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जनजातियों पर रिसर्च कैसे करेगा टीआरआई, नहीं हैं यहां शोध पदाधिकारी

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Published : Aug 24, 2022, 6:44 PM IST

Updated : Aug 24, 2022, 7:32 PM IST

झारखंड का एकमात्र ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट TRI Ranchi बदहाल स्थिति में हैं. टीआरआई रांची भले ही शोध संस्थान है लेकिन यहां शोध पदाधिकारी ही नहीं है. ऐसे में यहां शोधकार्य प्रभावित हो रहा है. इससे संस्थान के आदिवासियों के उत्थान का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है.

Tribal Research Institute of Jharkhand TRI Ranchi
Tribal Research Institute of Jharkhand TRI Ranchi

रांची: जनजातियों के उत्थान के लिए भले ही राज्य सरकार लंबी चौड़ी बात कर रही हो लेकिन, हकीकत यह है कि जनजातियों के ऊपर होनेवाला एकमात्र शोध संस्थान टीआरआई रांची (Tribal Research Institute of Jharkhand TRI Ranchi) बदहाल है. कहने को तो टीआरआई रांची शोध संस्थान है लेकिन, यहां एक भी शोध पदाधिकारी नहीं हैं. संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार की मानें तो संस्थान में कर्मचारियों-पदाधिकारियों के 54 सृजित पद हैं जिसमें महज 10 कार्यरत हैं. उसमें भी अधिकांश प्यून और चपरासी हैं. ऐसे में शोधकार्य प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार से इस संबंध में बातचीत हुई है, जिसके बाद ओडिशा और शिमला मॉडल पर टीआरआई को विकसित करने का प्लान बनाया गया है.

इसे भी पढ़ें: कैसे होगा आदिवासियों का उत्थान, शोध संस्थान में नहीं हैं रिसर्चर


कब और क्यों हुई टीआरआई की स्थापना: झारखंड में ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1953 में हुई थी. इसका उद्देश्य जनजातियों के सामाजिक, आर्थिक, साहित्य, कला और इतिहास पर रिसर्च कर देश दुनियां को अवगत कराना था. कैंपस में जनजातियों के ऊपर म्यूजियम भी बनाया गया, जिसके माध्यम से जनजातियों के सामाजिक जीवन से लोगों को परिचय कराया जाए. जनजातियों के इतिहास पर रिसर्च करनेवाले जानेमाने एंथ्रोपोलॉजिस्ट प्रोफेसर दिलीप कुमार मानते हैं कि जब शोधकर्ता ही नहीं होंगे तो देश दुनियां को जनजातियों के जीवन दर्शन के बारे में कैसे पता चलेगा. खास बात यह है कि राज्य सरकार ने टीआरआई का नाम बदलकर जानेमाने शिक्षाविद् पद्मश्री डाॅ रामदयाल मुंडा के नाम पर कर दिया.

देखें स्पेशल स्टोरी

संस्ठान में कर्मचारियों के आभाव का असर काम पर: डाॅ रामदयाल मुंडा ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पास लाइब्रेरी और म्यूजियम है लेकिन, संचालकों का घोर अभाव है. म्यूजियम में एकमात्र कर्मचारी कार्यरत है. इसी तरह की स्थिति लाइब्रेरी की भी है. भवन एवं अन्य सुविधाओं को रहते हुए भी संस्थान कर्मचारियों के अभाव में काम ठीक ढंग से नहीं कर पा रहा है. शोध कार्याे एवं सर्वे रिर्पोट पर अबतक संस्थान करोड़ों रूपये खर्च कर चुकी है.

आभाव में भी संस्थान ने किए हैं बेहतर कार्य: संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार मानते हैं कि मानव संसाधन कम रहते हुए भी संस्थान ने बेहतर कार्य किया है. रिसर्च और सर्वे रिपोर्ट में राजस्व ग्रामों का बेंच मार्क सर्वे, आदिम जनजातियों का सर्वेक्षण, खडिया जनजाति पर अध्ययन, बंधुआ मजदूरी पर अध्ययन, नक्सली संगठनों पर अध्ययन, अमर शहीदों पर अध्ययन, जनजातीय स्वास्थ्य संबंधी अध्ययन, आवासीय विद्यालयों का मूल्यांकन, गैर सरकारी संस्थानों का मूल्यांकन, बिरसा आवास योजना का मूल्यांकन, छात्राओं के बीच साइकिल वितरण के प्रभाव का अध्ययन, आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्रों का मूल्यांकन अध्ययन, जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा में बाधा पर अध्ययन, मानव विकास सूचकांक पर शोध, सरकारी सेवा में आरक्षण की उपयोगिता पर शोध, बिरहोरों पर शोध, आदिम जनजातियों के पलायन पर मनरेगा का प्रभाव संबंधी जैसे अध्ययन और शोध कार्य हो चुके हैं.

