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झारखंड NDA में रार जारी, AJSU और LJP को लेकर अभी भी संशय - झारखंड महासमर

झारखंड में विधानसभा के पहले चरण के लिए नामांकण प्रक्रिया शरू हो गई है, लेकिन झारखंड एनडीए में अभी तक सीट शेयरिंग का फार्मुला तय नहीं हुआ है. वहीं, आजसू सूत्रों की मानें तो उन्होंने 15 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग की है.

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Published : Nov 8, 2019, 1:42 PM IST

रांची: प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के नेतृत्व में चल रही एनडीए गठबंधन के घटक दल अपनी-अपनी राह पर निकल पड़े हैं. बीजेपी का सारा कुनबा दिल्ली शिफ्ट हो गया है. जहां अगले 24 घंटे में सीट शेयरिंग को लेकर तस्वीर साफ कर दी जाएगी. वहीं, प्रदेश में एनडीए के प्रमुख घटक दल आजसू पार्टी का नेतृत्व झारखंड में ही है.

सूत्रों का यकीन करें, तो आजसू को बीजेपी खेमे से दिल्ली आने के लिए संपर्क किया गया था, लेकिन पार्टी सुप्रीमो ने अपनी डिमांड रांची से ही कर दी है. जानकारी के अनुसार सुदेश महतो अपने तय शेड्यूल को फॉलो करते हुए शुक्रवार को गिरिडीह के डुमरी इलाके में मौजूद रहेंगे. वहां पार्टी के चूल्हा प्रमुख की बैठक होनी है.

ये भी देखें- झारखंड में सबसे ज्यादा वक्त तक संभाली सीएम की कुर्सी, अब केंद्र की सियासत में सक्रिय

अपनी राह बनाने में लगा आजसू
प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ लगभग दो दशक से कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला आजसू अब अपनी राह खुद बनाने की जुगत में है. दरअसल, इसके पीछे वजह है, पार्टी पिछले 5 साल से मौजूदा बीजेपी सरकार में हिस्सेदार रही है. वहीं, आजसू पार्टी के उठाए कई मुद्दों पर सरकार खामोश ही रही.

2014 दिसंबर में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 10वां मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और स्टेट केबिनेट में आजसू को एक बर्थ मिली. बावजूद उसके आजसू कई अलग मुद्दों पर सरकार से इधर पॉलिटिकल लाइन लेता रहा. आजसू सूत्रों की माने तो सबसे ज्यादा मतभेद नियोजन नीति और स्थानीयता नीति को लेकर हुई. इन नीतियों की औपचारिक घोषणा के बाद आजसू ने कई आंदोलन किए, जिसमें पार्टी प्रमुख सुदेश महतो ने राज्य भर का दौरा तक कर डाला था. इतना ही नहीं आजसू ने पोस्टकार्ड के माध्यम से भी विरोध जताया था.

ये भी देखें- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: 7 नवंबर की10 बड़ी खबरें

ओबीसी की राजनीति बन रहा है आधार
मूल रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग को साथ लेकर चलने वाली आजसू पार्टी ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की मांग सरकार और मुख्यमंत्री के सामने रखी थी. इसके समर्थन में बकायदा पार्टी सुप्रीमो महतो ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखे और खुद भी मुलाकात कर अपनी बात रखी थी. सरकार में रहकर भी अपनी इन मांगों के लिए पार्टी लड़ती रही, हालांकि आजसू की मांगों को मौजूदा सरकार में वाजिब तवज्जो नहीं मिली है.

ये भी देखें- JVM नेता दिलीप सिंह नामधारी नहीं लड़ेंगे विधानसभा चुनाव, पिता इंदर सिंह नामधारी रह चुके हैं 25 साल तक विधायक

संगठन मजबूत करने में लगा आजसू
इसी बीच पार्टी ने संगठन पर फोकस कर उन सीटों पर ध्यान देना शुरू किया जहां आजसू पार्टी को पॉजिटिव रिजल्ट मिलने की उम्मीद दिखी है. आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की सिल्ली उपचुनाव में हार को लेकर भी पार्टी के अंदर बीजेपी के प्रति नाराजगी दिखी थी. पार्टी सूत्र बताते हैं कि आजसू पार्टी के कैडर से मिले फीडबैक में भी एनडीए फोल्डर से अलग होकर लड़ने की बात सामने आई है. लोकसभा चुनाव में एक तरफ जहां आजसू पार्टी ने 3 सीट की डिमांड रखी थी. वहीं, उसे एक सीट पर समझौता करना पड़ा था. 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बार-बार 2014 के फार्मूले पर सीट शेयरिंग को लेकर बीजेपी के दबाव में भी आजसू को कथित तौर पर अलग राह पकड़ने का मन बना रहा है.

