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1932 खतियान कोल्हान में झामुमो-कांग्रेस को करा देगा बड़ा नुकसान? जानिए, कोड़ा दंपती के विरोध पर जेएमएम की नरमी के मायने

झारखंड में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को लेकर राजनीति और सियासी बयानबाजी लगातार देखने को मिल रही है. लेकिन क्या हेमंत सोरेन का मास्टर स्ट्रोक ही कोल्हान में झामुमो-कांग्रेस को बड़ा नुकसान करा देगा और मधु कोड़ा और गीता कोड़ा के विरोध और झामुमो की नरमी के कोल्हान के लिए क्या संकेत हैं. सबकुछ जानिए, ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से.

Politics in Jharkhand regarding 1932 Khatian based Sthaniya Niti
रांची
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Published : Sep 19, 2022, 12:18 PM IST

Updated : Sep 19, 2022, 2:37 PM IST

रांचीः '1932 खतियान ही हमारी पहचान' का नारा बुलंद कर झारखंड में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को लाने वाली पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के नेताओं के बयान में नरमी के संकेत मिले हैं. आखिर इन सबका कोल्हान की सियासत पर क्या असर पड़ेगा, ये तो आने वाले समय में पता चल पाएगा.

कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के तीव्र विरोध और इसकी वापसी को लेकर किसी भी हद तक जाने की हुंकार के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि यह टेक्निकल मामला है और कोल्हान या उन क्षेत्रों में जहां सर्वे सेटलमेंट बाद में हुआ है, वहां के लिए अलग प्रावधान हो सकता है. वहीं संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने पहले ही कह दिया है कि विधानसभा में इस संदर्भ में बिल पटल पर आने के बाद विधायकों के पास उसमें संशोधन कराने का प्रस्ताव देने का अधिकार होता है. सदन से संशोधन प्रस्ताव पास होने पर उस संशोधन के साथ बिल कानून बनता है.

देखें पूरी खबर
ऐसे में सवाल यह है कि आखिर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को लेकर कोल्हान और गीता कोड़ा और मधु कोड़ा ने उलगुलान की चेतावनी क्यों दी है. कोल्हान से आने वाले झामुमो के विधायक भले ही चुप हैं पर उन्हें डर सता रहा है. डर इस बात का है कि अगर जैसा कैबिनेट ने प्रस्ताव पास किया है वही कानून बन जाए तो क्या इसका बड़ा नुकसान झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस को कोल्हान में उठाना पड़ेगा? इस सवाल के जवाब पर कोल्हान के ज्यादातर विधायक और मंत्री चुप्पी साध रखी है, चाहे वह बन्ना गुप्ता हों, चंपई सोरेन हों या जोबा मांझी.


इन आला नेताओं की चुप्पी पर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा कहते हैं कि झामुमो विधायक दीपक बिरुआ हों या कोई अन्य, वो इसलिए चुप हैं क्योंकि उन्हें फिर झामुमो की टिकट पर ही चुनाव लड़ना है, इसलिए सबकुछ जानते हुए भी वो चुप हैं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के 1932 के समर्थन पर मधु कोड़ा ने कहा कि उन्हें बोकारो से चुनाव लड़ना है पर मुझे पूरा कोल्हान देखना है. कोल्हान के 50 लाख की आबादी की हकमारी किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

खतियान और स्थानीयता, झारखंड का अहम मुद्दा, कोल्हान के हक पर कोड़ा दंपती ने लिया फुल माइलेजः 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान प्रमंडल से भाजपा का पूरा सूपड़ा साफ हो गया था. ईचागढ़ लगाकर सभी 14 सीटों में भाजपा एक भी विधानसभा सीट नहीं जीत पाई. गीता कोड़ा के पश्चिमी सिंहभूम से कांग्रेस सांसद होने से जगरनाथपुर विधानसभा सीट भी कांग्रेस की झोली में आई, बाकी 12 सीटें झामुमो ने जीत ली थी. लेकिन अब मधु कोड़ा और गीता कोड़ा ने 1932 के खतियान का विरोध शुरू कर दिया है तो कोल्हान की राजनीति में बदलाव होने वाला है.

