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जान पर भारी दस्तावेज! रिम्स में वक्त पर जमा नहीं हुआ फॉर्म, आंखों के सामने चली गई बेटे की जान - रिम्स में लापरवाही

रांची के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में लापरवाही का मामला सामने आया है. जहां एक लड़के ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया. उसका इलाज सिर्फ इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि उसके परिजनों ने फॉर्म नहीं भरा, वक्त पर कागज जमा नहीं किया.

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रिम्स में लापरवाही
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Published : Mar 12, 2021, 6:52 AM IST

Updated : Mar 12, 2021, 8:27 AM IST

रांचीः इस दर्द को वही समझ सकता है जिस पर यह बीत रहा है. इस चीख को वही बर्दाश्त कर सकता है, जिसने कभी शायद इसे झेला हो. इस मां की दर्द को सुनिए जिसका जवान बेटा उसके आंख के सामने गुजर गया और वह सिर्फ इसलिए क्योंकि अस्पताल में उसने समय पर अपना कागज जमा नहीं किया.

देखें पूरी खबर

इसे भी पढ़ें- रेजीडेंट डॉक्टरों का आंदोलन खत्म, स्वास्थ्य मंत्री के आश्वासन के बाद काम पर लौटे डॉक्टर

एक मां की हर चीख से उसका दर्द बयां कर रहा है और वह कह रही है कि अब हमारा क्या होगा हमने तो उम्मीद बना कर रखा था कि जब हम इस दुनिया से जाएंगे तो हमारा बेटा हमें कांधा देगा, पर रिम्स की लापरवाही ने तो हमारे सारे अरमानों और उम्मीदों पर पानी फेर दिया और हमारा जवान बेटा हमसे छीन लिया.

सिर्फ बूढ़ी मां का दर्द ही नहीं, बल्कि जवान पत्नी का भी दर्द छलका, दो छोटे बच्चे को छोड़कर उसका पति जो चल बसा. मृतक की मां बताती है उसके बेटे का एक्सीडेंट हुआ था. जिसमें उसका पैर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था, गंभीर हालत को देखते हुए बुंडू के अस्पताल ने रिम्स रेफर कर दिया. रिम्स पहुंचने के बाद उसके परिजनों को कागजी प्रक्रिया को पूरा करने में इतना समय लग गया कि उसके बेटे की जान ही चली गई.

मृतक की पत्नी बताती हैं कि जब उसे अस्पताल लाया गया था तो वह अच्छी तरह से बातचीत कर रहा था. सिर्फ उसके पैरों में काफी दर्द था. अगर समय पर दवा और सुई मिल जाती तो शायद उसका पति आज उसके पास होता. डॉक्टरों और रिम्स प्रबंधन की लापरवाही के कारण एक गरीब का पति उसे छोड़कर हमेशा के चला गया. वह कहती हैं कि अगर उसके पास पैसा होता है और निजी अस्पताल में इलाज करवाती तो शायद उसका पति बच जाता. लेकिन अपनी गरीबी की वजह से उम्मीद के साथ रिम्स तो पहुंची लेकिन रिम्स ने पति को ही मार डाला.

इसका जिम्मेदार आखिर कौन है? गरीबी या फिर कार्यशैली
सवाल ये उठता है कि अगर कोई एक्सीडेंटल केस या फिर इमरजेंसी केस इलाज के लिए अस्पताल पहुंचता है तो सबसे पहले जरूरी है कि डॉक्टर उसे प्राथमिक इलाज कर उसे ठीक करें. फिर कागजी प्रक्रिया को देखे लेकिन रिम्स में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है क्योंकि यहां के प्रबंधन को इससे कोई मतलब ही नहीं है. यह कोई पहला केस नहीं है रिम्स में ऐसी तस्वीरें आए दिन देखने को मिलती है जो इंसान के मानवता को झकझोर कर रख देती है.

गंभीर और इमरजेंसी मरीज के लिए रिम्स में ट्रामा सेंटर भी बनाए गए हैं. जिसमें मरीज को सारी व्यवस्था तुरंत बहाल हो जाए लेकिन अभी तक ट्रामा सेंटर पूर्ण रूप से काम नहीं कर पा रहा है. आए दिन गंभीर मरीजों को यहां पर अपनी जान गंवानी पड़ती है. गरीब मरीजों की उम्मीद बने रिम्स को शायद स्वास्थ्य विभाग और रिम्स के बाबुओं को एक बार फिर टटोलने की जरूरत है ताकि यहां पर आने वाले गरीब का बेटा, पति, मां पिता की जीवन बच सके ना कि अस्पताल आने के बाद वह काल के गाल में समा जाए.

