ETV Bharat / state

झारखंड की मिट्टी है बीमार! इलाज के लिए खरीदी गई करोड़ों की मशीनें हुईं कबाड़ - Jharkhnad News

झारखंड की मिट्टी खेती के अनुरूप नहीं मानी जाती है. कहीं इसमें बहुत से तत्वों की कमी है तो कहीं अधिकता. इसी को ध्यान में रखते हुए 2014 में भाजपा सरकार ने सॉइल हेल्थ कार्ड योजना शुरू की थी (Soil Health Card Scheme in Jharkhand). इसके तहत मिट्टी की जांच के बाद उसकी कमियों को दूर कर ज्यादा फसल उगाया जा सकता था. इसके तहत करोड़ों की मशीनें खरीदी गई थी, जो हेमंत सरकार की तरफ से योजना के लिए राशि निर्गत नहीं होने पर कबाड़ बन गई है.

Soil Health Card Scheme in Jharkhand
सॉइल टेस्टिंग मशीन
author img

By

Published : Jan 5, 2023, 8:49 PM IST

रांची: साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी थी तो उस समय पीएम मोदी ने किसानों की खुशहाली के लिए जिन चीजों पर विशेष ध्यान दिया था, उसमें से एक थी सॉइल हेल्थ कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme in Jharkhand). इस योजना के तहत किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच कर यह पता लगाना था कि जिस मिट्टी में किसान फसल उगाता है, उस खेत की मिट्टी की तासीर कैसी है, उस मिट्टी में किस-किस पोषक तत्वों की कमी है और कैसे किसान अपनी मिट्टी की कमियों को दूर कर ज्यादा से ज्यादा फसल उगा सकता है.

ये भी पढ़ें: 19 जिलों के कृषि पदाधिकारियों ने केंद्र को नहीं सौंपी राशि उपयोगिता रिपोर्ट, लापरवाही पड़ सकती है भारी!

झारखंड में लगाए गए थे 3164 सॉइल टेस्टिंग मशीन: मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना के तहत वर्ष 2016-17 में भारत सरकार ने 1300 पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन झारखंड को दिए थे. फिर 2017-18 में तत्कालीन रघुवर दास की सरकार ने 18 करोड़ की 1864 मशीनें खरीदी. इस तरह 3164 सॉइल टेस्टिंग मशीन अलग-अलग पंचायत में स्थापित किए गए और मिट्टी की जांच शुरू की गई. ताकि पंचायत स्तर पर ही रीजेंट के माध्यम से किसानों को उनके खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य को लेकर जानकारी मिल सके और किसान उसी के अनुरूप खेतों में उर्वरक और माइक्रो न्यूट्रियंट्स डाल कर ज्यादा उत्पादन ले सके.


कबाड़ में तब्दील हो गई है पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन: जिस पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन से खेतों की मिट्टी के 14 किस्म की जांच का दावा किया जाता रहा है, वह मशीन शुरुआती कुछ सालों तक तो ठीक ठाक चली. रीजेंट रिफिल पर आधारित इस मिनी लैब में जैसे-जैसे रिफिल समाप्त होता गया, वैसे वैसे मिनी लैब बंद होते चले गए, क्योंकि हेमंत सोरेन सरकार ने रीजेंट के लिए राशि ही निर्गत नहीं की और जब राशि निर्गत हुई तो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉइल साइंस भोपाल ने रीजेंट सप्लाई करने वाली एजेंसी नागार्जुन एग्रो केमिकल प्राइवेट लिमिटेड हैदराबाद का लाइसेंस रद्द कर दिया. नतीजा यह हुआ कि रीजेंट के अभाव में राज्य में मृदा परीक्षक मिनी लैब ऐसे ही पिछले 3 वर्षों से पड़ा रहा गया.


