रांची: झारखंड में सूचना का अधिकार कानून दम तोड़ रहा है. इस कानून को संरक्षित करनेवाली संवैधानिक संस्था (राज्य सूचना आयोग) खुद बदहाल है. विभाग में सूचना आयुक्तों के सभी पद खाली हैं, जिसके कारण एक साल से आयोग में सुनवाई ठप है.
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खाली दफ्तर और धूल फांकती फाइलें
सरकारी उपेक्षा के कारण दम तोड़ रहे राज्य सूचना आयोग (RTI) में इन दिनों फाइलें धूल फांक रही है. हालत यह है कि मुख्य सूचना आयुक्त का चैंबर जहां मामलों की सुनवाई होती थी, आज वो चैंबर रिकॉर्ड रूम बन गया है. ऑनलाइन और ऑफलाइन आ रहे अपील याचिका को मुख्य सूचना आयुक्त के चैंबर में ही रखा जाता है.
सूचना आयोग में एक साल से सुनवाई ठप
राज्य सूचना आयोग में एक साल से मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का पद खाली है. आयोग को चला रहे प्रभारी सचिव का भी तबादला हो गया है, जिसके कारण अब आयोग के पास सचिव भी नहीं है. इधर मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के पद खाली होने के कारण आयोग में केसों की सुनवाई एक साल से ठप है. इसका फायदा जिला में कार्यरत अधिकारी उठा रहे हैं. समय पर सूचना नहीं देने के कारण आयोग के ओर से दंडित और फटकार के खौफ से दूर जिला स्तर के अधिकारी आरटीआई के तहत कोई सूचना का जवाब देने से कतराने लगे हैं.
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सूचना आयुक्तों के आने तक तारीख पर तारीख
राज्य सूचना आयोग में लिस्टेड सभी मामलों की नई तारीख 06 महीने के लिए दी जा रही है. सूचना आयुक्तों के आने तक केसों की सुनवाई के लिए तारीख पर तारीख देकर खानापूर्ति की जा रही है. आंकड़ों के अनुसार आयोग में सुनवाई के लिए 7669 अपील मामले और 2600 शिकायतें लंबित हैं. हर महिने 450-500 अपील आयोग तक पहुंचता है. लंबित केसों की नई तारीख देकर कार्यालय कर्मी ड्यूटी बजाकर चले जाते हैं.
आयोगकर्मी को सताने लगी वेतन की चिंता
आयोग में कार्यरत कर्मी सोनम की मानें तो हर दिन ऑनलाइन और ऑफलाइन करीब 70-80 अपील याचिका प्राप्त होता है, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त के बिना सहमति से याचिका पर आगे की कार्रवाई नहीं की जा सकती है, मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली होने से अपील पिटिशन पर अभी आयोग में सुनवाई भी शुरू नहीं हो पाई है. वहीं आयोग कर्मी अजय कुमार मिश्रा की मानें तो अब सचिव के नहीं होने से वेतन के भी लाले पड़ जाएंगे.
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आयुक्तों की नियुक्ति के लिए निकाला गया था विज्ञापन
राज्य सरकार ने कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन से पहले (करीब डेढ साल पहले) सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकालकर प्रक्रिया शुरू भी की थी. 150 के करीब आवेदन सरकार के पास मिला भी था, लेकिन इसपर सरकार अब तक निर्णय नहीं ले पाई है. नियम के अनुसार सूचना आयुक्तों का मनोनयन मुख्यमंत्री के नेतृत्व में नेता प्रतिपक्ष सहित अन्य सदस्यों की कमिटी के ओर से की जाती है. नेता प्रतिपक्ष का चयन अब तक नहीं होने के अलावा सरकार के सहयोगी दलों के बीच सूचना आयुक्तों के मनोनयन पर सामंजस्य नहीं बन पाना बड़ी वजह मानी जा रही है.