रांचीः स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह में धीरे-धीरे ढील दी जाने लगी है तो इस ढील के चलते अब राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के इमरजेंसी में मरीजों की संख्या भी बढ़ने लगी है. स्थिति यह है कि रिम्स इमरजेंसी में बेड नहीं बचे हैं और अब इमरजेंसी पहुंचने वाले मरीजों का इलाज घंटों स्ट्रेचर पर ही डॉक्टर कर रहे हैं, क्योंकि इमरजेंसी वार्ड में कोई बेड खाली ही नहीं है.
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इस दौरान अधिवक्ता शशि भूषण गंभीर रूप से बीमार अपनी बहन को लेकर कोडरमा से रिम्स पहुंचे थे. बेड न मिलने पर अधिवक्ता ने ईटीवी भारत की टीम को बताया कि स्ट्रेचर पर ही डॉक्टर उनकी बहन का इलाज कर रहे हैं, क्योंकि इमरजेंसी में अब बेड ही नहीं बचे हैं. साथ ही कहा कि प्रियंका अकेली नहीं है जिसका स्ट्रेचर पर ही इलाज चल रहा है. उनके जैसे दो दर्जन से ज्यादा मरीजों को इमरजेंसी में बेड नहीं मिला है.
गंभीर किस्म के मरीजों के इलाज में डॉक्टर को होती है परेशानी
इमरजेंसी में सेवा दे रहे एक जूनियर डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि स्ट्रेचर पर सामान्य इमरजेंसी के मरीजों के इलाज में तो कोई परेशानी नहीं होती पर वैसे मरीज जो काफी क्रिटिकल स्थिति में रिम्स इमरजेंसी आते हैं. स्ट्रेचर पर उनके इलाज में काफी परेशानी होती है, क्योंकि उस स्थिति में मरीजों की जान बचाने के लिए कई इक्विपमेंट का इस्तेमाल करना होता है जो स्ट्रेचर पर लिटा कर प्रयोग करना संभव नहीं होता है.
क्या कहता है रिम्स प्रबंधन
रिम्स की इमरजेंसी का प्रभार संभाल रही महिला चिकित्सक ने इमरजेंसी की अर्थव्यवस्था और बेड की कमी पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. वहीं जनसंपर्क अधिकारी डॉ. डीके सिन्हा ने फोन पर कहा कि ओपीडी बंद होने के चलते कई मरीज इमरजेंसी में अपनी बीमारी दिखाने आ जाते हैं, जिसकी वजह से वहां मरीजों का दबाव बढ़ गया है. अब 15 जून से जब ओपीडी क्रमिक रूप से खुलना शुरू हो जाएगी, तब इमरजेंसी पर लोड भी धीरे-धीरे कम हो जाएगा.