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शिक्षा मंत्री के निर्णय से आहत हैं अभिभावक, कहा- यह निर्णय गलत है - Jagarnath Mahato said school fees will be charged in the state

रांची में मंगलवार को शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के साथ पूरे शिक्षा महकमे की बैठक हुई. जिसके बाद शिक्षा जगरनाथ महतो ने यह फैसला सुनाया कि तमाम निजी स्कूल सिर्फ ट्यूशन शुल्क ही लेंगे और बस भाड़ा या अन्य शुल्क की वसूली नहीं की जाएगी. इसी कड़ी में ईटीवी भारत की टीम ने कई अभिभावकों से इस फैसले को लेकर उनकी राय ली.

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Published : Jun 10, 2020, 6:20 PM IST

रांची: जिले में मंगलवार को निजी स्कूल संचालकों और शिक्षा मंत्री के अलावा पूरे शिक्षा महकमे की बैठक हुई. इस बैठक के बाद जो निर्णय सामने आया है. उस निर्णय से राज्य के अभिभावक संतुष्ट नहीं है. इसी कड़ी में ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी रांची के ऐसे ही कई अभिभावकों से विशेष रूप से बातचीत की है और इस फैसले को लेकर उनकी राय जानने की कोशिश की.

देखें पूरी खबर

मंगलवार को प्रोजेक्ट भवन में शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो, शिक्षा सचिव और विभाग के पदाधिकारियों के साथ निजी स्कूल संचालकों की एक विशेष बैठक आयोजित की गई थी. बैठक के दौरान लॉकडाउन में निजी स्कूलों से ट्यूशन फीस माफ कराने की शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो की घोषणा भी धरी की धरी रह गई. दरअसल शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने पहले कई बार कहा था कि किसी भी हालत में निजी स्कूलों को लॉकडाउन के दौरान फीस माफ करना ही होगा और राज्य के अभिभावक शिक्षा मंत्री के इस घोषणा को वादा समझ बैठे थे, लेकिन बैठक के बाद निजी स्कूलों और शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने यह फैसला सुनाया कि तमाम निजी स्कूल फिलहाल ट्यूशन शुल्क ही लेंगे. बस भाड़ा और अन्य शुल्क की वसूली नहीं की जाएगी. इसे लेकर स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग एक आदेश जारी करेगा.

ये भी देखें- जमशेदपुर: नक्सलियों के संपर्क में प्रवासी मजदूरों के होने की आशंका, पुलिस अलर्ट

अभिभावकों को देना होगा वार्षिक शुल्क

मंत्री का कहना है कि स्कूलों ने सहमति दी है कि 2 माह की राशि काटकर वार्षिक शुल्क लिया जाएगा. यानी कि अभिभावकों को 10 महीने का ही वार्षिक शुल्क देना होगा. जो अभी तक संशय का विषय है. विभाग इसे लेकर एक पत्र जारी करेगा. जिसके बाद ही इसे सही माना जा सकता है.

शिक्षा मंत्री के निर्णय से आहत है अभिभावक

इस निर्णय को लेकर हमारी जब ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी रांची के ऐसे कई अभिभावकों से बातचीत की है. अभिभावकों का कहना है कि अभिभावकों को विभाग और निजी स्कूलों ने छलने का काम किया है. लगातार यह कहा जा रहा था कि लॉकडाउन के दौरान की अवधि की फीस वसूली नहीं जाएगा. लेकिन बैठक के बाद इस तरीके का निर्णय आना काफी निराशाजनक है. अभिभावक मजबूर हैं और उन्हें मजबूरी में ही बच्चों के भविष्य को देखते हुए ट्यूशन फीस तो देना ही होगा, जो कि सरासर गलत है.

रांची: जिले में मंगलवार को निजी स्कूल संचालकों और शिक्षा मंत्री के अलावा पूरे शिक्षा महकमे की बैठक हुई. इस बैठक के बाद जो निर्णय सामने आया है. उस निर्णय से राज्य के अभिभावक संतुष्ट नहीं है. इसी कड़ी में ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी रांची के ऐसे ही कई अभिभावकों से विशेष रूप से बातचीत की है और इस फैसले को लेकर उनकी राय जानने की कोशिश की.

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मंगलवार को प्रोजेक्ट भवन में शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो, शिक्षा सचिव और विभाग के पदाधिकारियों के साथ निजी स्कूल संचालकों की एक विशेष बैठक आयोजित की गई थी. बैठक के दौरान लॉकडाउन में निजी स्कूलों से ट्यूशन फीस माफ कराने की शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो की घोषणा भी धरी की धरी रह गई. दरअसल शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने पहले कई बार कहा था कि किसी भी हालत में निजी स्कूलों को लॉकडाउन के दौरान फीस माफ करना ही होगा और राज्य के अभिभावक शिक्षा मंत्री के इस घोषणा को वादा समझ बैठे थे, लेकिन बैठक के बाद निजी स्कूलों और शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो ने यह फैसला सुनाया कि तमाम निजी स्कूल फिलहाल ट्यूशन शुल्क ही लेंगे. बस भाड़ा और अन्य शुल्क की वसूली नहीं की जाएगी. इसे लेकर स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग एक आदेश जारी करेगा.

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अभिभावकों को देना होगा वार्षिक शुल्क

मंत्री का कहना है कि स्कूलों ने सहमति दी है कि 2 माह की राशि काटकर वार्षिक शुल्क लिया जाएगा. यानी कि अभिभावकों को 10 महीने का ही वार्षिक शुल्क देना होगा. जो अभी तक संशय का विषय है. विभाग इसे लेकर एक पत्र जारी करेगा. जिसके बाद ही इसे सही माना जा सकता है.

शिक्षा मंत्री के निर्णय से आहत है अभिभावक

इस निर्णय को लेकर हमारी जब ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी रांची के ऐसे कई अभिभावकों से बातचीत की है. अभिभावकों का कहना है कि अभिभावकों को विभाग और निजी स्कूलों ने छलने का काम किया है. लगातार यह कहा जा रहा था कि लॉकडाउन के दौरान की अवधि की फीस वसूली नहीं जाएगा. लेकिन बैठक के बाद इस तरीके का निर्णय आना काफी निराशाजनक है. अभिभावक मजबूर हैं और उन्हें मजबूरी में ही बच्चों के भविष्य को देखते हुए ट्यूशन फीस तो देना ही होगा, जो कि सरासर गलत है.

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