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मनरेगा में घट रही है आदिवासी परिवारों की भागीदारी, भ्रष्टाचार का दीमक हावी, बड़े घोटाले की आशंका

मनरेगा में आदिवासी परिवारों की भागीदारी (MGNREGA in Jharkhand) कम हो रही है. 2015-16 में आदिवासी मजदूरों का मनरेगा रोजगार में 38.85 फीसदी योगदान था. लेकिन पिछले कुछ सालों में लगातार इनका रूझान कम होता चला गया. इस वर्ष तक आदिवासी मजदूरों की भागीदारी सिर्फ 23.69 पर सिमट गई है.

Participation of tribal families in MGNREGA in Jharkhand
Participation of tribal families in MGNREGA in Jharkhand
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Published : Feb 2, 2022, 4:52 PM IST

Updated : Feb 2, 2022, 6:19 PM IST

रांची: ग्रामीण स्तर पर रोजगार मुहैया कराकर लोगों को गरीबी और भूखमरी के दलदल से बाहर निकालने के लिए आज से ठीक 16 साल पहले यानी 2 फरवरी 2006 को केंद्र सरकार की राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना का शुभारंभ आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में हुआ था. बाद में 2 अक्टूबर 2009 को महात्मा गांधी का नाम जोड़ते हुए इस एक्ट को मनरेगा कर दिया गया. यह कानून ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता है.

ये भी पढ़ें- झारखंड में 19 मनरेगा लोकपाल को मिला नियुक्ति पत्र, अब शिकायतों पर जल्द होगी कार्रवाई

2020 के लॉक डाउन के ठीक पहले झारखंड में 48.87 लाख परिवार पंजीकृत थे. लेकिन अगले साल यानी 2021 में जब कोरोना ने फिर दस्तक दी तो पंजीकत परिवारों का आंकड़ा 62.80 लाख हो गया. करीब 13.93 लाख परिवारों ने नया जॉब कार्ड बनवाया. इसकी वजह यह थी कि बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घर झारखंड लौटे थे. आज की बात करें तो झारखंड में पंजीकृत परिवारों का आंकड़ा 69.19 लाख हो गया है. इसमें एक करोड़ 13 लाख लोग शामिल हैं.

अफसोस की बात यह है कि अपर्याप्त बजटीय प्रावधान और मजदूरी भुगतान में विलंब की वजह से मजदूरों को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है. मई 2021 में लिबटेक नामक एक स्वतंत्र एजेंसी ने अपने अध्ययन में पाया कि राज्य में स्टेज दो लेबल पर मजदूरी भुगतान में 26 दिनों की देरी की गई है. लेकिन मनरेगा बेवसाइट में बहुत चालाकी से इस देरी को सार्वजनिक नहीं किया जाता है.

मनरेगा में आदिवासी परिवारों की भागीदारी घटी: यही वजह है कि झारखंड में मनरेगा (MGNREGA in Jharkhand) की योजनाओं में आदिवासी परिवारों की भागीदारी घट रही है. 2015-16 में आदिवासी मजदूरों का मनरेगा रोजगार में 38.85 फीसदी योगदान था. लेकिन पिछले कुछ सालों में लगातार इनका रूझान कम होता चला गया. इस वर्ष तक आदिवासी मजदूरों की भागीदारी सिर्फ 23.69 पर सिमट गई है. इस संख्या में गिरावट का सबसे बड़ा कारण मनरेगा की योजनाओं में भ्रष्टाचार भी है.

बड़े घोटाले की आशंका: झारखंड मनरेगा वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 1118 पंचायतों में 29,059 योजनाओं के सामाजिक अंकेक्षण में 36 योजनाओं के जेसीबी से कराए जाने के प्रमाण मिले हैं. कुल 1,59,608 मजदूरों के नाम से मस्टर रोल निकाले गए थे. इसमें से सिर्फ 40,629 यानी 25 प्रतिशत मजदूर ही काम करते पाए गए थे. शेष सारे नाम फर्जी थे. यही नहीं 1787 मजदूर ऐसे थे जिनका नाम मस्टर रोल में था ही नहीं. 85 योजनाओं का मस्टर रोल में जिक्र ही नहीं था. 376 मजदूर ऐसे थे जिनका जॉब कार्ड ही नहीं था.

झारखंड मनरेगा वॉच का दावा है कि योजनाओं में सिर्फ 52 करोड़ की वित्तीय गड़बड़ी की बात जो मीडिया में आई है, वह काफी कम है. क्योंकि वित्तीय वर्ष 2017 से 2020 तक सिर्फ एक ही बार सामाजिक अंकेक्षण हुआ है. अगर हर साल पंचायतों का सामाजिक अंकेक्षण किया गया होता तो यह राशि तीन गुना यानी 150 करोड़ रुपए होती. अगर समवर्ती सामाजिक अंकेक्षण की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो सिर्फ 25 मजदूर कार्यस्थल पर मिले थे. यानी शेष 75 प्रतिशत राशि सिर्फ मजदूरी भुगतान में हुआ जो हर साल करीब 1500 करोड़ होगी.