झारखंड की मिट्टी एसिडिक, ट्रीटमेंट जरूरी: कृषि उपनिदेशक मुकेश कुमार सिन्हा कहते हैं कि सॉइल हेल्थ कार्ड योजना के तहत जितनी भी जांच हुई है, उसके अनुसार राज्य के अधिकांश जिलों की मिट्टी में कई पोषक तत्वों की कमी है और कुछ तत्वों की अधिकता है. राज्य में ज्यादातर जगहों पर मिट्टी अम्लीय यानि एसिडिक है. वहीं झारखंड की मिट्टी में बोरॉन, जिंक, पोटाश, फास्फोरस, सल्फर सहित कई पोषक तत्वों की कमी है तो एल्मुनियम और आयरन की अधिकता है. अम्लीय मिट्टी होने के कारण इसका चूना ट्रीटमेंट भी जरूरी होता है. मिट्टी विशेषज्ञ सत्यप्रकाश कहते हैं कि जब हर दो साल पर मिट्टी के सेहत की जांच होगी और उसके अनुसार विशेषज्ञ की सलाह पर अन्नदाता खेतों में उर्वरक, माइक्रो न्यूट्रियंट्स का इस्तेमाल करेंगे, तब खेती अच्छी होगी और किसान खुशहाल होंगे.


मिट्टी की जांच कर कमियां दूर की जाए तो बढ़ेगी उपज: कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर खेतों की मिट्टी की सेहत सुधारकर, उसका ट्रीटमेंट कर खेती की जाए तो लगभग 20-30% उपज बढ़ जाएगी. वहीं किसानों की खेती लागत भी कम हो जाएगी. क्योंकि अभी किसान बिना जाने उन सभी उर्वरकों और रसायन का प्रयोग करते हैं, जिसकी जरूरत भी उनके खेत की मिट्टी को नहीं होती.


जल्द मिनी सॉइल हेल्थ टेस्ट लैब शुरू होने की उम्मीद: राज्य में एक बार फिर पंचायत स्तर पर मिट्टी जांच अगले वित्तीय वर्ष में शुरू हो सकेगी. इसकी उम्मीद कृषि अधिकारी इसलिए जता रहे हैं क्योंकि एक ओर जहां कृषि विभाग ने रीजेंट के लिए राशि की मांग करते हुए प्रस्ताव विभाग को भेजा है, तो दूसरी ओर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉइल साइंस भोपाल ने डिजिटल इंडिया रूरल मिशन प्राइवेट लिमिटेड को मिट्टी जांच किट के लिए रीजेंट का लाइसेंस दे दिया है. इससे पहले पोर्टेबल सॉइल टेस्टिंग किट के 9492 रिफिल के लिए 27 करोड़ रुपये जारी किए गए थे, लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं हुआ क्योंकि रीजेंट बनाने वाली कंपनी का लाइसेंस ही रद्द हो गया था. उम्मीद की जा रही है कि नए वित्तीय वर्ष में पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन से पंचायत स्तर पर ही मिट्टी की सेहत की जांच हो सकेगी.

रांची: साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में NDA की सरकार बनी थी तो उस समय पीएम मोदी ने किसानों की खुशहाली के लिए जिन चीजों पर विशेष ध्यान दिया था, उसमें से एक थी सॉइल हेल्थ कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme in Jharkhand). इस योजना के तहत किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच कर यह पता लगाना था कि जिस मिट्टी में किसान फसल उगाता है, उस खेत की मिट्टी की तासीर कैसी है, उस मिट्टी में किस-किस पोषक तत्वों की कमी है और कैसे किसान अपनी मिट्टी की कमियों को दूर कर ज्यादा से ज्यादा फसल उगा सकता है.

ये भी पढ़ें: 19 जिलों के कृषि पदाधिकारियों ने केंद्र को नहीं सौंपी राशि उपयोगिता रिपोर्ट, लापरवाही पड़ सकती है भारी!

झारखंड में लगाए गए थे 3164 सॉइल टेस्टिंग मशीन: मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना के तहत वर्ष 2016-17 में भारत सरकार ने 1300 पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन झारखंड को दिए थे. फिर 2017-18 में तत्कालीन रघुवर दास की सरकार ने 18 करोड़ की 1864 मशीनें खरीदी. इस तरह 3164 सॉइल टेस्टिंग मशीन अलग-अलग पंचायत में स्थापित किए गए और मिट्टी की जांच शुरू की गई. ताकि पंचायत स्तर पर ही रीजेंट के माध्यम से किसानों को उनके खेत की मिट्टी के स्वास्थ्य को लेकर जानकारी मिल सके और किसान उसी के अनुरूप खेतों में उर्वरक और माइक्रो न्यूट्रियंट्स डाल कर ज्यादा उत्पादन ले सके.