संस्थान के उद्देश्य को पूरा करने में बाधा बन रही है कम ह्यूमन रिसोर्स: पिछले दिनों आयोजित हुए जनजातीय महोत्सव में देश विदेश के जानेमाने स्कॉलर के जनजातीय इतिहास पर लेक्चर (Lecture on Tribal History) आयोजित कर टीआरआई ने अपनी छवि सुधारने की कोशिश की है. इसके बाबजूद ह्यूमन रिसोर्स के अभाव संस्थान को उद्देश्य को पूरा करने में बड़ी बाधा बन रही है.

रांची: जनजातियों के उत्थान के लिए भले ही राज्य सरकार लंबी चौड़ी बात कर रही हो लेकिन, हकीकत यह है कि जनजातियों के ऊपर होनेवाला एकमात्र शोध संस्थान टीआरआई रांची (Tribal Research Institute of Jharkhand TRI Ranchi) बदहाल है. कहने को तो टीआरआई रांची शोध संस्थान है लेकिन, यहां एक भी शोध पदाधिकारी नहीं हैं. संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार की मानें तो संस्थान में कर्मचारियों-पदाधिकारियों के 54 सृजित पद हैं जिसमें महज 10 कार्यरत हैं. उसमें भी अधिकांश प्यून और चपरासी हैं. ऐसे में शोधकार्य प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार से इस संबंध में बातचीत हुई है, जिसके बाद ओडिशा और शिमला मॉडल पर टीआरआई को विकसित करने का प्लान बनाया गया है.

इसे भी पढ़ें: कैसे होगा आदिवासियों का उत्थान, शोध संस्थान में नहीं हैं रिसर्चर


कब और क्यों हुई टीआरआई की स्थापना: झारखंड में ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1953 में हुई थी. इसका उद्देश्य जनजातियों के सामाजिक, आर्थिक, साहित्य, कला और इतिहास पर रिसर्च कर देश दुनियां को अवगत कराना था. कैंपस में जनजातियों के ऊपर म्यूजियम भी बनाया गया, जिसके माध्यम से जनजातियों के सामाजिक जीवन से लोगों को परिचय कराया जाए. जनजातियों के इतिहास पर रिसर्च करनेवाले जानेमाने एंथ्रोपोलॉजिस्ट प्रोफेसर दिलीप कुमार मानते हैं कि जब शोधकर्ता ही नहीं होंगे तो देश दुनियां को जनजातियों के जीवन दर्शन के बारे में कैसे पता चलेगा. खास बात यह है कि राज्य सरकार ने टीआरआई का नाम बदलकर जानेमाने शिक्षाविद् पद्मश्री डाॅ रामदयाल मुंडा के नाम पर कर दिया.

देखें स्पेशल स्टोरी

संस्ठान में कर्मचारियों के आभाव का असर काम पर: डाॅ रामदयाल मुंडा ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट के पास लाइब्रेरी और म्यूजियम है लेकिन, संचालकों का घोर अभाव है. म्यूजियम में एकमात्र कर्मचारी कार्यरत है. इसी तरह की स्थिति लाइब्रेरी की भी है. भवन एवं अन्य सुविधाओं को रहते हुए भी संस्थान कर्मचारियों के अभाव में काम ठीक ढंग से नहीं कर पा रहा है. शोध कार्याे एवं सर्वे रिर्पोट पर अबतक संस्थान करोड़ों रूपये खर्च कर चुकी है.

आभाव में भी संस्थान ने किए हैं बेहतर कार्य: संस्थान के निदेशक रणेंद्र कुमार मानते हैं कि मानव संसाधन कम रहते हुए भी संस्थान ने बेहतर कार्य किया है. रिसर्च और सर्वे रिपोर्ट में राजस्व ग्रामों का बेंच मार्क सर्वे, आदिम जनजातियों का सर्वेक्षण, खडिया जनजाति पर अध्ययन, बंधुआ मजदूरी पर अध्ययन, नक्सली संगठनों पर अध्ययन, अमर शहीदों पर अध्ययन, जनजातीय स्वास्थ्य संबंधी अध्ययन, आवासीय विद्यालयों का मूल्यांकन, गैर सरकारी संस्थानों का मूल्यांकन, बिरसा आवास योजना का मूल्यांकन, छात्राओं के बीच साइकिल वितरण के प्रभाव का अध्ययन, आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्रों का मूल्यांकन अध्ययन, जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा में बाधा पर अध्ययन, मानव विकास सूचकांक पर शोध, सरकारी सेवा में आरक्षण की उपयोगिता पर शोध, बिरहोरों पर शोध, आदिम जनजातियों के पलायन पर मनरेगा का प्रभाव संबंधी जैसे अध्ययन और शोध कार्य हो चुके हैं.

संस्थान के उद्देश्य को पूरा करने में बाधा बन रही है कम ह्यूमन रिसोर्स: पिछले दिनों आयोजित हुए जनजातीय महोत्सव में देश विदेश के जानेमाने स्कॉलर के जनजातीय इतिहास पर लेक्चर (Lecture on Tribal History) आयोजित कर टीआरआई ने अपनी छवि सुधारने की कोशिश की है. इसके बाबजूद ह्यूमन रिसोर्स के अभाव संस्थान को उद्देश्य को पूरा करने में बड़ी बाधा बन रही है.

Last Updated : Aug 24, 2022, 7:32 PM IST
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