रांची: आदिवासी बहुल झारखंड के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा को और मजबूत बनाने के लिए काम शुरू कर दिया गया है. अब सुदूर पहाड़ी और जंगल में बसे ग्रामीणों को मामूली बीमारी से जुड़ी दवाओं से लिए तरसना नहीं पड़ेगा. अब उनके पंचायत में ही दवाएं मिल सकेंगी. मामूली बीमारी के गंभीर बीमारी में तब्दील होने की नौबत ही नहीं आएगी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पहल पर पंचायत स्तर पर दवा दुकान खोलने की कवायद शुरू कर दी गई है. अबतक पूरे राज्य में दवा दुकान के लिए 543 आवेदन स्वीकृत कर दिए गये हैं.
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इस पहल को सबसे ज्यादा देवघर जिला में रिस्पांस मिल रहा है. ग्राम पंचायत स्तर पर दवा दुकान खोलने के लिए अबतक कुल 1593 आवेदन मिले हैं. इनमें से 543 आवेदन स्वीकृत कर दिए गये हैं. शेष 962 आवेदन की स्क्रूटनी का काम चल रहा है. सबसे अधिक देवघर से 233, गिरिडीह से 230, धनबाद से 212, रांची से 138, गोड्डा से 102, पलामू से 85 और हजारीबाग और बोकारो से 75-75 आवेदन मिले हैं. वहीं चतरा में पिछले दिनों मुख्यमंत्री खुद तीन लोगों को स्वीकृति पत्र प्रदान कर चुके हैं. वहां दवा दुकान का शुभारंभ भी हो चुका है.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर दवा की बिक्री के लिए फार्मासिस्ट की उपस्थिति की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है. प्रपत्र 20ए और 21ए में दवा दुकान के लिए अनुज्ञप्ति निर्गत की जा रही है. जरूरत पड़ने पर खुदरा औषधि विक्रेता के माध्यम से सभी प्रकार की दवा ग्रामीणों को उपलब्ध करायी जा सकेगी. मुख्यमंत्री का मानना है कि न सिर्फ ग्रामीणों को ससमय दवा मिले बल्कि गांवों के शिक्षित ग्रामीणों को अपने घर में ही रोजगार का अवसर भी मिले.
पंचायत स्तर पर दवा दुकानें खुलने के बाद संबंधित पंचायत के ग्रामीणों को विभागीय हेल्प लाइन नंबर 104 के साथ समन्वय स्थापित कर टेली-मेडिसिन औप टेली-कंसल्टेंसी की सुविधाएं निःशुल्क उपलब्ध कराई जाएंगी. यह जवाबदेही अनुज्ञप्तिधारी की होगी. इसके लिए कल्याण विभाग मुख्यमंत्री रोजगार गारंटी कार्यक्रम के तहत अनुज्ञप्तिधारियों को अनुमान्य सहायता उपलब्ध कराएगा. दवा दुकान खोलने वालों को बैंक से लोन दिलाने में सहयोग करना की जवाबदेही संबंधित प्रखंड के विकास पदाधिकारी को दी गई है.