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रांची के ज्यादातर स्कूलों में नहीं है पेयजल की समुचित व्यवस्था, चापाकल के भरोसे बुझ रही बच्चों की प्यास

रांची के सरकारी स्कूलों में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है, ज्यादातर स्कूल चापाकल के भरोसे ही हैं. शिक्षा अधिकारियों का कहना है कि पेयजल की आपूर्ति के लिए विभाग 45 दिन का एक अभियान चला रहा है लेकिन धरातल पर स्थिति बिल्कुल अलग है.

drinking water in schools of Ranchi
drinking water in schools of Ranchi
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Published : May 4, 2022, 2:41 PM IST

रांची: शहर के सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए पेयजल की व्यवस्था चापाकल के भरोसे ही संचालित हो रही है. खराब पड़े चापाकल को व्यवस्थित करने के लिए विभाग 45 दिन का एक अभियान चला रहा है. इसके तहत स्कूल पहुंचकर प्लंबर खराब पड़े चापाकल को दुरुस्त करते है. हालांकि, यह अभियान कागजों पर ही सिमटी हुई है. धरातल पर नहीं उतारा गया है.

इसे भी पढ़ें: Video: भीषण गर्मी में रांची में पेयजल की बर्बादी, अब तक हजारों लीटर पानी बर्बाद


क्या कहते हैं अधिकारी: गर्मी के दिनों में पेयजल की व्यवस्था अहम होती है. फिलहाल, पूरे राज्य में भीषण गर्मी पड़ रही है. ऐसे में स्कूलों में भी एक समय सारणी के तहत स्कूल संचालित की जा रही है. गर्मी के दौरान स्कूल परिसर में पेयजल की भी व्यवस्था बेहतर करने की कोशिश की जा रही है. अधिकारियों का कहना है कि झारखंड सरकार के शिक्षा विभाग की ओर से सरकारी स्कूलों में खराब पड़े चापाकल को व्यवस्थित और मरम्मत करने के लिए 45 दिन का एक अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के तहत जिन स्कूलों में खराब पड़े चापाकल हैं उन चापाकलों की मरम्मत की जा रही है. गांव-गांव टोला टोला घूम कर वाहन के माध्यम से प्लंबर स्कूल पहुंच रहे हैं. अभियान चलाया जा रहा है यह सिर्फ अधिकारियों का कहना है, धरातल पर देखें इस ओर भी कुछ विशेष ध्यान नहीं है.

देखें पूरी खबर

चापाकल के भरोसे हैं स्कूल: ऐसे कई सरकारी स्कूल है जहां पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है. कुछ स्कूलों में फिल्टर जैसी व्यवस्था की गई है लेकिन, राज्य के अधिकतर स्कूलों में चापाकल के भरोसे ही सरकारी स्कूलों के बच्चों का प्यास बुझ रही है. बच्चों ने भी बताया कि चापाकल से ही उनकी प्यास बुझ रही है. स्कूलों में किसी तरह के फिल्टर की व्यवस्था नहीं है.


स्कूलों की स्थिति दयनीय: राज्य के सरकारी स्कूलों की हालत काफी दयनीय है. भवन जर्जर हैं, स्कूलों में शिक्षकों की घोर कमी है. यहां तक कि कुछ ऐसे भी स्कूल हैं, जहां बिजली का कनेक्शन तक नहीं है. वहीं, पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण विद्यार्थियों को चापाकल के सहारे ही अपनी प्यास बुझानी पड़ रही है. राज्य सरकार को चाहिए कि सरकारी स्कूलों की ओर वह विशेष तौर पर ध्यान दें नहीं तो योजनाएं कागजों में ही सिमट कर रह जाएगी.

रांची: शहर के सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए पेयजल की व्यवस्था चापाकल के भरोसे ही संचालित हो रही है. खराब पड़े चापाकल को व्यवस्थित करने के लिए विभाग 45 दिन का एक अभियान चला रहा है. इसके तहत स्कूल पहुंचकर प्लंबर खराब पड़े चापाकल को दुरुस्त करते है. हालांकि, यह अभियान कागजों पर ही सिमटी हुई है. धरातल पर नहीं उतारा गया है.

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क्या कहते हैं अधिकारी: गर्मी के दिनों में पेयजल की व्यवस्था अहम होती है. फिलहाल, पूरे राज्य में भीषण गर्मी पड़ रही है. ऐसे में स्कूलों में भी एक समय सारणी के तहत स्कूल संचालित की जा रही है. गर्मी के दौरान स्कूल परिसर में पेयजल की भी व्यवस्था बेहतर करने की कोशिश की जा रही है. अधिकारियों का कहना है कि झारखंड सरकार के शिक्षा विभाग की ओर से सरकारी स्कूलों में खराब पड़े चापाकल को व्यवस्थित और मरम्मत करने के लिए 45 दिन का एक अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के तहत जिन स्कूलों में खराब पड़े चापाकल हैं उन चापाकलों की मरम्मत की जा रही है. गांव-गांव टोला टोला घूम कर वाहन के माध्यम से प्लंबर स्कूल पहुंच रहे हैं. अभियान चलाया जा रहा है यह सिर्फ अधिकारियों का कहना है, धरातल पर देखें इस ओर भी कुछ विशेष ध्यान नहीं है.

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चापाकल के भरोसे हैं स्कूल: ऐसे कई सरकारी स्कूल है जहां पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है. कुछ स्कूलों में फिल्टर जैसी व्यवस्था की गई है लेकिन, राज्य के अधिकतर स्कूलों में चापाकल के भरोसे ही सरकारी स्कूलों के बच्चों का प्यास बुझ रही है. बच्चों ने भी बताया कि चापाकल से ही उनकी प्यास बुझ रही है. स्कूलों में किसी तरह के फिल्टर की व्यवस्था नहीं है.


स्कूलों की स्थिति दयनीय: राज्य के सरकारी स्कूलों की हालत काफी दयनीय है. भवन जर्जर हैं, स्कूलों में शिक्षकों की घोर कमी है. यहां तक कि कुछ ऐसे भी स्कूल हैं, जहां बिजली का कनेक्शन तक नहीं है. वहीं, पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण विद्यार्थियों को चापाकल के सहारे ही अपनी प्यास बुझानी पड़ रही है. राज्य सरकार को चाहिए कि सरकारी स्कूलों की ओर वह विशेष तौर पर ध्यान दें नहीं तो योजनाएं कागजों में ही सिमट कर रह जाएगी.

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