रांची: सालों से घर का इंतजार कर रहे इस्लाम नगर के लोगों को घर मिलने जा रहा है. बावजूद इसके वे खुश नहीं हैं. नगर निगम की तरफ से इस्लाम नगर में करीब 450 घर बनाकर लोगों को मकान दिया जा रहा है. लेकिन निगम की तरफ से आवास मिलने के बावजूद इस्लाम नगर में रहने वाले कई लोगों के चेहरे पर मायूसी छाई हुई है. लोगों के मकान टूटने के बाद हाई कोर्ट में पिटीशन डालने वाले और इस्लाम नगर के निवासियों के लिए लड़ाई लड़ने वाले मोहम्मद शकील बताते हैं कि निगम की तरफ से लोगों को घर मुहैया कराया जा रहा है, लेकिन अभी भी कई ऐसे परिवार हैं जिन्हें आवास आवंटित नहीं हो पा रहा है.
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उन्होंने बताया कि निगम की तरफ से जानकारी दी गई है कि लॉटरी के माध्यम से 292 लोगों को घर आवंटित किया जाएगा. बाकी 153 परिवारों को दूसरी किस्त में लॉटरी के माध्यम से घर आवंटित किया जाएगा. जिन परिवारों को घर नहीं मिल रहा है, वे परिवार काफी निराश हैं, क्योंकि अभी तक उन्हें किसी भी तरह की कोई तारीख तय नहीं की गई है. उन्होंने निगम के अधिकारियों से मांग करते हुए कहा कि जल्द से जल्द सभी पीड़ित परिवारों को घर आवंटित करा दिया जाए ताकि इस्लाम नगर में रहने वाले गरीब लोगों को जल्द से जल्द आवास मिल सके.
पैसे देने में रियायत की मांग: वहीं इस्लामनगर के लोगों के लिए लड़ाई लड़ने वाले और हमदर्द कमेटी के सदर सलाउद्दीन बताते हैं कि जिन लोगों को भी घर मिल रहा है, उन सभी को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान दिया जा रहा है, जिसके लिए लोगों को 50 हजार रुपए जमा करने पड़ रहे हैं. कई ऐसे लोग हैं जिनके लिए 50 हजार रूपए का इंतजाम करना काफी मुश्किल है. उन्होंने लोगों की तरफ से निगम से आग्रह किया कि यदि पैसे देने में लोगों को रियायत दी जाए, तो इस्लाम नगर के निवासियों को राहत होगी.
2011 में तोड़ा गया था घर: बता दें कि वर्ष 2011 में ही इस्लाम नगर को अतिक्रमण हटाओ के तहत तोड़ा गया था, जिसमें करीब 1200 परिवार बेघर हो गए थे. जिसके बाद हाईकोर्ट से गुहार लगाई गई, जिस पर हाईकोर्ट ने सभी को घर आवंटित कराने का आदेश दिया है. करीब 1200 पीड़ित परिवारों ने अपने आशियाने की मांग के लिए आवेदन दिया था, जिसमें मात्र 444 परिवारों को ही चयनित कर जिला प्रशासन और नगर निगम की तरफ से आवास मुहैया कराया जा रहा है. इस्लाम नगर के लोगों ने बताया कि जिन लोगों को मकान मिल रहा है, वे लोग तो खुश हैं, लेकिन वर्षों पहले हुए अतिक्रमण हटाओ अभियान में कई वैसे लोगों को घर नहीं मिल पाया जो आज भी घर के वाजिब हकदार हैं.