रांचीः इस दर्द को वही समझ सकता है जिस पर यह बीत रहा है. इस चीख को वही बर्दाश्त कर सकता है, जिसने कभी शायद इसे झेला हो. इस मां की दर्द को सुनिए जिसका जवान बेटा उसके आंख के सामने गुजर गया और वह सिर्फ इसलिए क्योंकि अस्पताल में उसने समय पर अपना कागज जमा नहीं किया.

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एक मां की हर चीख से उसका दर्द बयां कर रहा है और वह कह रही है कि अब हमारा क्या होगा हमने तो उम्मीद बना कर रखा था कि जब हम इस दुनिया से जाएंगे तो हमारा बेटा हमें कांधा देगा, पर रिम्स की लापरवाही ने तो हमारे सारे अरमानों और उम्मीदों पर पानी फेर दिया और हमारा जवान बेटा हमसे छीन लिया.

सिर्फ बूढ़ी मां का दर्द ही नहीं, बल्कि जवान पत्नी का भी दर्द छलका, दो छोटे बच्चे को छोड़कर उसका पति जो चल बसा. मृतक की मां बताती है उसके बेटे का एक्सीडेंट हुआ था. जिसमें उसका पैर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था, गंभीर हालत को देखते हुए बुंडू के अस्पताल ने रिम्स रेफर कर दिया. रिम्स पहुंचने के बाद उसके परिजनों को कागजी प्रक्रिया को पूरा करने में इतना समय लग गया कि उसके बेटे की जान ही चली गई.

मृतक की पत्नी बताती हैं कि जब उसे अस्पताल लाया गया था तो वह अच्छी तरह से बातचीत कर रहा था. सिर्फ उसके पैरों में काफी दर्द था. अगर समय पर दवा और सुई मिल जाती तो शायद उसका पति आज उसके पास होता. डॉक्टरों और रिम्स प्रबंधन की लापरवाही के कारण एक गरीब का पति उसे छोड़कर हमेशा के चला गया. वह कहती हैं कि अगर उसके पास पैसा होता है और निजी अस्पताल में इलाज करवाती तो शायद उसका पति बच जाता. लेकिन अपनी गरीबी की वजह से उम्मीद के साथ रिम्स तो पहुंची लेकिन रिम्स ने पति को ही मार डाला.

इसका जिम्मेदार आखिर कौन है? गरीबी या फिर कार्यशैली
सवाल ये उठता है कि अगर कोई एक्सीडेंटल केस या फिर इमरजेंसी केस इलाज के लिए अस्पताल पहुंचता है तो सबसे पहले जरूरी है कि डॉक्टर उसे प्राथमिक इलाज कर उसे ठीक करें. फिर कागजी प्रक्रिया को देखे लेकिन रिम्स में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है क्योंकि यहां के प्रबंधन को इससे कोई मतलब ही नहीं है. यह कोई पहला केस नहीं है रिम्स में ऐसी तस्वीरें आए दिन देखने को मिलती है जो इंसान के मानवता को झकझोर कर रख देती है.

गंभीर और इमरजेंसी मरीज के लिए रिम्स में ट्रामा सेंटर भी बनाए गए हैं. जिसमें मरीज को सारी व्यवस्था तुरंत बहाल हो जाए लेकिन अभी तक ट्रामा सेंटर पूर्ण रूप से काम नहीं कर पा रहा है. आए दिन गंभीर मरीजों को यहां पर अपनी जान गंवानी पड़ती है. गरीब मरीजों की उम्मीद बने रिम्स को शायद स्वास्थ्य विभाग और रिम्स के बाबुओं को एक बार फिर टटोलने की जरूरत है ताकि यहां पर आने वाले गरीब का बेटा, पति, मां पिता की जीवन बच सके ना कि अस्पताल आने के बाद वह काल के गाल में समा जाए.

Last Updated : Mar 12, 2021, 8:27 AM IST
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