आजसू सूत्रों का यकीन करें तो पार्टी इस बार 15 सीटों पर पूरी तरह से लड़ने का मन बना चुकी है, हालांकि उनमें लोहरदगा, चंदनक्यारी, जुगसलाई और हुसैनाबाद ऐसी विधानसभा सीटें हैं जिन पर पार्टी को कड़ा संघर्ष झेलना पड़ सकता है. एक तरफ जहां आजसू पार्टी ने 15 सीटों के लिए दबाव बनाया है, वहीं लोजपा 6 सीटों की डिमांड को लेकर अड़ी है.

रांची: प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के नेतृत्व में चल रही एनडीए गठबंधन के घटक दल अपनी-अपनी राह पर निकल पड़े हैं. बीजेपी का सारा कुनबा दिल्ली शिफ्ट हो गया है. जहां अगले 24 घंटे में सीट शेयरिंग को लेकर तस्वीर साफ कर दी जाएगी. वहीं, प्रदेश में एनडीए के प्रमुख घटक दल आजसू पार्टी का नेतृत्व झारखंड में ही है.

सूत्रों का यकीन करें, तो आजसू को बीजेपी खेमे से दिल्ली आने के लिए संपर्क किया गया था, लेकिन पार्टी सुप्रीमो ने अपनी डिमांड रांची से ही कर दी है. जानकारी के अनुसार सुदेश महतो अपने तय शेड्यूल को फॉलो करते हुए शुक्रवार को गिरिडीह के डुमरी इलाके में मौजूद रहेंगे. वहां पार्टी के चूल्हा प्रमुख की बैठक होनी है.

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अपनी राह बनाने में लगा आजसू
प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ लगभग दो दशक से कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला आजसू अब अपनी राह खुद बनाने की जुगत में है. दरअसल, इसके पीछे वजह है, पार्टी पिछले 5 साल से मौजूदा बीजेपी सरकार में हिस्सेदार रही है. वहीं, आजसू पार्टी के उठाए कई मुद्दों पर सरकार खामोश ही रही.

2014 दिसंबर में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 10वां मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और स्टेट केबिनेट में आजसू को एक बर्थ मिली. बावजूद उसके आजसू कई अलग मुद्दों पर सरकार से इधर पॉलिटिकल लाइन लेता रहा. आजसू सूत्रों की माने तो सबसे ज्यादा मतभेद नियोजन नीति और स्थानीयता नीति को लेकर हुई. इन नीतियों की औपचारिक घोषणा के बाद आजसू ने कई आंदोलन किए, जिसमें पार्टी प्रमुख सुदेश महतो ने राज्य भर का दौरा तक कर डाला था. इतना ही नहीं आजसू ने पोस्टकार्ड के माध्यम से भी विरोध जताया था.

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ओबीसी की राजनीति बन रहा है आधार
मूल रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग को साथ लेकर चलने वाली आजसू पार्टी ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की मांग सरकार और मुख्यमंत्री के सामने रखी थी. इसके समर्थन में बकायदा पार्टी सुप्रीमो महतो ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखे और खुद भी मुलाकात कर अपनी बात रखी थी. सरकार में रहकर भी अपनी इन मांगों के लिए पार्टी लड़ती रही, हालांकि आजसू की मांगों को मौजूदा सरकार में वाजिब तवज्जो नहीं मिली है.

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संगठन मजबूत करने में लगा आजसू
इसी बीच पार्टी ने संगठन पर फोकस कर उन सीटों पर ध्यान देना शुरू किया जहां आजसू पार्टी को पॉजिटिव रिजल्ट मिलने की उम्मीद दिखी है. आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की सिल्ली उपचुनाव में हार को लेकर भी पार्टी के अंदर बीजेपी के प्रति नाराजगी दिखी थी. पार्टी सूत्र बताते हैं कि आजसू पार्टी के कैडर से मिले फीडबैक में भी एनडीए फोल्डर से अलग होकर लड़ने की बात सामने आई है. लोकसभा चुनाव में एक तरफ जहां आजसू पार्टी ने 3 सीट की डिमांड रखी थी. वहीं, उसे एक सीट पर समझौता करना पड़ा था. 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बार-बार 2014 के फार्मूले पर सीट शेयरिंग को लेकर बीजेपी के दबाव में भी आजसू को कथित तौर पर अलग राह पकड़ने का मन बना रहा है.

आजसू सूत्रों का यकीन करें तो पार्टी इस बार 15 सीटों पर पूरी तरह से लड़ने का मन बना चुकी है, हालांकि उनमें लोहरदगा, चंदनक्यारी, जुगसलाई और हुसैनाबाद ऐसी विधानसभा सीटें हैं जिन पर पार्टी को कड़ा संघर्ष झेलना पड़ सकता है. एक तरफ जहां आजसू पार्टी ने 15 सीटों के लिए दबाव बनाया है, वहीं लोजपा 6 सीटों की डिमांड को लेकर अड़ी है.

