रांचीः झारखंड की सड़कें अक्सर हादसों में इंसानी खून से लाल होती रहती हैं. इसमें हर साल हजारों लोगों की जान जाती है. झारखंड सरकार के आंकड़े भी यही कहते हैं, वर्ष 2018 में झारखंड में लगभग 5081 लोग सड़क हादसे के शिकार हुए जिसमें 3426 लोगों की जान चली गई. वहीं वर्ष 2019 में राज्य में 5212 लोग सड़क हादसे के शिकार हुए, जिसमें 3795 लोगों ने अपनी जान गंवा दी. लेकिन हादसों में मौत के आंकड़ों में कमी के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं. जो योजनाएं बनाई भी गईं हैं, उनको जमीन पर नहीं उतारा जा सका है.
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राइज अप संस्था से जुड़े ऋषभ आनंद कहते हैं झारखंड में हादसों और इसमें मौत की कई वजहें हैं. इसमें हाईवे पर वाहनों की तेज रफ्तार, सड़कें ठीक न होना, अनफिट वाहन, यातायात नियमों का उल्लंघन, कभी भी जानवरों का सड़क पर आ धमकना और हाईवे के पास चिकित्सा सुविधाओं की कमी प्रमुख हैं. चिकित्सकों का कहना है कि यदि समय से घायलों को अस्पताल पहुंचाया जा सके तो भी जख्मी लोगों की मौत के आंकड़ों में काफी कमी लाई जा सकती है. लेकिन इस दिशा में काफी काम बाकी है. उनका कहना है कि झारखंड में हर वर्ष लगभग छह हजार लोग सड़क हादसों के शिकार होते हैं जिसमें 3500 लोगों की मौत हो जाती है.
सड़क पर जानवर रोकना जरूरी
रोड सेफ्टी पर काम कर रहे हैं ऋषभ आनंद का कहना है कि कोरोना के बाद हर चीज खुल चुकी है. सड़कों पर गाड़ियां भी बढ़ गईं हैं. ये सड़क हादसे को आमंत्रित कर रही हैं. क्योंकि झारखंड में ट्रैफिक व्यवस्था अभी तक सुदृढ़ नहीं हो पाई है. नेशनल हाईवे पर स्पीड ब्रेकर और सड़क पर जानवर आने से रोकने के लिए बाड़ लगाने की जरूरत है. इसके अलावा यातायात नियमों का पालन कराने की भी जरूरत है.
समय पर अस्पताल पहुंचाए जाने से बचेगी जान
इधर रांची के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. डीके सिन्हा कहते हैं कि सड़क हादसे में ज्यादातर लोगों की जान इसलिए जाती है क्योंकि कई बार गंभीर चोट लगने की वजह से एयर पाइप टूट जाता है जिससे लोगों को सांस लेने में दिक्कत होती है. कभी-कभी सिर पर भी गंभीर चोट आने से खून के थक्के बन जाते हैं या अत्यधिक रक्त रिसाव हो जाता है और लोगों की जान चली जाती है. ऐसी स्थिति में जरूरी है कि घायल को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जाए. इसके लिए नेशनल हाईवे पर ट्रामा सेंटर की व्यवस्था अनिवार्य है या फिर प्राथमिक अस्पतालों में ट्रामा की व्यवस्था की जाए ताकि घायल को त्वरित इलाज मिल सके और जान बचाई जा सके.
लोगों को करेंगे जागरूक
रांची के ट्रैफिक डीएसपी जे उरांव का कहना है कि सरकार ने घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए फरवरी 2021 में गुड स्मार्टियन पॉलिसी की शुरुआत की थी. इसमें घायलों के मददगारों को पांच हजार रुपये दिए जाने है. यह अच्छी योजना है जो लोगों की जान बचाने में पुलिस के काम को आसान करेगी. वहीं हाईवे पर स्पीड पर नजर रखने के लिए रांची में नेशनल हाईवे पर स्पीड कैमरा लगाने की योजना बनाई गई है. लोगों को जागरूक भी किया जाएगा ताकि हाईवे पर हादसे न हों.
इधर स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता का कहना है हादसे और उसमें मौत रोकने के लिए सरकार गंभीर है. सरकार संवेदनशील है इसीलिए सड़क हादसे में मरने वाले लोगों को सरकार तुरंत ही एफआईआर और पोस्टमार्टम के रिपोर्ट के आधार पर एक लाख मुआवजा प्रदान करती है. हाईवे के पास ट्रामा सेंटर बनाने की भी योजना बनी है. जगह-जगह ब्लड बैंक बनाए जा रहे हैं.
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आंकड़ों से जानें पूरा हाल
- 3027 लोगों की जान गई वर्ष 2016 के सड़क हादसों में
- 2813 लोगों की जान गई 2017 में सड़क हादसों में
- 3426 लोगों की वर्ष 2018 में गई सड़क हादसे में जान
- 3795 लोगों की वर्ष 2019 में हादसों में हुई मौत
- तेज रफ्तार, खराब सड़क, अनफिट वाहन, यातायात नियमों के उल्लंघन, चिकित्सा सुविधा की कमी से हो रही मौत
- 2021 में बनाई गई गुड स्मार्टियन पॉलिसी धरातल पर नहीं उतर सकी
- पांच हजार रुपये मिलने थे घायलों को अस्पताल पहुंचाने वालों को