रांची: झारखंड में जिन मरीजों को ब्लड की जरूरत होती है, उनके तीमारदारों को ब्लड के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. लेकिन ऐसे मरीजों की भी हालत ठीक नहीं है जिनको ब्लड के अंदर मिलने वाले महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स ही चाहिए. झारखंड के सुदूरवर्ती इलाकों को तो छोड़िए राजधानी रांची में ही यह हाल है. यहां सिर्फ रिम्स में ही इसको लेकर सुविधा है. जबकि राज्य सरकार ने विश्व रक्तदान दिवस पर रांची के सदर अस्पताल सहित कई जिलों में ब्लड सेपरेशन मशीन का उद्घाटन किया था. लेकिन इनका पता नहीं चल रहा है. इससे झारखंड के मरीजों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.
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सेपरेशन मशीन से एक यूनिट ब्लड आ सकता है चार कामः बता दें कि राज्य के किसी भी जिला अस्पताल में ब्लड सेपरेशन मशीन नहीं है. मशीन नहीं होने से रिम्स के ब्लड बैंक पर दबाव अधिक है, जिससे सभी मरीजों की जरूरत भी पूरा नहीं हो पाता है. रिम्स ब्लड बैंक की इंचार्ज डॉ. सुषमा कहती हैं कि स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने में ब्लड सेपरेटर मशीन का अहम योगदान होता है. क्योंकि कई बार मरीजों को आवश्यकतानुसार ब्लड कंपोनेंट चढ़ाने पड़ते हैं. इस स्थिति में ब्लड कॉम्पोनेंट्स को चढ़ाने के लिए ब्लड सेपरेशन मशीन से कंपोनेंट को अलग करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि एक यूनिट ब्लड से चार तरह के कंपोनेंट निकल सकते हैं. इसमें प्लाज्मा, पेकसेल, क्रायो(cryo) और प्लेटलेट्स शामिल हैं. उन्होंने कहा कि थैलेसीमिया, हीमोफीलिया और एनीमिया के मरीजों के लिए ब्लड कंपोनेंट्स ज्यादा जरूरी होता है.
हालांकि, राज्य के अधिकतर अस्पतालों में ब्लड कंपोनेंट अलग करने की व्यवस्था नहीं है. इसके कारण रिम्स पर अत्यधिक बोझ है. इससे जरूरतमंदों को ब्लड और कंपोनेंट्स समय पर नहीं मिल पाता है. रांची सदर अस्पताल ब्लड बैंक की इंचार्ज डॉ. रंजू सिन्हा कहती हैं कि ब्लड से कंपोनेंट निकालने के लिए व्यवस्था नहीं है. लेकिन आवश्यक संसाधनों को लेकर अस्पताल प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयासरत है. उन्होंने कहा कि इसी माह कोलकाता की टीम आकर निरीक्षण करेगी, जो ब्लड सेपरेशन मशीन इंस्टॉल करेगी.
कंपोनेंट न मिलने से पूरा ब्लड चढ़ाना पड़ता है, लाभ भी कमः ब्लड के अंदर मिलने वाली कंपोनेंट की आवश्यकता वैसे मरीजों की होती है, जिसे रक्त संबंधी बीमारियां होती हैं. खासकर, हीमोफीलिया, थैलेसीमिया और एनीमिया के मरीजों को ब्लड के अंदर के कंपोनेंट्स को चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है. इस स्थिति में हीमोफीलिक ट्रीटमेंट सेंटर में आने वाले मरीजों को रिम्स से ब्लड मिल जाता है. लेकिन जिले में जो मरीज होते हैं. उन्हें होल ब्लड (WHOLE BLOOD) चढ़ाना पड़ता है. इससे मरीजों को पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता है. रिम्स के हीमोफीलिक ट्रीटमेंट सेंटर में कार्यरत मुक्ता कुमारी कहती हैं कि एक यूनिट ब्लड से कम से कम 3 मरीजों की आवश्कता पूरी करते हैं. लेकिन कंपोनेंट नहीं होने से एक यूनिट ब्लड सिर्फ एक मरीज को चढ़ाते हैं, जिसका 100 प्रतिशत लाभ भी नहीं मिल पाता है.
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सोनू मिश्रा कहते हैं कि लगातार रक्तदान शिविर का आयोजन कर रहे हैं, ताकि झारखंड के गरीब मरीजों को रक्त की वजह से जान नहीं गवानी पड़े. लेकिन कई बार रक्त होने के बावजूद भी मरीज की जान चली जाती है. इसकी वजह है कि कई मरीजों को रक्त की नहीं, बल्कि उसके अंदर के कंपोनेंट्स की आवश्यकता होती है. बता दें कि राज्य में हीमोफीलिया के करीब हजार मरीज हैं. वहीं, थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या लाखों में है. इस स्थिति में ब्लड कंपोनेंट की आवश्यकता लगातार पड़ती है.
राज्य सरकार ने विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर राजधानी के सदर अस्पताल सहित कई जिला अस्पतालों में ब्लड सेपरेशन यूनिट की शुरुआत की थी. लेकिन वह सिर्फ कागजों पर है. स्थिति यह है कि अब तक योजना धरातल पर नहीं उतर पाई है. लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल रांची सदर अस्पताल सहित विभिन्न जिलों के सदर अस्पतालों में ब्लड सेपरेशन मशीन की शुरुआत हो जाए.