लोहरदगा: सरकार स्मार्ट क्लास, मॉडल शिक्षा व्यवस्था समेत कई सुविधाओं की बात करती है लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है. हम बात कर रहे हैं लोहरदगा के सरकारी स्कूलों की. यहां के सरकारी स्कूलों की हालत कुछ ऐसी ही है. स्कूलों में न तो पर्याप्त शिक्षक हैं और न ही पर्याप्त संसाधन और भवन. पहाड़ी और जंगली इलाकों में बसे गांवों में स्थित स्कूलों की हालत और भी खराब है.
एक-एक शिक्षक के भरोसे 111 स्कूल
शिक्षा विभाग के मुताबिक लोहरदगा में 111 सरकारी स्कूल हैं, जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं. अब ऐसे में समझा जा सकता है कि एक शिक्षक आधा दर्जन कक्षाओं के बच्चों को एक साथ कैसे पढ़ा सकता है. न तो पर्याप्त भवन हैं और न ही पर्याप्त संसाधन. शिक्षा विकास के नाम पर आने वाली राशि का सही तरीके से खर्च नहीं हो पाता है.
ऐसे में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती है. सरकार शिक्षा के अधिकार अधिनियम की बात करती है, लेकिन सच्चाई यह है कि लोहरदगा में 111 सरकारी स्कूल हैं, इन सभी स्कूलों में सिर्फ एक-एक शिक्षक हैं. पहाड़ी और जंगली इलाकों में बसे गांवों में स्थित सरकारी स्कूलों की हालत और भी खराब है.
सरकारी स्तर से नियुक्ति ही एकमात्र समाधान : डीईओ
जिले के सुदूरवर्ती किस्को प्रखंड के देवदरिया पंचायत के प्राथमिक विद्यालय खड़िया में भी यही स्थिति है. इस विद्यालय में मात्र एक कमरे का भवन है. यहां मात्र एक शिक्षक है. जबकि पांच कक्षाएं संचालित होती हैं. अब ऐसे में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे मिलेगी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चे स्कूल आने की औपचारिकता ही पूरी कर रहे हैं.
सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी को लेकर शिक्षा विभाग चिंतित नजर आ रहा है. लोहरदगा डीईओ नीलम आइलीन टोप्पो कहती हैं कि सरकारी स्तर से नियुक्ति ही समाधान हो सकता है. हालांकि भवन की कमी को लेकर उनके पास कोई ठोस जवाब नहीं है.
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