झारखंड और खासकर कोल्हान की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि अगर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के कैबिनेट से पारित प्रस्ताव के वर्तमान प्रारूप में बदलाव नहीं हुआ तो कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों में झामुमो और कांग्रेस को चुनावी नुकसान उठाना पड़ सकता है. कोल्हान के 13 जिला और उससे सटे रांची लोकसभा के ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र में चुनावी फिजा में बदलाव हो सकता है. यही वजह है कि मधु कोड़ा और गीता कोड़ा ने बिना समय गंवाए कोल्हान की जनता की नब्ज और मर्म दोनों को पहचान कर उलगुलान का ऐलान कर दिया है. अब इसका कितना फायदा और कितना नुकसान कोड़ा दंपती को होगा यह तो वक्त बताएगा.

कोल्हान से आने वाले जेएमएम विधायकों ने साध रखी है चुप्पीः कोल्हान के जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय विधायक सरयू राय ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के कैबिनेट प्रस्ताव पर अपनी बात रख चुके हैं. जमशेदपुर पश्चिमी से विधायक सह स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता की बातों से लगता है कि वह असमंजस की स्थिति में हैं. जगरनाथपुर विधानसभा से कांग्रेस विधायक सोनाराम सिंकू का रुख क्या होगा अभी पता नहीं है. लेकिन यह साफ है कि उनके विचार कोड़ा दंपती के विचार से अलग नहीं होंगे. इनके अलावा अन्य अभी 11 विधायक (ईचागढ़ मिलाकर) जो झामुमो से हैं, वो खुलकर कुछ बोल नहीं रहे हैं. जाहिर है कि अगर कोल्हान में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू होने से कोल्हानवासियों को जिसकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 48 लाख 61 हजार से ज्यादा है, वह चुप नहीं बैठेगी. मधु कोड़ा के अनुसार कोल्हान में सर्वे सेटलमेंट 1964-65 में हुआ था और वहीं मान्य होना चाहिए.

क्या भाजपा को होगा कोल्हान में फायदाः ऐसे में सवाल उठता है कि अगर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति पर हेमंत सरकार अडिग रहती है तो कोल्हान में उसका फायदा किसे मिलेगा? क्या मधु कोड़ा की बनाई पिच भाजपा के लिए कोल्हान में चुनावी रण बनाने में मददगार साबित होगा? इस सवाल का जवाब इसमें छुपा है कि कोल्हान के लोगों की जनाकांक्षा और उनके हितों की आवाज को कोल्हान में भाजपा कैसे उठाती है. अभी 1932 खतियान और कोल्हान की जनाकांक्षा को लेकर ऐसा नहीं दिख रहा कि भाजपा कोल्हान में अपनी जनाधार को बढ़ाने की कोशिश भी करती दिखी हो. मधु कोड़ा ही उस इलाके की आवाज बुलंद कर सड़क से सदन तक, राजभवन से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक अपनी मांग रखने की बात करते दिखे हैं. जाहिर है कि इसका सबसे बड़ा फायदा मधु कोड़ा और गीता कोड़ा को ही मिलने वाला है. जिन्होंने यह मैसेज अपने क्षेत्र के लोगों के लिए दिया है कि उनके लिए कोल्हान और वहां के लोगों का हित ही राजनीति की पहली प्राथमिकता है.

कोल्हान क्षेत्र की सियासी तस्वीरः पूरे कोल्हान पर लगभाग जेएमएम का ही कब्जा है. जिसमें झामुमो के 11 विधायक हैं, कांग्रेस के दो विधायक और एक निर्दलीय विधायक हैं. जमशेदपुर पूर्वी से सरयू राय (निर्दलीय), जमशेदपुर पश्चिम से बन्ना गुप्ता (कांग्रेस), जगरनाथपुर से सोना राम सिंकू (कांग्रेस), जुगसलाई से मंगल कालिंदी, पोटका से संजीव सरदार, बहरागोड़ा से समीर मोहंती, घाटशिला से रामदास सोरेन, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मंझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी, चक्रधरपुर से सुखराम, सरायकेला से चंपई सोरेन, खरसावां से दशरथ गागराई और ईचागढ़ से सविता महतो, ये सभी जेएमएम के विधायक हैं.

