपी का साफ कहना है कि नेगेटिव बातें जल्दी फैलती है. पार्टी के युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अमित कुमार ने कहा कि अगर कोई यह जानना भी चाहता है कि हार किसकी हो रही है तो इसमें भी बीजेपी का कहीं ना कहीं फायदा है. इसका यही अर्थ है कि लोग बीजेपी के प्रति आज भी झुकाव रखते हैं और नतीजे भी पार्टी के फेवर में आएंगे. वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज कुमार पांडे ने कहा कि दरअसल इस विधानसभा चुनाव में एक तरफ जहां बीजेपी के खिलाफ माहौल बना वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री रघुवर दास की बातों से लोग आजिज आ गए. यही वजह है कि मतदान में उन्होंने सीधे तौर पर अपना भाव व्यक्त कर दिया.

रांचीः झारखंड में हुए 5 चरणों में विधानसभा चुनाव को लेकर एक अजीब तरीके का ट्रेंड देखने को मिल रहा है. झारखंड विधानसभा की 81 सीटों पर हुए चुनाव में प्रत्याशियों की जीत से ज्यादा हार के बारे में जानने को लेकर ज्यादा उत्सुकता नजर आ रही है. दरअसल इस ट्रेंड को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि आखिर ऐसी स्थितियां क्यों आ रही है.

देखें पूरी खबर

इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में दरअसल सत्तारूढ़ बीजेपी ने अपने कुछ ऐसे विधायकों को मौका नहीं दिया, जिसकी वजह से वह बागी हो गए. उनमें से एक सरयू राय ने अपना विधानसभा इलाका छोड़ मुख्यमंत्री रघुवर दास के विधानसभा से नॉमिनेशन कर दिया. उसके बाद से प्रदेश की पॉलिटिक्स में जीत और हार दोनों शब्दों के मायने पर चर्चा शुरू हो गई.

आयातित उम्मीदवार भी हैं एक वजह

दूसरी प्रमुख वजह यह रही कि बीजेपी शासनकाल में एक दर्जन से अधिक सीटों पर वैसे लोगों को टिकट दिया गया जिनके खिलाफ 2014 में पार्टी कैडर ने अपना पसीना बहाया था. उनमें सबसे प्रमुख कांग्रेस और झामुमो के 2-2 विधायक थे. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की माने तो जिन उम्मीदवारों के खिलाफ 2014 में पार्टी कैडर गोल बंदहुआ और उनके खिलाफ प्रचार में लगा रहा अब उनके नाम का झंडा ढ़ोने में उन्हें असहजता महसूस होने लगी. ऐसे में उन इलाकों के कथित तौर पर उन उम्मीदवारों की हार में अपनी जीत तलाशने लगे. यही वजह भी प्रमुख मानी जा रही है कि अब उम्मीदवारों की जीत के बचाए हार को लेकर ज्यादा चर्चा हो रही है.

यह भी पढ़ें- हजारीबाग की विधवा महिला समूह को दिल्ली में मिलेगा सम्मान, जानिए उनकी खासियत

वैसी सीटें जिन पर है खास नजर

इस विधानसभा चुनाव में पूरे देश की नजर जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा इलाके पर है. जहां से मुख्यमंत्री रघुवर दास बीजेपी के प्रत्याशी हैं जबकि उन्हें उनके ही कैबिनेट सहयोगी रहे सरयू राय ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनौती दी है. राय जमशेदपुर पश्चिमी सीट से विधायक रहे लेकिन इस बार बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और उन्होंने मुख्यमंत्री को चुनौती दे डाली है. इसके अलावा पक्ष और विपक्ष की नजर दुमका, लोहरदगा, बहरागोड़ा, छतरपुर समेत एक दर्जन से अधिक विधानसभा इलाकों पर है जिन पर बीजेपी को विपक्षी दल कड़ी टक्कर दे रहे हैं.

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क्या कहती है बीजेपी और जेएमएम

हालांकि इस विषय पर बीजेपी का साफ कहना है कि नेगेटिव बातें जल्दी फैलती है. पार्टी के युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अमित कुमार ने कहा कि अगर कोई यह जानना भी चाहता है कि हार किसकी हो रही है तो इसमें भी बीजेपी का कहीं ना कहीं फायदा है. इसका यही अर्थ है कि लोग बीजेपी के प्रति आज भी झुकाव रखते हैं और नतीजे भी पार्टी के फेवर में आएंगे. वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज कुमार पांडे ने कहा कि दरअसल इस विधानसभा चुनाव में एक तरफ जहां बीजेपी के खिलाफ माहौल बना वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री रघुवर दास की बातों से लोग आजिज आ गए. यही वजह है कि मतदान में उन्होंने सीधे तौर पर अपना भाव व्यक्त कर दिया.

