रांची: आजादी के 70 साल से अधिक बीत गए हैं लेकिन आज तक यहां के लोगों ने मजहबी एकता का ही परिचय दिया है. आजादी के बाद जिन भी लोगों ने भारत की धरती को चुना, उसे चुमा भी है. तभी तो त्योहार किसी धर्मावलंबी के हो इसमें शरीक हर कोई होता है. देखा जाए तो त्योहार में वे केवल शरीक ही नहीं होते बल्कि उसके भागीदार भी बनते हैं और बात जब देश के स्वतंत्रता दिवस की हो तब भला इसमें कौन पीछे रहना चाहेगा. तिरंगे की शान में ऐसा कोई मजहब नहीं जिसके अनुयायियों ने अपनी जान नहीं दी है.
वैसे देखा जाए तो तिरंगे की शान में लोगों ने जान ही नहीं दी है बल्कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर लोग तिरंगा लहराकर जश्न मना सके इसके लिए सभी समारोह की तैयारियों में भी जुटते हैं. अब जब स्वतंत्रता दिवस इतना नजदीक आ चुका है तो राजधानी रांची में भी इस विशेष दिवस को लेकर तैयारियां जोर-शोर पर है.
इन दो परिवार में से एक परिवार है अब्दुल सत्तार चौधरी का, जो अप्पर बाजार स्थित पुस्तक पथ के समीप अपनी तिरंगे की दुकान चलाते हैं. इस दुकान में इनके परिवार के सदस्य भी हाथ बंटाते हैं. इनका कहना है कि चार माह पूर्व से वह तिरंगा निर्माण में जुट जाते हैं ताकि राजधानी के लोगों को देश की शान तिरंगा आसानी से मुहैया हो सके. वे कहते हैं कि जैसे-जैसे समारोह का दिन नजदीक आता जाता है, वैसै-वैसे तिरंगा निर्माण का काम कम होता जाता है और बिक्री बढ़ती जाती है.
वहीं, दूसरी ओर हरमू के रहने वाले मोहम्मद आलम कहते हैं कि वह जून महीने से ही तिरंगा निर्माण काम में जुट जाते हैं. पहले दादा, फिर पिता और अब वे इस काम में जुट गए हैं. उनका कहना है कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस हर किसी को तिरंगा फहराकर देश के लिए मर-मिटने की कसम खानी चाहिए.
यह दोनों ही परिवार पिछले 70 वर्षों से रांची में तिरंगा निर्माण में जुटा है. यूं तो यह परिवार आए दिन पताका निर्माण कार्य में जुटा रहता है. सरहुल हो रामनवमी हो यो कोई और मौका सबमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं लेकिन इनका कहना है कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर परिवारों में खुशी चौगुनी रहती है. सच में यही मजहबी एकता हमारे देश की आन-बान-शान है. जिसकी मजबूती के दम पर हमारा तिरंगा हमेशा लहराता रहता है.