2022 के बजट में मनरेगा की योजनाओं के लिए 73 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है जो पिछले साल के संशोधित बजट की तुलना में 25.5 प्रतिशत कम है. हालांकि पिछले साल महामारी की वजह से राशि बढ़ा दी गई थी. इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना के दौर में मनरेगा की योजनाओं ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संभालने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन दूसरी तरफ मनरेगा की योजनाओं को भ्रष्टाचार का दीमक भीतर से खोखला करता जा रहा है.

रांची: ग्रामीण स्तर पर रोजगार मुहैया कराकर लोगों को गरीबी और भूखमरी के दलदल से बाहर निकालने के लिए आज से ठीक 16 साल पहले यानी 2 फरवरी 2006 को केंद्र सरकार की राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना का शुभारंभ आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में हुआ था. बाद में 2 अक्टूबर 2009 को महात्मा गांधी का नाम जोड़ते हुए इस एक्ट को मनरेगा कर दिया गया. यह कानून ग्रामीण परिवारों को साल में कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारंटी देता है.

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2020 के लॉक डाउन के ठीक पहले झारखंड में 48.87 लाख परिवार पंजीकृत थे. लेकिन अगले साल यानी 2021 में जब कोरोना ने फिर दस्तक दी तो पंजीकत परिवारों का आंकड़ा 62.80 लाख हो गया. करीब 13.93 लाख परिवारों ने नया जॉब कार्ड बनवाया. इसकी वजह यह थी कि बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घर झारखंड लौटे थे. आज की बात करें तो झारखंड में पंजीकृत परिवारों का आंकड़ा 69.19 लाख हो गया है. इसमें एक करोड़ 13 लाख लोग शामिल हैं.

अफसोस की बात यह है कि अपर्याप्त बजटीय प्रावधान और मजदूरी भुगतान में विलंब की वजह से मजदूरों को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही है. मई 2021 में लिबटेक नामक एक स्वतंत्र एजेंसी ने अपने अध्ययन में पाया कि राज्य में स्टेज दो लेबल पर मजदूरी भुगतान में 26 दिनों की देरी की गई है. लेकिन मनरेगा बेवसाइट में बहुत चालाकी से इस देरी को सार्वजनिक नहीं किया जाता है.

मनरेगा में आदिवासी परिवारों की भागीदारी घटी: यही वजह है कि झारखंड में मनरेगा (MGNREGA in Jharkhand) की योजनाओं में आदिवासी परिवारों की भागीदारी घट रही है. 2015-16 में आदिवासी मजदूरों का मनरेगा रोजगार में 38.85 फीसदी योगदान था. लेकिन पिछले कुछ सालों में लगातार इनका रूझान कम होता चला गया. इस वर्ष तक आदिवासी मजदूरों की भागीदारी सिर्फ 23.69 पर सिमट गई है. इस संख्या में गिरावट का सबसे बड़ा कारण मनरेगा की योजनाओं में भ्रष्टाचार भी है.

बड़े घोटाले की आशंका: झारखंड मनरेगा वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 1118 पंचायतों में 29,059 योजनाओं के सामाजिक अंकेक्षण में 36 योजनाओं के जेसीबी से कराए जाने के प्रमाण मिले हैं. कुल 1,59,608 मजदूरों के नाम से मस्टर रोल निकाले गए थे. इसमें से सिर्फ 40,629 यानी 25 प्रतिशत मजदूर ही काम करते पाए गए थे. शेष सारे नाम फर्जी थे. यही नहीं 1787 मजदूर ऐसे थे जिनका नाम मस्टर रोल में था ही नहीं. 85 योजनाओं का मस्टर रोल में जिक्र ही नहीं था. 376 मजदूर ऐसे थे जिनका जॉब कार्ड ही नहीं था.

झारखंड मनरेगा वॉच का दावा है कि योजनाओं में सिर्फ 52 करोड़ की वित्तीय गड़बड़ी की बात जो मीडिया में आई है, वह काफी कम है. क्योंकि वित्तीय वर्ष 2017 से 2020 तक सिर्फ एक ही बार सामाजिक अंकेक्षण हुआ है. अगर हर साल पंचायतों का सामाजिक अंकेक्षण किया गया होता तो यह राशि तीन गुना यानी 150 करोड़ रुपए होती. अगर समवर्ती सामाजिक अंकेक्षण की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो सिर्फ 25 मजदूर कार्यस्थल पर मिले थे. यानी शेष 75 प्रतिशत राशि सिर्फ मजदूरी भुगतान में हुआ जो हर साल करीब 1500 करोड़ होगी.

2022 के बजट में मनरेगा की योजनाओं के लिए 73 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है जो पिछले साल के संशोधित बजट की तुलना में 25.5 प्रतिशत कम है. हालांकि पिछले साल महामारी की वजह से राशि बढ़ा दी गई थी. इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना के दौर में मनरेगा की योजनाओं ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संभालने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन दूसरी तरफ मनरेगा की योजनाओं को भ्रष्टाचार का दीमक भीतर से खोखला करता जा रहा है.

Last Updated : Feb 2, 2022, 6:19 PM IST
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