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बिहार में कास्ट सर्वे रिपोर्ट जारी, नफा-नुकसान पर छिड़ी बहस, क्या झारखंड की राजनीति पर भी पड़ेगा असर, क्या कहते हैं जानकार और संगठन, पढ़ें रिपोर्ट - ईटीवी भारत न्यूज

बिहार का कास्ट सर्वे झारखंड की राजनीति पर किस तरह का असर डाल सकता है. क्या यहां भी कास्ट सर्वे कराने का सरकार पर दबाव बढ़ेगा. किस पार्टी को बढ़त मिल सकती है. इसको राजनीति के जानकार और ओबीसी के हक की बात करने वाले किस रूप में देखते हैं. जानिए, ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट में. Impact Of Bihar Cast Survey In Jharkhand.

Know What will be impact of Bihar caste survey report on politics of Jharkhand
बिहार की जातीय गणना रिपोर्ट का झारखंड की राजनीति में असर
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 3, 2023, 6:24 PM IST

रांचीः बिहार सरकार ने महात्मा गांधी की जयंती के दिन कास्ट सर्वे रिपोर्ट जारी कर दिया. अब इसपर बहस भी छिड़ गई है. इसकी तपिश झारखंड तक पहुंच चुकी है. झारखंड बनने के बाद से ही आबादी के हिसाब से पिछड़ों को कम आरक्षण का मामला उठता रहा है. लिहाजा, झारखंड में कास्ट सर्वे की जरूरत को आजसू, राजद और कांग्रेस जोरशोर से उठाती रही है. वहीं भाजपा और सत्ता का नेतृत्व कर रही झामुमो इसकी पैरवी तो करती है लेकिन उत्साह नहीं दिखाती. वैसे रिपोर्ट जारी होते हीयह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट में 6 अक्टूबर को सुनवाई होनी है.

इसे भी पढ़ें- Bihar caste census: बिहार सरकार ने जारी की जातीय गणना रिपोर्ट, जानिए किसकी कितनी आबादी

अब सवाल है कि बिहार का कास्ट सर्वे झारखंड की राजनीति पर किस तरह का असर डाल सकता है. क्या यहां भी कास्ट सर्वे कराने का सरकार पर दबाव बढ़ेगा. किस पार्टी को इसका माइलेज मिल सकता है. जब जाति आधारित ही राजनीति होनी है तो फिर जाति-पात से बाहर निकलने की बात क्यों की जाती है. इसको राजनीति के जानकार और ओबीसी के हक की बात करने वाले किस रूप में देखते हैं.

राजनीति में बार्गेनिंग का दौर होगा शुरूः वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक कास्ट सर्वे से जातीय गोलबंदी बढ़ेगी. जाति आधारित छोटी-छोटी पार्टियां पनपेंगी जो बार्गेनिंग करेंगी. उन्होंने यूपी में ओपी राजभर के स्टैंड का हवाला दिया. जातीय गोलबंदी हमेशा से रही है. लेकिन लालकृष्ण आडवाणी ने केंद्र में वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस लेकर गिरा दिया था. उसी समय मंडल-कमंडल खूब सुर्खियों में आया था. दरअसल, पार्टियां जाति आधारित वोटर को लुभाती रहती हैं. लेकिन ऐसा नहीं कि वोटर सिर्फ जाति के नाम पर ही वोट देता है. क्योंकि पार्टियां अपने आधार पर गणना कर उम्मीदवार देती हैं. उन्होंने कहा कि इस सर्वे से कोई बड़ा उलट पुलट हो जाएगा, ऐसा नहीं लगता.

झामुमो को फायदा होगा या नुकसान? वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने कहा कि झारखंड में आदिवासी बहुलता है. उनके साथ कुर्मी भी पुरातन कारणों से जुड़े हुए हैं. लिहाजा, ट्राइबल की राजनीति करने वाली झामुमो को फायदा होगा. क्योंकि कुर्मी को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर आए दिन आंदोलन किए जा रहे हैं. इससे ट्राइबल की हकमारी होगी. इसकी वजह से ट्राइबल की गोलबंदी बढ़ेगी. शिबू सोरेन की इस समाज पर पकड़ है. लिहाजा, अपनी हकमारी की संभावना रोकने के लिए ट्राइबल झामुमो के लिए इंटैक्ट होंगे. इसका झारखंड में भाजपा के वोटबैंक पर असर पड़ेगा. क्योंकि भाजपा हिंदू बनाम अल्पसंख्यक की राजनीति को आगे बढ़ा रही है.

