रांचीः झारखंड देश के उन राज्यों में एक हैं, जहां कुपोषण बड़ी समस्या है. कुपोषित माताओं के गर्भ से जन्म लेने वाले शिशु भी कुपोषण के शिकार हो जाते हैं. राज्य सरकार कुपोषण मुक्त झारखंड बनाने को लेकर वर्ष 2021 से अभियान चला रही है और अलगे तीन तीन वर्षों में कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है. स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास विभाग और शिक्षा विभाग के समन्वय से कुपोषण मुक्त समाज बनाने की कोशिश की जा रही है. इसको लेकर राज्यभर में 96 कुपोषण उपचार केंद्र खोले गए हैं. लेकिन इन केंद्रों पर डाइटिशियन नहीं हैं. इस स्थिति में कुपोषण को खत्म करना बड़ी चुनौती है.
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राज्य में 5 साल से कम उम्र के बच्चों को कुपोषण मुक्त करने के लिए सरकार ने कुपोषण उपचार केंद्र खोल रखा है. इन केंद्रों पर पोषणयुक्त आहार और दवाओं की मुफ्त व्यवस्था की गई है, ताकि कुपोषित बच्चे भर्ती होते हैं तो समुचित इजाल किया जा सके. लेकिन राज्य के कुपोषण उपचार केंद्रों में पोषण विशेषज्ञ यानि डाइटीशियन नहीं हैं. नर्से ही आहार विशेषज्ञ की जिम्मेदारी संभाल रही हैं.
डोरंडा के MTC की एएनएम के रूप में कार्यरत सुगंधित ने खुद बच्चों के लिए पूरक पोषण आहार बनाने के लिए एक चार्ट बना रखा है, जिसके आधार पर अलग अलग कुपोषित बच्चों के लिए अलग अलग आहार की मात्रा तय कर लेती हैं. हालांकि, रांची की आहार विशेषज्ञ कुमारी ममता इस चार्ट को पर्याप्त नहीं मानती हैं. उन्होंने कहा कि प्रत्येक कुपोषण उपचार केंद्र पर एक आहार विशेषज्ञ की प्रतिनियुक्ति जरूरी है. आहार विशेषज्ञ की सही तरीके से यह तय कर सकता है कि किस कुपोषित बच्चे को कैसा आहार दिया जाए.
झारखंड में कुपोषण कितना गंभीर
- राज्य में करीब 48 प्रतिशत बच्चे कुपोषित
- बड़ी संख्या में बच्चे हैं अति गंभीर कुपोषित
- 15-20 प्रतिशत बच्चों को कुपोषण उपचार केंद्र में इलाज की जरूरत
- NFHS 4 के अनुसार 0 से 6 वर्ष के बीच का हर दूसरा बच्चा कुपोषित
- 45 प्रतिशत बच्चों का उम्र के हिसाब से वजन होता है कम
- ट्रेंड नर्से ही बनाती हैं उपचार केंद्र में पोषक आहार
डोरंडा कुपोषण उपचार केंद्र पर कार्यरत नर्स सुगंधित कहती हैं कि एक चार्ट के अनुरूप कुपोषित बच्चों को आहार मुहैया कराती है. उन्होंने कहा कि कुछ महीने पहले डाइटिशियन को हटा दिया गया. इसके बाद से किसी की प्रतिनियुक्ति नहीं की गई है. रांची में 4 कुपोषण उपचार केंद्र हैं. इसमें किसी केंद्र पर आहार विशेषज्ञ नहीं है. यही स्थिति राज्य के अन्य कुपोषण उपचार केंद्रों की है. रांची सिविल सर्जन डॉ विनोद कुमार भी स्पष्ट जवाब नहीं देते हैं. इस स्थिति में कुपोषण मुक्त झारखंड बनाना मुश्किल लग रहा है.