रांची: कहते हैं यदि जुनून और जज्बा हो तो इन्सान किसी भी सपने को पूरा कर सकता है, कुछ ऐसा ही कर दिखाया है रांची के धुर्वा की रहने वाली मेघा श्रीवास्तव ने. 28 वर्ष की मेघा श्रीवास्तव रांची के एक बैंक में काम करती हैं और उन्होंने अपने लेखनी के दम पर इंटरनेशनल एजुकेशन अवार्ड 2022 का खिताब जीता (Megha got International Education Award 2022)है. अवार्ड जीत कर मेघा श्रीवास्तव ने सिर्फ अपने परिवार का ही नहीं बल्कि पूरे राज्य का नाम रोशन किया है. मेघा श्रीवास्तव अपने लिखने की यात्रा के बारे में ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही लिखने का शौक है और वह देर रात तक जागकर समाज के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कुछ न कुछ लिखा करती हैं.
इसी दरमियान उन्होंने एक आर्टिकल लिखा जिसका नाम 'सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग' के नाम से छपा था. इस आर्टिकल के छपने के बाद उनकी लेखनी की प्रशंसा जोर शोर से होने लगी और उन्हें कई मैगजीन एवं बड़े संस्थानों से लिखने का आमंत्रण आने लगा. पहली बार नवनार/निजी मैगजीन में आर्टिकल छपने के बाद उन्हें देशभर के बड़े-बड़े किताबों के संस्थाओं ने संपर्क करना शुरू किया और उन्हें लिखने का एक रास्ता मिल गया.
मेघा श्रीवास्तव उसके बाद सफलता की नींव, बेटी, भाई बहन का अटूट प्यार, जिंदगी एक कश्मकश, पापा के लिए है क्या कहना वह तो है परिवार का गहना, जितना कठिन संघर्ष उतनी ही शानदार जीत जैसे कई आर्टिकल्स लिखे और उनके आर्टिकल की खूब चर्चा हुई. इन आर्टिकल्स से ख्याति प्राप्त करने के बाद मेघा श्रीवास्तव ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनकी लेखनी की क्षमता बढ़ती गई और उनके बेहतरीन शीर्षक छपने के बाद ओएमजी बुक ऑफ रिकॉर्ड(OMG BOOKS OF RECORD) ने उनसे संपर्क किया और फिर मेघा लिखने की दुनिया में लगातार आगे बढ़ती चली गई.
ओएमजी बुक रिकॉर्ड में जाने के बाद मेघा श्रीवास्तव ने देश के नामी-गिरामी पब्लिकेशन ज्ञानवाणी के लिए श्री कृष्ण लीला नाम की एक किताब लिखी, जिसमें वह सह लेखक के रूप में चर्चित हुई. इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड और ओएमजी बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में 'श्री कृष्ण लीला' की सह लेखक बनने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और कई बड़े पब्लिकेशन हाउस के लिए किताब लिखना शुरू किया. मेघा श्रीवास्तव ने ब्राउन पेज जैसे बड़े पब्लिकेशन हाउस के लिए आवर फोर्स आवर प्राइड (OUR FORCE OUR PRIDE) नाम की किताब लिखी जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में खूब हुई. जिसके बाद इंटरनेशनल एजुकेशन अवार्ड में उनका नाम आया और उन्हें बेहतर महिला लेखक का अवार्ड प्रदान किया गया.
बता दें कि मेघा की पढ़ाई लिखाई रांची में हुई थी और वह बचपन से ही लिखने की शौकीन थी. साधारण परिवार होने के कारण उन्हें बड़े प्लेटफार्म नहीं मिल पा रहे थे. लेकिन संघर्ष के बावजूद मेघा श्रीवास्तव ने लिखने का शौक नहीं छोड़ा और अंत में उसने उस उपलब्धि को प्राप्त की जिसके लिए सारी दुनिया आज उन पर गर्व महसूस कर रही है. मेघा श्रीवास्तव की मां पूनम कुमारी बताती हैं कि आज उन्हें अपनी बेटी पर गर्व हो रहा है. उनकी बेटी ने जो उपलब्धि प्राप्त की है वह पूरे समाज के लिए एक मिसाल है. पूनम कुमारी ने समाज के हर वर्ग को संदेश देते हुए कहा कि आज झारखंड बिहार और अन्य पिछड़े राज्यों में बेटी और बेटे के बीच अंतर किए जाते हैं, लेकिन यदि बेटियों को पढ़ाने की कोशिश की जाए तो हमारा देश और भी आगे जाएगा.
मेघा के पिता मनोहर श्रीवास्तव बताते हैं कि वह झारखंड सरकार के बिजली विभाग में काम करते थे. उनका इतना वेतन नहीं था कि वह अपने बच्चे को बड़े संस्थान में पढ़ा सके लेकिन उनकी बेटी ने अपने पिता की समस्याओं को नजरअंदाज कर अपनी लगन और मेहनत से सफलता प्राप्त की. जिसके बाद आज पूरे झारखंड में उन्हें उनकी बेटी के नाम से जाना जाने लगा. उन्होंने बताया कि आज उन्हे गर्व हो रहा है कि वह मेघा के पिता हैं और मेघा देश की बेटियों के लिए एक मिसाल बन गई है.