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गुमला में 16 फरवरी को सामूहिक विवाह कार्यक्रम, 55 जोड़ों की कराई जाएगी शादी

गुमला के बसिया सरना स्टेडियम में 16 फरवरी को सामूहिक विवाह का आयोजन किया जाएगा. लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे 55 जोड़ों को भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार शादी के पावन सूत्र में बांधने का काम निमित्त संस्था सालों से कर रही है.

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Published : Feb 15, 2021, 9:46 PM IST

Mass wedding program on 16 February in Gumla
सामूहिक विवाह का आयोजन

रांची: सामाजिक ताना-बाना के बीच लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे 55 जोड़ों को भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार शादी के पावन सूत्र में बांधने के लिए निमित्त संस्था 16 फरवरी को गुमला जिले के बसिया सरना स्टेडियम में सामूहिक विवाह का आयोजन करने जा रही है. निमित्त संस्थान के ओर से 55 जोड़ों को परिणय सूत्र में बांधने का काम किया जाएगा, जो समाज के डर, लाज, शर्म और ताना-बाना का मार झेल रहे थे. उनके रिश्तों को सही मायने में अधिकार मिलेगा.

इसे भी पढे़ं: रांची में नागपुरी फिल्म सिक्का के लिए ऑडिशन, स्थानीय कलाकारों को दिया जा रहा मौका



आदिवासी समाज में विवाह के बाद पूरे गांव को दावत देने की परंपरा होती है. इस आयोजन को पूरा नहीं करने पर शादी पूरी नहीं मानी जाती है. आदिवासी समाज में शादी के समय पूरे समाज को भोज देने की परंपरा है. शादी के बाद नए जोड़े जब घर प्रवेश करते हैं, तो उसे दुकुवा कहा जाता है. सामाजिक रीति-रिवाज के बीच आदिवासी समुदाय के कई लोग फंस जाते हैं.


दशकों से चली आ रही लिव इन रिलेशनशिप
आदिवासी समाज में या गरीबी और मजबूरी की मार होती है जिससे लिव इन रिलेशनशिप का चलन पैदा हो गया है, जो दशकों से चली आ रही है. युवती और युवक साथ रहते हैं और पति-पत्नी की तरह जिंदगी व्यतीत करते हैं. इसी बीच उनके बच्चे भी होते हैं और पारिवारिक जिम्मेदारी समझने लगते हैं, लेकिन उनके रिश्ते का कोई नाम नहीं होता है. उसी रिश्ते को नाम देने के लिए निमित्त संस्था पिछले कई सालों से प्रयास कर रही है और सामूहिक विवाह के तहत इन जोड़ों को नाम देने का काम कर रही है.

रांची: सामाजिक ताना-बाना के बीच लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे 55 जोड़ों को भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार शादी के पावन सूत्र में बांधने के लिए निमित्त संस्था 16 फरवरी को गुमला जिले के बसिया सरना स्टेडियम में सामूहिक विवाह का आयोजन करने जा रही है. निमित्त संस्थान के ओर से 55 जोड़ों को परिणय सूत्र में बांधने का काम किया जाएगा, जो समाज के डर, लाज, शर्म और ताना-बाना का मार झेल रहे थे. उनके रिश्तों को सही मायने में अधिकार मिलेगा.

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दशकों से चली आ रही लिव इन रिलेशनशिप
आदिवासी समाज में या गरीबी और मजबूरी की मार होती है जिससे लिव इन रिलेशनशिप का चलन पैदा हो गया है, जो दशकों से चली आ रही है. युवती और युवक साथ रहते हैं और पति-पत्नी की तरह जिंदगी व्यतीत करते हैं. इसी बीच उनके बच्चे भी होते हैं और पारिवारिक जिम्मेदारी समझने लगते हैं, लेकिन उनके रिश्ते का कोई नाम नहीं होता है. उसी रिश्ते को नाम देने के लिए निमित्त संस्था पिछले कई सालों से प्रयास कर रही है और सामूहिक विवाह के तहत इन जोड़ों को नाम देने का काम कर रही है.

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