रांची: शहर के धुर्वा स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में कई ऐतिहासिक महत्व तो हैं ही कई पौराणिक कथाएं भी इससे जुड़ी हुई हैं. भगवान जगन्नाथ के चरणों में मौरी यानी की नवविवाहित दूल्हा का सेहरा समर्पित करने की पुरानी परंपरा है और इस क्षेत्र के अलावा सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी इस परंपरा को प्रत्येक वर्ष निभाते हैं.
झारखंड की राजधानी रांची की जगन्नाथपुर मंदिर का इतिहास काफी पुराना है. 1691 में बड़का गढ़ में नागवंशी राजा ठाकुर एनी नाथ शाहदेव ने रांची में धुर्वा के पास भगवान जगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया था और तब से लगातार यहां भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा-अर्चना होती है. पुरी के तर्ज पर ही यहां रथ यात्रा का भी आयोजन होता है. इसके अलावा इस मंदिर प्रांगण में और भी कई ऐसे पौराणिक कथाएं हैं जो निरंतर चली आ रही हैं.
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पूजा पाठ के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व
पूजा पाठ के साथ-साथ कई ऐतिहासिक महत्व भी इस मंदिर प्रांगण की है. अन्य क्षेत्रों से ये भिन्न है. पुरी के तर्ज पर इस मंदिर प्रांगण में पूजा अर्चना तो की जाती है, लेकिन ऐतिहासिक महत्व कुछ और ही है. वहीं ऐसी कई पौराणिक परंपराएं हैं, जो बिल्कुल ही अलग तरीके का है. धुर्वा स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में विराजमान प्रभु जगन्नाथ को इष्ट देवता मानने वाले इस पूरे क्षेत्र के लोगों के बीच कई परंपराएं और रीति-रिवाज भी है.
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मौरी दान का रिवाज
एक रिवाज है मौरी दान की. मौरी का मतलब सेहरा है. सेहरा शादी के वक्त दूल्हा सिर पर पहनते हैं और शादी के बाद इस मौरी को भगवान जगन्नाथ पूजा के दौरान समर्पित करने के लिए रखा जाता है. नवविवाहित जोड़ो की मौरी प्रत्येक वर्ष जगन्नाथ भगवान के चरणों में समर्पित किया जाता है. इसके लिए दूर-दराज से लोग धुर्वा स्थित जगन्नाथ मंदिर परिसर पहुंचते हैं. इस वर्ष मेला और विशेष पूजा-अर्चना ना होने के बावजूद भी ग्रामीण क्षेत्रों से मौरी दान करने के लिए लोग मौसी बाड़ी के अलावा प्रभु जगन्नाथ के मुख्य मंदिर पहुंच रहे हैं और पुजारियों से पूरे विधि-विधान कर मौरी दान कर रहे हैं.
कई महत्व और रहस्य छिपे है
यहां के जानकर मौरी बनाने वाले और मौरी रखने वाले कहते हैं कि वंश समृद्धि की कामना को लेकर लोग मौरी दान करते है और इस परंपरा को निभाते हैं. यह परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है. भगवान जगन्नाथ के चरणों में मौरी दान करने से मनोवांछित फल की कामना होती है. नवविवाहित जोड़े मौरी दान करने के दौरान यहां पहुंचते हैं और आशीर्वाद भी लेते हैं. इसके पीछे और भी कई महत्व और रहस्य छिपे हैं जो पुजारी बताते हैं.
बांस के पेड़ में बांधी जाती है मौरी
नवविवाहित जोड़े या उनके परिवार मौरी ऐसे ही लोगों को सौंपाते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि वह भगवान जगन्नाथ के चरणों में इस मौरी को समर्पित करेंगे. इसके एवज में उन्हें दक्षिणा के रूप में कुछ रुपए भी दिए जाते हैं. मान्यता ऐसी है कि इन मौरियों को बांस के पेड़-पौधे में बांधकर रखा जाता है और उसी जगह यह मौरियां समाप्त हो जाती है और इस प्रक्रिया में एक हफ्ते का वक्त लगता है. हालांकि फिलहाल भगवान जगन्नाथ के चरणों में मौरी समर्पित की जा रही है और इससे लोगों की आस्था जुड़ी हुई है.