रांचीः '1932 खतियान ही हमारी पहचान' का नारा बुलंद कर झारखंड में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को लाने वाली पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के नेताओं के बयान में नरमी के संकेत मिले हैं. आखिर इन सबका कोल्हान की सियासत पर क्या असर पड़ेगा, ये तो आने वाले समय में पता चल पाएगा.

कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के तीव्र विरोध और इसकी वापसी को लेकर किसी भी हद तक जाने की हुंकार के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि यह टेक्निकल मामला है और कोल्हान या उन क्षेत्रों में जहां सर्वे सेटलमेंट बाद में हुआ है, वहां के लिए अलग प्रावधान हो सकता है. वहीं संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने पहले ही कह दिया है कि विधानसभा में इस संदर्भ में बिल पटल पर आने के बाद विधायकों के पास उसमें संशोधन कराने का प्रस्ताव देने का अधिकार होता है. सदन से संशोधन प्रस्ताव पास होने पर उस संशोधन के साथ बिल कानून बनता है.

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ऐसे में सवाल यह है कि आखिर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को लेकर कोल्हान और गीता कोड़ा और मधु कोड़ा ने उलगुलान की चेतावनी क्यों दी है. कोल्हान से आने वाले झामुमो के विधायक भले ही चुप हैं पर उन्हें डर सता रहा है. डर इस बात का है कि अगर जैसा कैबिनेट ने प्रस्ताव पास किया है वही कानून बन जाए तो क्या इसका बड़ा नुकसान झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस को कोल्हान में उठाना पड़ेगा? इस सवाल के जवाब पर कोल्हान के ज्यादातर विधायक और मंत्री चुप्पी साध रखी है, चाहे वह बन्ना गुप्ता हों, चंपई सोरेन हों या जोबा मांझी.


इन आला नेताओं की चुप्पी पर पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा कहते हैं कि झामुमो विधायक दीपक बिरुआ हों या कोई अन्य, वो इसलिए चुप हैं क्योंकि उन्हें फिर झामुमो की टिकट पर ही चुनाव लड़ना है, इसलिए सबकुछ जानते हुए भी वो चुप हैं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के 1932 के समर्थन पर मधु कोड़ा ने कहा कि उन्हें बोकारो से चुनाव लड़ना है पर मुझे पूरा कोल्हान देखना है. कोल्हान के 50 लाख की आबादी की हकमारी किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

खतियान और स्थानीयता, झारखंड का अहम मुद्दा, कोल्हान के हक पर कोड़ा दंपती ने लिया फुल माइलेजः 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान प्रमंडल से भाजपा का पूरा सूपड़ा साफ हो गया था. ईचागढ़ लगाकर सभी 14 सीटों में भाजपा एक भी विधानसभा सीट नहीं जीत पाई. गीता कोड़ा के पश्चिमी सिंहभूम से कांग्रेस सांसद होने से जगरनाथपुर विधानसभा सीट भी कांग्रेस की झोली में आई, बाकी 12 सीटें झामुमो ने जीत ली थी. लेकिन अब मधु कोड़ा और गीता कोड़ा ने 1932 के खतियान का विरोध शुरू कर दिया है तो कोल्हान की राजनीति में बदलाव होने वाला है.