Intro:बाइट 1 अमित कुमार प्रदेश अध्यक्ष भाजयुमो
बाइट 2 मनोज कुमार पांडे केंद्रीय प्रवक्ता झामुमो


रांची। झारखंड में हुए 5 चरणों में विधानसभा चुनाव को लेकर एक अजीब तरीके का ट्रेंड देखने को मिल रहा है। झारखंड विधानसभा की 81 सीटों पर हुए चुनाव में प्रत्याशियों की जीत से ज्यादा हार के बारे में जानने को लेकर ज्यादा उत्सुकता नजर आ रही है। दरअसल इस ट्रेंड को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि आखिर ऐसी स्थितियां क्यों आ रही है।

इस बार हो रहे विधानसभा चुनाव में दरअसल सत्तारूढ़ बीजेपी में अपने कुछ ऐसे विधायकों को मौका नहीं दिया जिसकी वजह से वह बागी हो गए। उनमें से एक सरयू राय ने अपना विधानसभा इलाका छोड़ मुख्यमंत्री रघुवर दास के विधानसभा से नॉमिनेशन कर दिया। उसके बाद से प्रदेश की पॉलिटिक्स में जीत और हार दोनों शब्दों के मायने पर चर्चा शुरू हो गई।


Body:आयातित उम्मीदवार भी हैं एक वजह
दूसरी प्रमुख वजह यह रही कि बीजेपी शासन काल में एक दर्जन से अधिक सीटों पर वैसे लोगों को टिकट दिया गया जिनके खिलाफ 2014 में पार्टी कैडर ने अपना पसीना बहाया था। उनमें सबसे प्रमुख कांग्रेस और झामुमो के 2-2 विधायक थे। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों की माने तो जिन उम्मीदवारों के खिलाफ 2014 में पार्टी कैडर गोल बंदहुआ और उनके खिलाफ प्रचार में लगा रहा अब उनके नाम का झंडा ढ़ोने में उन्हें असहजता महसूस होने लगी। ऐसे में उन इलाकों के कथित तौर पर उन उम्मीदवारों की हार में अपनी जीत तलाशने लगे। यही वजह भी प्रमुख मानी जा रही है कि अब उम्मीदवारों की जीत के बचाए हार को लेकर ज्यादा चर्चा हो रही है।


Conclusion:वैसी सीटें जिन पर है खास नजर
इस विधानसभा चुनाव में पूरे देश की नजर जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा इलाके पर है। जहां से मुख्यमंत्री रघुवर दास बीजेपी के प्रत्याशी हैं जबकि उन्हें उनके ही कैबिनेट सहयोगी रहे सरयू राय ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनौती दी है। राय जमशेदपुर पश्चिमी सीट से विधायक रहे लेकिन इस बार बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और उन्होंने मुख्यमंत्री को चुनौती दे डाली है। इसके अलावा पक्ष और विपक्ष की नजर दुमका, लोहरदगा, बहरागोड़ा, छतरपुर समेत एक दर्जन से अधिक विधानसभा इलाकों पर है जिन पर बीजेपी को विपक्षी दल कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

क्या कहती है बीजेपी और जेएमएम
हालांकि इस विषय पर बीजेपी का साफ कहना है कि नेगेटिव बातें जल्दी फैलती है। पार्टी के युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अमित कुमार ने कहा कि अगर कोई यह जानना भी चाहता है कि हार किसकी हो रही है तो इसमें भी बीजेपी का कहीं ना कहीं फायदा है। इसका यही अर्थ है कि लोग बीजेपी के प्रति आज भी झुकाव रखते हैं और नतीजे भी पार्टी के फेवर में आएंगे। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज कुमार पांडे ने कहा कि दरअसल इस विधानसभा चुनाव में एक तरफ जहां बीजेपी के खिलाफ माहौल बना वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री रघुवर दास की बातों से लोग आजिज आ गए। यही वजह है कि मतदान में उन्होंने सीधे तौर पर अपना भाव व्यक्त कर दिया।
Last Updated : Dec 22, 2019, 12:27 AM IST

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