पलामू: एक जनवरी 2025 को पलामू 133 वर्ष का हो जाएगा. इसका गठन एक जनवरी 1892 में हुआ था. पलामू अविभाजित बंगाल के वक्त से जिला है. यहां 1934 में पहली बार एसपी की तैनाती हुई थी. 1912 से पहले पलामू बंगाल का हिस्सा था जबकि 2000 में बिहार के बंटवारे के बाद यह इलाका झारखंड का हिस्सा हो गया.
पलामू जिले के गठन को लेकर कई कहानियां हैं. पलामू के एनआईसी के वेबसाइट के अनुसार 1857 की क्रांति के वक्त पलामू डालटनगंज के साथ उपखंड था. 1871 में परगना जपला और बेलौंजा को गया से लाया गया था. जिसके बाद 1892 में इसे जिला बनाया गया. वरिष्ठ पत्रकार प्रभात सुमन मिश्रा बताते हैं कि पलामू को लोहरदगा से काट कर अलग बनाया गया है, यह बंगाल का हिस्सा था. बाद में यह बिहार का हिस्सा बना. फिर पलामू से अलग होकर लातेहार और गढ़वा बने. पलामू में 21 प्रखंड हैं जबकि 27 थाने हैं. पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय भी है.
पलामू का इलाका प्रत्येक दूसरे वर्ष अकाल और सुखाड़ से जूझता है. 1990 में प्रधानमंत्री खुद अकाल का जायजा लेने पलामू पहुंचे थे. हालांकि पलामू में सोन कोयल जैसी बड़ी नदियां भी हैं. झारखंड सरकार के वित्तमंत्री राधाकृष्ण किशोर बताते हैं कि पलामू पर हेमंत सोरेन सरकार की खास नजर है. पानी बचाने और सुखाड़ से मुक्ति दिलवाने के लिए पहल की जा रही है. वित्त मंत्री बताते हैं कि पलामू की सभी नदियों में वीयर बांध बनाने से पानी को बचाया जा सकता है. पांच-पांच फीट तक वीयर बनाने से पानी को बचाया जा सकता है. उन्होने बताया कि पानी को बचाने के लिए पहल करनी होगी. मंत्री राधाकृष्ण किशोर बताते है कि हेमंत सोरेन की सरकार इस बात को लेकर गंभीर है कि पलामू के किसानों और ग्रामीणों को कैसे खुशहाल बनाया जाए.
नक्सल के छाया से दूर होता पलामू
70 के दशक में अविभाजित बिहार में पलामू के इलाके से ही नक्सलियों ने अपनी जमीन तैयार की थी. आज पलामू नक्सली की छाया से दूर हो रहा है. केंद्र सरकार की नजर में यह इलाका नक्सल मुक्त हो गया है. पलामू के 133 वर्षों के इतिहास में लगभग 45 वर्ष नक्सली साया रहा है. जिसमें 35 वर्ष नक्सलियों का हिंसक स्वरूप रहा है.
आज पलामू नक्सलियों की स्थिति बेहद ही कमजोर हो गई है. ग्रामीण मुख्यधारा से जुड़ गए हैं और सरकारी योजनाओं का लाभ उठा रहे है. 2014-15 तक शाम के चार के बाद पलामू से बाहर निकलना बड़ी चुनौती थी. आज रात में किसी भी वक्त सफर किया जा सकता है. पलामू एसपी रीष्मा रमेशन बताती हैं कि यह इलाका बदलाव के दौर से गुजर रहा है.उनका कहना है कि एक वक्त पलामू से बाहर निकलना बड़ी चुनौती थी, लेकिन आज 24 घंटे कहीं भी सफर किया जा सकता है. पोस्ता की खेती के खिलाफ अभियान में स्थानीय लोग सहयोग कर रहे हैं अब अवरोध नहीं हो रहा है.
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