रांचीः गिरिडीह के पारसनाथ स्थित सम्मेद शिखरजी को लेकर उपजा विवाद सुलझने के बजाय उलझता नजर आ रहा है. आदिवासी समाज का मानना है कि केंद्र सरकार ने आदिवासी समाज की आस्था को नजरअंदाज कर जैन धर्मावलंबियों के पक्ष में पारसनाथ में कई प्रतिबंध लगा दिए हैं. इसको लेकर आदिवासी संगठनों में नाराजगी है. इस मसले पर पर्यटन मंत्री हफीजूल हसन ने कहा कि यह कोई नया मामला नहीं (Minister Hafizul Hasan statement on Parasnath )है. वहां जैन धर्मावलंबी भी हैं और मरांग बुरु में आस्था रखने वाले भी हैं.
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उन्होंने भरोसा दिलाया कि किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि किसी की भी आस्था को ठेस ना पहुंचे. उन्होंने कहा कि इस मसले को खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन देख रहे हैं. उनकी अगुवाई में ही फैसला होना है. पर्यटन मंत्री से पूछा गया कि पारसनाथ पर झामुमो के ही विधायक लोबिन हेंब्रम खुलकर केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार को घेर रहे हैं. इस सवाल को टालते हुए पर्यटन मंत्री ने कहा कि सरकार की कोशिश होगी कि वहां किसी तरह का माहौल ना बिगड़े. पहले से जो व्यवस्था चली आ रही थी, उसी व्यवस्था को बनाए रखने की कोशिश की जाएगी.
विवाद की क्या है वजहः दरअसल, पारसनाथ के पर्यटन क्षेत्र घोषित होने से जैन धर्मावलंबी आहत थे. देश में जगह-जगह प्रदर्शन किए जा रहे थे. सरकार के इस फैसले के खिलाफ राजस्थान में दो जैन मुनियों ने प्राण भी त्याग दिए थे. लिहाजा, जैनियों की आस्था का ख्याल रखते हुए केंद्र सरकार ने पारसनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य की प्रबंधन योजना के खंड 7.6.1 के प्रावधानों को सख्ती से लागू कराने का निर्देश राज्य सरकार को दिया. साथ ही पवित्र पारसनाथ क्षेत्र से परे बफर जोन की रक्षा के लिए 2 अगस्त 2019 को अधिसूचित इको सेंसिटिव जोन के खंड 3 के प्रावधानों पर तत्काल रोक लगा दी है. केंद्र के इन दो फैसलों के मुताबिक इस क्षेत्र में शराब और मांस की खरीद-बिक्री और उपयोग पर रोक के साथ-साथ पर्यटक के रूप में जाने और इको सेंसिटिव जोन की गतिविधियां नहीं संचालित होंगी. अब इसी को लेकर आदिवासी समाज यह कहते हुए नाराजगी दिखा रहा है कि इस व्यवस्था से पारसनाथ क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों की आस्था प्रभावित होगी.