Intro:रांची। प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के नेतृत्व में चल रही एनडीए गठबंधन के घटक दल अपनी-अपनी राह पर निकल पड़े हैं। बीजेपी का सारा कुनबा दिल्ली शिफ्ट हो गया है जहां अगले 24 घंटे में सीट शेयरिंग को लेकर तस्वीर साफ कर दी जाएगी। वही प्रदेश में एनडीए के प्रमुख घटक दल आजसू पार्टी का नेतृत्व झारखंड में ही है। अंदरूनी सूत्रों का यकीन करें तो आजसू को बीजेपी खेमे से दिल्ली आने के लिए संपर्क किया गया लेकिन पार्टी सुप्रीमो ने अपनी डिमांड का मैसेज कन्वे कर दिया है। जानकारी के अनुसार महतो अपने तय शेड्यूल को फॉलो करते हुए शुक्रवार को गिरिडीह के डुमरी इलाके में मौजूद रहेंगे। वहां पार्टी के चूल्हा प्रमुख की बैठक होनी है।

अपनी राह बनाने में लगा आजसू
प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ लगभग दो दशक से कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला आजसू अब अपनी राह खुद बनाने की जुगत में है। दरअसल इसके पीछे वाजिब वजह है। एक तरफ जहां पिछले 5 साल में पार्टी मौजूदा बीजेपी सरकार में हिस्सेदार रही। वहीं आजसू पार्टी के द्वारा उठाए कई मुद्दों पर सरकार की खामोशी उसे सिलती रही। 2014 दिसंबर में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने 10 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और स्टेट केबिनेट में आजसू को एक बर्थ मिली। बावजूद उसके आजसू कई अलग मुद्दों पर सरकार से इधर पॉलिटिकल लाइन लेता रहा। आजसू सूत्रों की माने तो सबसे ज्यादा मतभेद नियोजन नीति और स्थानीयता नीति को लेकर हुई। इन नीतियों की औपचारिक घोषणा के बाद आजसू ने कई आंदोलन किए जिसमें पार्टी प्रमुख सुदेश महतो ने राज्य भर का दौरा तक कर डाला।


Body:इतना ही नहीं पोस्टकार्ड के माध्यम से आजसू पार्टी ने अपना विरोध लिख कर जताया।

ओबीसी की राजनीति बन रहा है आधार
मूल रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग को साथ लेकर चलने वाली आजसू पार्टी ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की मांग सरकार और मुख्यमंत्री के सामने रखी। इसके समर्थन में बकायदा पार्टी सुप्रीमो महतो ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखे और खुद भी मुलाकात कर अपनी बात रखी। सरकार में रहकर भी अपनी इन मांगों के लिए पार्टी लड़ती रही। हालांकि आजसू की मांगों को मौजूदा सरकार में वाजिब तवज्जो नहीं मिली।

संगठन मजबूत करने में लगा आजसू
इसी बीच पार्टी ने संगठन पर फोकस कर उन सीटों पर ध्यान देना शुरू किया जहां आजसू पार्टी को पॉजिटिव रिजल्ट मिलने की उम्मीद दिखी। आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो की सिल्ली उपचुनाव में हार को लेकर भी पार्टी के अंदर खाने बीजेपी के प्रति नाराजगी दिखी। पार्टी सूत्र बताते हैं कि आजसू पार्टी के कैडर से मिले फीडबैक में भी एनडीए फोल्डर से अलग होकर लड़ने की बात सामने आई।


Conclusion:लोकसभा चुनाव में एक तरफ जहां आजसू पार्टी ने 3 सीट की डिमांड रखी। वहीं उसे एक सीट पर समझौता करना पड़ा। 2019 में होनेवाले विधानसभा चुनाव में बार-बार 2014 के फार्मूले पर सीट शेयरिंग को लेकर बीजेपी के दबाव में भी आजसू को कथित तौर पर अलग राह पकड़ने का मन बना रहा है। आजसू सूत्रों का यकीन करें तो पार्टी इस बार 15 सीटों पर पूरी तरह से लड़ने का मन बना चुकी है। हालांकि उनमें लोहरदगा, चंदनक्यारी, जुगसलाई और हुसैनाबाद ऐसी विधानसभा सीटें हैं जिन पर पार्टी को कड़ा संघर्ष झेलना पड़ सकता है।
एक तरफ जहां आजसू पार्टी ने 15 सीटों के लिए दबाव बनाया है वहीं लोजपा 6 सीटों की डिमांड को लेकर खड़ी है।
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