रांची: एक आंकड़े के मुताबिक झारखंड में 50% बच्चे जन्म से ही कम वजन यानि अंडर वेटे होते हैं. कमजोर और एनेमिक मां की कोख से जन्म लेने वाले अंडर वेटे और प्रीमेच्योर बच्चों का जीवन कंगारू मदर केयर थेरेपी (Kangaroo Mother Care therapy) से बच रहा है. यह थेरेपी नई है और कम ही लोग इसके बारे में जानते हैं.
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क्या है कंगारू मदर केयर थेरेपी ?
ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले कंगारू जिस तरह अपने बच्चे को सीने पर प्राकृतिक रूप से बनी थैली में रखती है, उसी तरह के कांसेप्ट लेकर यह थेरेपी तैयार की गई है. इस थेरेपी में मां से नवजात को स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट में रखा जाता है. इससे नवजात को मां की गर्मी मिलती है और बच्चा तेजी से ठीक होने लगता है. इससे नवजात का वजन हर दिन 15 से 20 ग्राम तक बढ़ने लगता है. रिम्स की नियोनेटोलॉजी और एसएनसीयू विभाग की अध्यक्ष डॉक्टर मिनी रानी अखौरी कहती हैं कि जब बच्चे का वजन बढ़ने लगता है तो वह कई तरह की बीमारियों और खतरों से दूर हो जाता है.
कम वजन वाले बच्चों के लिए रामबाण है ये थेरेपी
डॉक्टर के मुताबिक पहले भी मां अपने बच्चों को सीने से लगाए रखती थी लेकिन वह पूरी तरह कंगारू मदर केयर नहीं होता था. बच्चे भले ही मां के करीब होता था लेकिन स्किन टू स्किन कॉनटैक्ट में नहीं होता था. सदर अस्पताल के कंगारू केयर सेंटर की नर्स पूजा कुमारी का कहना है कि जिन बच्चों का वजन ढाई किलो से कम होता है उन्हें यह थेरेपी दी जाती है. हर दो-दो घंटे तक स्तनपान और और कम से कम एक घंटे तक स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट का जादुई असर होता है. बच्चे का वजन तेजी से बढ़ता है. सदर अस्पताल और रिम्स के शिशु रोग विभाग में कंगारू मदर केयर की व्यवस्था की गई.
कंगारू मदर केयर से न सिर्फ नवजात का वजन तेजी से बढ़ता है बल्कि बहुत सारे खतरनाक इन्फेक्शन से भी बच्चों का बचाव होता है. कम वजन वाले बच्चों के अचानक से शरीर ठंडा पड़ जाने का खतरा (हाइपोथेर्मिया) भी कम हो जाता है. मां के साथ भावनात्मक संबंध प्रगाढ़ होने से मां का दूध भी बढ़ता है. घर पर या छोटे शहर के अस्पतालों में भी यह थेरेपी दी जा सकती है. रिम्स की शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मिनी रानी कहती हैं कि झारखंड जैसे राज्य में जहां हर साल बड़ी संख्या में कम वजन वाले शिशु का जन्म होता है, उस स्थिति में यह थेरेपी काफी कारगर है.