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कमजोर हुए नक्सली तो वापस लौटे बाघ, कई दशकों के बाद कोर एरिया में पहुंची पीटीआर की टीम

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 17, 2024, 6:03 AM IST

Number of tigers increased in PTR. झारखंड के बूढ़ापहाड़ इलाके में नक्सलियों के कमजोर होने के बाद रौनक लौटने लगी है. यहां पर पीटीआर में कई दशकों के बाद चार बाघ होने की पुष्टि भी हो चुकी हैं. वहीं इस इलके में दशकों बाद पीटीआर की टीम की पहुंच हो पाई है.

Number of tigers increased in PTR
Number of tigers increased in PTR

पलामू: जिन इलाकों में कभी माओवादियों का कब्जा हुआ करता था अब उन इलाकों में बाघों का कब्जा हो गया है. माओवादियों के कमजोर होने के बाद पलामू टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में बाघ वापस लौटने लगे हैं. दरअसल माओवादियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना बूढ़ापहाड़ का इलाका पलामू टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में है.

बूढापहाड़ के इलाके में पिछले एक वर्ष के दौरान चार बाघों को देखा गया है. इस इलाके में पिछले तीन दशक से बाघ के होने के सबूत नहीं मिले थे, लेकिन इलाके में माओवादियों के कमजोर होने के बाद लगातार बाघ देखे जा रहे हैं. पिछले एक वर्ष के दौरान पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में चार बाघ के होने की पुष्टि हुई है. सभी बाघों के मूवमेंट सबसे पहली बार बूढ़ापहाड़ के इलाके में रिकॉर्ड किया गया था.

तीन दशक तक माओवादियों के कब्जे में रहा बूढापहाड़: बूढ़ापहाड़ इलाके में तीन दशक तक माओवादियों का कब्जा रहा है. माओवादियों के खौफ के कारण इलाके में कभी भी बाघ या अन्य वन्य जीव की गिनती नहीं हुई थी. इलाके में 2022 से पहले कभी ट्रैकिंग कैमरा नहीं लगाया जा सका था. 2022 में सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू किया था, जिसके बाद माओवादी इलाके को छोड़ कर भाग गए. जिसके बाद पहली बार पीटीआर के अधिकारी इलाके में दाखिल हुए और इलाके में ट्रैकिंग कैमरा लगाया गया.

खौफ से इलाके में नहीं जाते थे अधिकारी: अब अधिकारी लगातार इलाके में मॉनिटरिंग कर रहे हैं, जिस कारण बाघ समेत अन्य वन्य जीव की तस्वीर कैद हो रही है. 2009, 2014 और 2018 में पलामू टाइगर रिजर्व में बूढ़ापहाड़ से सटे हुए इलाकों में ट्रैकिंग कैमरा नहीं लगाया जा सका था. कई बार खबर निकलकर सामने आई थी कि माओवादियों ने कैमरा नहीं लगाने का फरमान जारी किया था. 2018 में हुई बाघों की गिनती में पीटीआर के इलाके में संख्या शून्य बताई गई थी. 2022 में पहली बार इलाके में ट्रैकिंग कैमरे लगाए गए, नतीजा है कि अब तक चार बाघ के होने की पुष्टि हुई है.

ऑपरेशन ऑक्टोपस के बाद माओवादी कमजोर हुए हैं, बूढापहाड़ के इलाके में शांति व्यवस्था कायम करने में सफलता मिली. इलाके के ग्रामीणों का वन्य जीवों के साथ अलग ही लगाव है. ग्रामीण जंगल और वन्यजीवों को समझते हैं. यह खुशी की बात है कि इलाके में रौनक लौट रही है और वन्य जीव भी वापस लौट रहे हैं.- राजकुमार लकड़ा, आईजी, पलामू जोन

सुरक्षा कारणों से एक बड़े भाग में ट्रैकिंग कैमरा नहीं लगाया जा रहा था, अब पूरे इलाके में 1000 से भी अधिक ट्रैकिंग कैमरे लगाए जा रहे है. कई ऐसे हिस्से थे जहां पहुंचना मुश्किल थी लेकिन अब वहां पहुंचा जा रहा है.यह खुशी की बात है कि पलामू टाइगर रिजर्व में पिछले एक वर्ष के अंदर चार बाघ देखे गए है.- कुमार आशुतोष, निदेशक, पलामू टाइगर रिजर्व

बूढापहाड़ पीटीआर से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व कॉरिडोर का है हिस्सा: बूढ़ापहाड़ पलामू टाइगर रिजर्व और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कॉरिडोर का एक बड़ा हिस्सा है. बूढ़ापहाड़ करीब 52 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसका बड़ा हिस्सा पलामू टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में है. बूढ़ापहाड़ के तराई वाले इलाके में पीटीआर के कई गांव हैं. माओवादियों के कमजोर होने के बाद पलामू टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने बूढ़ापहाड़ के लिए एक विशेष योजना भी तैयार किया है. इलाके में बाघों के भोजन के लिए हिरण और चीतल का सॉफ्ट रिलीज सेंटर की स्थापना की जा रही है. वहीं इलाके में ग्रास लैंड को विकसित किया जा रहा है.