कबाड़ में तब्दील हो गई है पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन: जिस पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन से खेतों की मिट्टी के 14 किस्म की जांच का दावा किया जाता रहा है, वह मशीन शुरुआती कुछ सालों तक तो ठीक ठाक चली. रीजेंट रिफिल पर आधारित इस मिनी लैब में जैसे-जैसे रिफिल समाप्त होता गया, वैसे वैसे मिनी लैब बंद होते चले गए, क्योंकि हेमंत सोरेन सरकार ने रीजेंट के लिए राशि ही निर्गत नहीं की और जब राशि निर्गत हुई तो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉइल साइंस भोपाल ने रीजेंट सप्लाई करने वाली एजेंसी नागार्जुन एग्रो केमिकल प्राइवेट लिमिटेड हैदराबाद का लाइसेंस रद्द कर दिया. नतीजा यह हुआ कि रीजेंट के अभाव में राज्य में मृदा परीक्षक मिनी लैब ऐसे ही पिछले 3 वर्षों से पड़ा रहा गया.


झारखंड की मिट्टी एसिडिक, ट्रीटमेंट जरूरी: कृषि उपनिदेशक मुकेश कुमार सिन्हा कहते हैं कि सॉइल हेल्थ कार्ड योजना के तहत जितनी भी जांच हुई है, उसके अनुसार राज्य के अधिकांश जिलों की मिट्टी में कई पोषक तत्वों की कमी है और कुछ तत्वों की अधिकता है. राज्य में ज्यादातर जगहों पर मिट्टी अम्लीय यानि एसिडिक है. वहीं झारखंड की मिट्टी में बोरॉन, जिंक, पोटाश, फास्फोरस, सल्फर सहित कई पोषक तत्वों की कमी है तो एल्मुनियम और आयरन की अधिकता है. अम्लीय मिट्टी होने के कारण इसका चूना ट्रीटमेंट भी जरूरी होता है. मिट्टी विशेषज्ञ सत्यप्रकाश कहते हैं कि जब हर दो साल पर मिट्टी के सेहत की जांच होगी और उसके अनुसार विशेषज्ञ की सलाह पर अन्नदाता खेतों में उर्वरक, माइक्रो न्यूट्रियंट्स का इस्तेमाल करेंगे, तब खेती अच्छी होगी और किसान खुशहाल होंगे.


मिट्टी की जांच कर कमियां दूर की जाए तो बढ़ेगी उपज: कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर खेतों की मिट्टी की सेहत सुधारकर, उसका ट्रीटमेंट कर खेती की जाए तो लगभग 20-30% उपज बढ़ जाएगी. वहीं किसानों की खेती लागत भी कम हो जाएगी. क्योंकि अभी किसान बिना जाने उन सभी उर्वरकों और रसायन का प्रयोग करते हैं, जिसकी जरूरत भी उनके खेत की मिट्टी को नहीं होती.


जल्द मिनी सॉइल हेल्थ टेस्ट लैब शुरू होने की उम्मीद: राज्य में एक बार फिर पंचायत स्तर पर मिट्टी जांच अगले वित्तीय वर्ष में शुरू हो सकेगी. इसकी उम्मीद कृषि अधिकारी इसलिए जता रहे हैं क्योंकि एक ओर जहां कृषि विभाग ने रीजेंट के लिए राशि की मांग करते हुए प्रस्ताव विभाग को भेजा है, तो दूसरी ओर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सॉइल साइंस भोपाल ने डिजिटल इंडिया रूरल मिशन प्राइवेट लिमिटेड को मिट्टी जांच किट के लिए रीजेंट का लाइसेंस दे दिया है. इससे पहले पोर्टेबल सॉइल टेस्टिंग किट के 9492 रिफिल के लिए 27 करोड़ रुपये जारी किए गए थे, लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं हुआ क्योंकि रीजेंट बनाने वाली कंपनी का लाइसेंस ही रद्द हो गया था. उम्मीद की जा रही है कि नए वित्तीय वर्ष में पोर्टेबल मिट्टी जांच मशीन से पंचायत स्तर पर ही मिट्टी की सेहत की जांच हो सकेगी.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.