रांची: मौसम गर्म है, हीटवेव चल रही है. इससे मौसम के साथ शारीरिक और मानसिक बदलाव भी आते हैं. कई बार दिन में भी थकान महसूस होने के साथ जीवन में ठहराव आने लगा है. काम में मन नहीं लगता, मन को लगता है कि जीवन में कुछ बेहतर नहीं हो रहा. अवसाद की यह अवस्था मौसम बदलने पर होती है.
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झारखंड की राजधानी रांची शुरू से ही मनोरोगियों के लिए मुफीद जगह मानी जाती थी. क्योंकि यह जगह ठंडा हुआ करता था और मन रोगियों के लिए ठंडा जगह सबसे बेहतर माना जाता है. लेकिन धीरे-धीरे हालात बदलते गए और झारखंड की भी परिस्थिति में बदलाव आया. राजधानी के चिकित्सक और मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि गर्मी में अमूमन मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ जाती है लेकिन इस वर्ष मनोरोगियों की संख्या में विशेष बढ़ोतरी देखने को मिल रही है.
मनोरोग चिकित्सक बताते हैं कि जिस तरह से रांची में दिन-प्रतिदिन गाड़ियों की संख्या, लोगों की जनसंख्या, जंगल और पहाड़ की कटौती हो रही है. इससे कहीं ना कहीं ग्लोबल वार्मिंग का असर बढ़ रहा है. जिससे लोगों के मस्तिष्क पर इसका असर पड़ता दिख रहा है. वरिष्ठ मनो चिकित्सक डॉ. अशोक प्रसाद बताते हैं कि आज कल दिन प्रतिदिन गर्मी बढ़ रही है और लोग हीटवेव के शिकार हो रहे हैं ऐसे में मानसिक रोगियों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है.
उन्होंने बताया कि बढ़ती गर्मी में शरीर से पसीना के माध्यम से डिहाइड्रेशन हो रहा है. डिहाइड्रेशन में सोडियम व पोटेशियम जैसे तत्व शरीर से अधिक मात्रा में निकल रहे हैं. जिस वजह से लोगों में चिड़चिड़ापन, छोटी-छोटी बातों में गुस्सा आना, महत्वपूर्ण बात भूल जाना जैसी समस्याएं देखने को मिल रही है. उन्होंने बताया कि कुछ वर्ष पहले तक प्रतिदिन 100 मरीज गर्मी के मौसम में आते थे लेकिन इस वर्ष मरीजों की संख्या 125 के करीब है. राजधानी के कई मनो चिकित्सकों ने बताया कि झारखंड में मनोरोगियों की संख्या बढ़ने का एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग है.
वहीं इलाज कराने आए मरीजों ने भी बताया कि जिस प्रकार से झारखंड में दिन-प्रतिदिन ग्लोबल वार्मिंग की वजह से गर्मी बढ़ रही है. वैसे में आम लोगों के घरों में मानसिक बीमारियों वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है. गोड्डा से आए अपने मरीज का इलाज कराने पहुंचे एक परिजन ने बताया कि मई महीने में बढ़ती गर्मी के बाद उनके मरीज कई महत्वपूर्ण बातों को भूलने लगे और छोटी-छोटी बातों पर चिल्लाने और गुस्साने जैसी हरकत करने लगे हैं. जिसके बाद डॉक्टरों ने कहा कि उनके ऊपर बढ़ती गर्मी का असर देखने को मिल रहा है.
सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर क्या है? मौसम गर्म है, हीटवेव चल रही है. इससे मौसम के साथ शारीरिक और मानसिक बदलाव भी आते हैं. कई बार दिन में भी थकान महसूस होने के साथ जीवन में ठहराव आने लगा है. काम में मन नहीं लगता, मन को लगता है कि जीवन में कुछ बेहतर नहीं हो रहा. अवसाद की यह अवस्था मौसम बदलने पर होती है. मेडिकल साइंस की भाषा में इसे एसडी यानि सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder) कहा जाता है. इसमें व्यक्ति को छोटी सी समस्या बड़ी दिखने लगती है, जो लोग सर्दी के मौसम में डिप्रेशन में रहते हैं, वो गर्मी के मौसम में ज्यादा परेशान हो जाते हैं, उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता है. इसमें सभी मरीज एक ही बीमारी यानी सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं.
क्या हैं लक्षणः मन में हर वक्त उदासी, शरीर थका-थका सा रहता है, नींद ना आना, कमजोरी महसूस होना, हमेशा अकेलापन महसूस होना, किसी भी काम में मन ना लगना, दिल में बेचैनी और भूख ना लगना जैसे लक्षण एसएडी सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर के लक्षण हैं. सर्दियों के बाद जब गर्मियां शुरू होती हैं तो बाई पोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) भी शुरू हो जाता है, जो गर्मी बढ़ने पर दिखाई देता है. इसी वजह से व्यक्ति को जिंदगी बोझिल सी लगने लगती है. हमेशा थकान, आलसपन रहता है.
ये हैं उपायः मौसम में बदलाव आने पर दैनिक जीवन में भी अपना रूटीन बनाएं. नियमित रूप से योग, ध्यान और व्यायाम को अपने जीवन में शामिल करें. इसके साथ ही अपना खान-पान संतुलित रखें. खाने में हरी सब्जियां, दूध और फलों का ज्यादा सेवन करना चाहिए. इसके अलावा रात में भारी खाना खाने से परहेज करें. इसके अलावा अपने मन मस्तिस्क को स्थिर रखें, अपने आप को हमेशा खुश रखने का प्रयास करें, अकेलेपन से बचने का प्रयास करें. जैसे हो वैसे में ही खुश रहें. इससे घबराने की जरूरत नहीं है, यह एक मौसमी समस्या है जिसे व्यायाम और संतुलित भोजन से दूर किया जा सकता है.