रांची: भगवान शिव को खुश करने के लिए भक्त अलग अलग तरीके अपनाते हैं. इसमें से एक है मंडा पूजा, जो झारखंड में लंबे समय से होती आ रही है. नौ दिनों तक चलने वाले मंडा पूजा के दौरान बुजुर्ग से लेकर बच्चे तक दहकते अंगारों पर चलते हैं. इससे पहले वे अंगार स्थल महादेव की पूजा और परिक्रमा करते हैं. मंडा पूजा में दो तरह के लोग शामिल होते हैं, एक तो वे जिन्हें मन्नत मांगनी होती है, दूसरे वे जिनकी मन्नत पूरी हो गई होती है. राजधानी रांची के अरगोड़ा में इन दिनों मंडा पूजा की धूम देखने मिल रही है.
इसे भी पढ़ें: VIDEO: गंगा घाट पर शराबियों का पंडित जी ने उतारा भूत, नशेड़ियों की डंडे से की पूजा
महामारी से बचने के लिए होती है शिव की अनोखी आराधना: मंडा पूजा के जरिए लोग महामारी से बचाने के लिए भगवान शिव की आराधना करते हैं. इसके तहत लोग नौ दिनों तक व्रत रखकर फूलकुंदी के दिन नंगे पांव आग पर चलकर भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं. उसके बाद दूसरा दिन झूलन होता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु तालाब से कलश भरकर शिव मंदिर में अर्पण करते हैं. इसके साथ ही झूलन के दौरान फूलों की बारिश होती है, जिसमें महिलाएं आंचल पसारकर मन्नतें मांगती हैं. शिव की इस कठिन साधना में लगे हजारों श्रद्धालू अच्छी बारिश और परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं. पूजा से पहले मुख्य भोक्ता कलश का जल छिड़कर सबकी शुद्धि करते हैं.
किसने की थी मंडा पूजा की शुरुआत: मंडा पूजा का इतिहास (History of Manda Puja) काफी प्राचीन है. मान्यताओं के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत नागवंशी राजाओं (Nagvanshi Kings) ने की थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार मंडा पूजा सती की याद में की जाती है. मंडा पूजा करने वाले भक्त इसे माता सती का आशीर्वाद मानते हैं. श्रद्धालु शिव प्रसाद साहु के अनुसार यह मंडा पूजा की परंपरा लंबे समय से है, जिसे श्रद्धालु पूरी भक्ति भाव के साथ मनाते रहे हैं.