रांची: झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ ने एक से तीन मई तक पदयात्रा में शामिल राज्यभर में मनरेगा कर्मियों का तीन दिन का मानदेय काटने का निर्देश जारी किया है. झारखंड स्टेट मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि मनरेगा कर्मियों के प्रति सरकार का रवैया सही नहीं है. उन्होंने कहा कि एक मई से तीन दिनों तक पदयात्रा के बाद सरकार ने मनरेगा कर्मियों के हित में कोई कदम उठाने के बजाय पत्र जारी कर तीन दिनों का मानदेय कटौती करने का आदेश जारी किया है.
मानदेय कटौती से सरकार की मंशा हुई उजागरः मनरेगा कर्मियों ने कहा कि सरकार के इस कदम से मनरेगा कर्मियों के प्रति सरकार की मंशा स्पष्ट हो गई है.18 अप्रैल को संघ ने एक मई से तीन मई तक तीन दिवसीय पदयात्रा का फैसला लिया था. इसकी जानकारी भी विभागीय अधिकारियों को उसी दिन यानि 18 अप्रैल को दे दी गई थी. संघ की ओर से पदयात्रा की सूचना सरकार को देते समय अनुरोध किया गया था कि सरकार की ओर से वार्ता की पहल कर मनरेगा कर्मियों के समस्याओं का समाधान करें, लेकिन सरकार की ओर से किसी तरह की कोई वार्ता की पहल नहीं की गई और उल्टे पदयात्रा में शामिल मनरेगा कर्मियों का मानदेय कटौती करने का आदेश जारी कर दिया. इधर, सरकार का कहना है कि लाइफ इंश्योरेंस और हेल्थ इंश्योरेंस इत्यादि मांग सरकार स्तर पर विचाराधीन है. ऐसे में मनरेगा कर्मियों का आंदोलन किसी भी तरह से सही नहीं है.
मनरेगा संविदा कर्मियों को स्थायी करने की मांग अब तक लंबितः झारखंड स्टेट मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने कहा कि वर्तमान सरकार के गठन होने के बाद संविदा कर्मियों को स्थाई करने के लिए राज्य के विकास आयुक्त की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया था. तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कमेटी की रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई है. बेहद अल्प मानदेय में मनरेगाकर्मियों को अपने परिवार का भरण-पोषण करना पड़ रहा है. सरकार की ओर से किसी भी तरह का सर्विस बेनिफिट नहीं दिए जाने के कारण दुर्घटना में मृत्यु या अपंग होने पर किसी तरह का कोई लाभ मनरेगा कर्मियों को नहीं मिलता है. महिला कर्मियों को मातृत्व अवकाश नहीं देना, सेवा शर्त नियमावली के अभाव में छोटी-छोटी गलतियों पर भी बर्खास्त कर दिया जाना आम बात हो गई है.
सरकार के तुगलकी फरमान से नाराज हैं मनरेगा कर्मीः फिलहाल मनरेगा कर्मियों को प्राप्त अपीलीय प्रावधान को भी मजाक बना दिया गया है. प्रमंडलीय आयुक्त द्वारा निर्दोष करार दिए जाने के बावजूद उनके आदेश का उल्लंघन कर जिला उपायुक्त मनरेगा कर्मियों का योगदान नहीं करा रहे हैं. ऐसे में गांधीवादी तरीके से जब अपनी जायज मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन और पदयात्रा कर रहे हैं तो हमारी सैलरी काटी जा रही है. मनरेगा संघ के अध्यक्ष ने कहा कि पदयात्रा करने पर बर्बरता पूर्ण तरीके से सरकार द्वारा तुगलकी फरमान जारी कर मनरेगा कर्मियों को अनिश्चितकालीन हड़ताल की ओर धकेल रही है. सरकार को आगे आकर समस्याओं के समाधान पर विचार करना चाहिए था, लेकिन सरकार ऐसा नहीं चाहती है.
समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो करेंगे बेमियादी हड़तालः सरकार बनने के बाद सैकड़ों बार मुख्यमंत्री से वार्ता के लिए अनुरोध किया गया, लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से एक बार भी वार्ता के लिए समय नहीं दिया गया. सरकार हमारे आंदोलन को दबाना चाहती है. इसलिए दमनकारी नीति अपनायी जा रही है. लेकिन मनरेगा कर्मी डरेंगे नहीं, बल्कि डटेंगे और डटकर सरकार के हर जुल्म का सामना करेंगे. समस्याओं का समाधान जल्द नहीं किया गया तो निश्चित रूप से मनरेगा कर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे.
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मनरेगा कर्मियों का विभागीय अधिकारियों और मंत्री से सवाल
- आखिर चार वर्षों से उच्च स्तरीय कमेटी मनरेगा कर्मियों के भविष्य सुरक्षित करने के लिए क्यों फैसला नहीं ले सकीं.
- जब सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में न्यायादेश पारित कर 10 वर्षों से अधिक समय तक संविदा की नौकरी को स्थाई करने का निर्देश दिया है तो अभी तक अनुबंधित मनरेगा कर्मियों को स्थाई क्यों नहीं किया गया.
- मनरेगा नियुक्ति नियमावली 2007 में मनरेगा कर्मियों को एक वर्ष के लिए रखा जाना था तो 16 वर्षों तक लगातार कार्य कराने के बाद उन्हें उसी नियमावली के कंडिका 11(च) का हवाला देकर स्थायीकरण को टालना कैसे जायज है.
- मात्र 400 रुपए प्रतिदिन का मजदूरी मनरेगा कर्मियों को देना, इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार का लाभ नहीं देना, ये शोषण नहीं है तो और क्या है.