झारखंड और खासकर कोल्हान की राजनीति को समझने वाले बताते हैं कि अगर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के कैबिनेट से पारित प्रस्ताव के वर्तमान प्रारूप में बदलाव नहीं हुआ तो कोल्हान प्रमंडल के तीन जिलों में झामुमो और कांग्रेस को चुनावी नुकसान उठाना पड़ सकता है. कोल्हान के 13 जिला और उससे सटे रांची लोकसभा के ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र में चुनावी फिजा में बदलाव हो सकता है. यही वजह है कि मधु कोड़ा और गीता कोड़ा ने बिना समय गंवाए कोल्हान की जनता की नब्ज और मर्म दोनों को पहचान कर उलगुलान का ऐलान कर दिया है. अब इसका कितना फायदा और कितना नुकसान कोड़ा दंपती को होगा यह तो वक्त बताएगा.

कोल्हान से आने वाले जेएमएम विधायकों ने साध रखी है चुप्पीः कोल्हान के जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय विधायक सरयू राय ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के कैबिनेट प्रस्ताव पर अपनी बात रख चुके हैं. जमशेदपुर पश्चिमी से विधायक सह स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता की बातों से लगता है कि वह असमंजस की स्थिति में हैं. जगरनाथपुर विधानसभा से कांग्रेस विधायक सोनाराम सिंकू का रुख क्या होगा अभी पता नहीं है. लेकिन यह साफ है कि उनके विचार कोड़ा दंपती के विचार से अलग नहीं होंगे. इनके अलावा अन्य अभी 11 विधायक (ईचागढ़ मिलाकर) जो झामुमो से हैं, वो खुलकर कुछ बोल नहीं रहे हैं. जाहिर है कि अगर कोल्हान में 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू होने से कोल्हानवासियों को जिसकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 48 लाख 61 हजार से ज्यादा है, वह चुप नहीं बैठेगी. मधु कोड़ा के अनुसार कोल्हान में सर्वे सेटलमेंट 1964-65 में हुआ था और वहीं मान्य होना चाहिए.

क्या भाजपा को होगा कोल्हान में फायदाः ऐसे में सवाल उठता है कि अगर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति पर हेमंत सरकार अडिग रहती है तो कोल्हान में उसका फायदा किसे मिलेगा? क्या मधु कोड़ा की बनाई पिच भाजपा के लिए कोल्हान में चुनावी रण बनाने में मददगार साबित होगा? इस सवाल का जवाब इसमें छुपा है कि कोल्हान के लोगों की जनाकांक्षा और उनके हितों की आवाज को कोल्हान में भाजपा कैसे उठाती है. अभी 1932 खतियान और कोल्हान की जनाकांक्षा को लेकर ऐसा नहीं दिख रहा कि भाजपा कोल्हान में अपनी जनाधार को बढ़ाने की कोशिश भी करती दिखी हो. मधु कोड़ा ही उस इलाके की आवाज बुलंद कर सड़क से सदन तक, राजभवन से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक अपनी मांग रखने की बात करते दिखे हैं. जाहिर है कि इसका सबसे बड़ा फायदा मधु कोड़ा और गीता कोड़ा को ही मिलने वाला है. जिन्होंने यह मैसेज अपने क्षेत्र के लोगों के लिए दिया है कि उनके लिए कोल्हान और वहां के लोगों का हित ही राजनीति की पहली प्राथमिकता है.

कोल्हान क्षेत्र की सियासी तस्वीरः पूरे कोल्हान पर लगभाग जेएमएम का ही कब्जा है. जिसमें झामुमो के 11 विधायक हैं, कांग्रेस के दो विधायक और एक निर्दलीय विधायक हैं. जमशेदपुर पूर्वी से सरयू राय (निर्दलीय), जमशेदपुर पश्चिम से बन्ना गुप्ता (कांग्रेस), जगरनाथपुर से सोना राम सिंकू (कांग्रेस), जुगसलाई से मंगल कालिंदी, पोटका से संजीव सरदार, बहरागोड़ा से समीर मोहंती, घाटशिला से रामदास सोरेन, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मंझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी, चक्रधरपुर से सुखराम, सरायकेला से चंपई सोरेन, खरसावां से दशरथ गागराई और ईचागढ़ से सविता महतो, ये सभी जेएमएम के विधायक हैं.

Last Updated : Sep 19, 2022, 2:37 PM IST
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