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पलामू: जिन इलाकों में कभी माओवादियों का कब्जा हुआ करता था अब उन इलाकों में बाघों का कब्जा हो गया है. माओवादियों के कमजोर होने के बाद पलामू टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में बाघ वापस लौटने लगे हैं. दरअसल माओवादियों का सबसे सुरक्षित ठिकाना बूढ़ापहाड़ का इलाका पलामू टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में है.

बूढापहाड़ के इलाके में पिछले एक वर्ष के दौरान चार बाघों को देखा गया है. इस इलाके में पिछले तीन दशक से बाघ के होने के सबूत नहीं मिले थे, लेकिन इलाके में माओवादियों के कमजोर होने के बाद लगातार बाघ देखे जा रहे हैं. पिछले एक वर्ष के दौरान पलामू टाइगर रिजर्व के इलाके में चार बाघ के होने की पुष्टि हुई है. सभी बाघों के मूवमेंट सबसे पहली बार बूढ़ापहाड़ के इलाके में रिकॉर्ड किया गया था.

तीन दशक तक माओवादियों के कब्जे में रहा बूढापहाड़: बूढ़ापहाड़ इलाके में तीन दशक तक माओवादियों का कब्जा रहा है. माओवादियों के खौफ के कारण इलाके में कभी भी बाघ या अन्य वन्य जीव की गिनती नहीं हुई थी. इलाके में 2022 से पहले कभी ट्रैकिंग कैमरा नहीं लगाया जा सका था. 2022 में सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू किया था, जिसके बाद माओवादी इलाके को छोड़ कर भाग गए. जिसके बाद पहली बार पीटीआर के अधिकारी इलाके में दाखिल हुए और इलाके में ट्रैकिंग कैमरा लगाया गया.

खौफ से इलाके में नहीं जाते थे अधिकारी: अब अधिकारी लगातार इलाके में मॉनिटरिंग कर रहे हैं, जिस कारण बाघ समेत अन्य वन्य जीव की तस्वीर कैद हो रही है. 2009, 2014 और 2018 में पलामू टाइगर रिजर्व में बूढ़ापहाड़ से सटे हुए इलाकों में ट्रैकिंग कैमरा नहीं लगाया जा सका था. कई बार खबर निकलकर सामने आई थी कि माओवादियों ने कैमरा नहीं लगाने का फरमान जारी किया था. 2018 में हुई बाघों की गिनती में पीटीआर के इलाके में संख्या शून्य बताई गई थी. 2022 में पहली बार इलाके में ट्रैकिंग कैमरे लगाए गए, नतीजा है कि अब तक चार बाघ के होने की पुष्टि हुई है.

ऑपरेशन ऑक्टोपस के बाद माओवादी कमजोर हुए हैं, बूढापहाड़ के इलाके में शांति व्यवस्था कायम करने में सफलता मिली. इलाके के ग्रामीणों का वन्य जीवों के साथ अलग ही लगाव है. ग्रामीण जंगल और वन्यजीवों को समझते हैं. यह खुशी की बात है कि इलाके में रौनक लौट रही है और वन्य जीव भी वापस लौट रहे हैं.- राजकुमार लकड़ा, आईजी, पलामू जोन

सुरक्षा कारणों से एक बड़े भाग में ट्रैकिंग कैमरा नहीं लगाया जा रहा था, अब पूरे इलाके में 1000 से भी अधिक ट्रैकिंग कैमरे लगाए जा रहे है. कई ऐसे हिस्से थे जहां पहुंचना मुश्किल थी लेकिन अब वहां पहुंचा जा रहा है.यह खुशी की बात है कि पलामू टाइगर रिजर्व में पिछले एक वर्ष के अंदर चार बाघ देखे गए है.- कुमार आशुतोष, निदेशक, पलामू टाइगर रिजर्व

बूढापहाड़ पीटीआर से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व कॉरिडोर का है हिस्सा: बूढ़ापहाड़ पलामू टाइगर रिजर्व और बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कॉरिडोर का एक बड़ा हिस्सा है. बूढ़ापहाड़ करीब 52 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसका बड़ा हिस्सा पलामू टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में है. बूढ़ापहाड़ के तराई वाले इलाके में पीटीआर के कई गांव हैं. माओवादियों के कमजोर होने के बाद पलामू टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने बूढ़ापहाड़ के लिए एक विशेष योजना भी तैयार किया है. इलाके में बाघों के भोजन के लिए हिरण और चीतल का सॉफ्ट रिलीज सेंटर की स्थापना की जा रही है. वहीं इलाके में ग्रास लैंड को विकसित किया जा रहा है.

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