भाजपा की ओबीसी पर कैसी है पकड़ः सारा खेल कुर्सी का है, जानकार तो यही कहते हैं. बिहार में हुए कास्ट सर्वे के मुताबिक 14.26 प्रतिशत आबादी के साथ यादव जाति टॉप पर है. दूसरे नंबर एससी कोटे की दुसाध जाति की आबादी 5.31 और रविदास की आबादी 5.2 प्रतिशत है. वहीं धर्म के आधार पर मुस्लिमों का प्रतिशत 17.70 है. यही वो फॉर्मूला है जिसे लालू यादव सबसे पहले समझे थे और माई समीकरण के साथ सत्ता में बने रहे. लेकिन वक्त के साथ ओबीसी वोट बैंक को भाजपा ने अपनी ओर कर लिया. 2019 के चुनाव के वक्त सीएसडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में भाजपा को ओबीसी का 26 प्रतिशत वोट मिला था जबकि राजद को 11 प्रतिशत और जदयू को 25 प्रतिशत. उत्तर प्रदेश में 61 प्रतिशत ओबीसी वोटर भाजपा के साथ थे. वहां सपा को 14 और बसपा को 15 प्रतिशत ओबीसी वोट मिला था. पश्चिम बंगाल में भाजपा को रिकॉर्ड 68 प्रतिशत ओबीसी वोट हासिल हुआ था. वहीं तेलंगाना में 23, कर्नाटक में 50 और ओड़िशा में 40 प्रतिशत ओबीसी वोट पर भाजपा ने कब्जा जमाया था.

कास्ट सर्वे से जरुरतमंदों को मिलेगा अधिकारः मूलवासी मोर्चा के राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि कास्ट सर्वे को सामाजिक न्याय के रूप में देखना चाहिए. फॉरवर्ड को भी गरीबी के आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण मिला, उसका किसी ने विरोध नहीं किया. कोर्ट कहती है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता लेकिन ईडब्यूएस मामले में तो प्रतिशत बढ़ गया. डाटा आने से सरकार को पॉलिसी बनाने में मदद मिलेगी. यह कहना गलत है कि कास्ट सर्वे होने से समाज में भेदभाव बढ़ेगा. ओबीसी में भी जातियां दावा करती हैं कि हमारी आबादी ज्यादा है. हमारे गांव में एक राजपूत और दो ब्राह्मण परिवार हैं. दोनों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. इसलिए कास्ट सर्वे से आर्थिक स्थिति का भी आकलन हो जाएगा. इसका फायदा हर जरूरतमंद को मिलेगा.

जाति प्रथा को हिन्दुस्तान से अलग नहीं किया जा सकता. पीएम के जातिवाद के खिलाफ बयान पर उन्होंने कहा कि वह खुद ओबीसी समाज से आते हैं. उनको जातीय जनगणना कराना चाहिए. मेरा मानना है कि जिसका जो अधिकार है वो मिलना चाहिए. वर्तमान सरकार भगवान भरोसे चल ही है. तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है कि आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जा सकता है. वहां ओबीसी को 50 प्रतिशत आरक्षण मिलता है. तत्कालीन रघुवर सरकार की पहल पर कार्मिक विभाग ने सर्वेक्षण की बात कही थी. लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी.

आर्थिक रूप से सशक्त ओबीसी का खत्म हो आरक्षणः झारखंड ओबीसी आरक्षण मंच के अध्यक्ष कैलाश यादव मानना है कि सामाजिक समानता के लिए यह जानना जरूरी है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से किस जाति की क्या स्थिति है. आज भी आर्थिक रूप से हर वर्ग में लोग पीछे हैं. बजट का जो फंड होता है वो पूंजीपति और बिचौलियों में खत्म हो जाता है. इसलिए कास्ट सर्वे जरूरी है. हमारे आकलन के अनुसार झारखंड में 62 प्रतिशत आबादी ओबीसी की है. झारखंड सरकार और बिहार सरकार की कार्यशैली में बहुत अंतर है. जब हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी तो पहली शर्त यही थी कि ओबीसी को संवैधानिक अधिकार मिलेगा. लेकिन बाबूलाल मरांडी ने अपने कार्यकाल में ओबीसी और एससी का कोटा काट दिया और उसे एसटी को दे दिया. इसमें हमारा क्या कसूर था, हमारे साथ अन्याय हुआ. इसकी भरपाई कब होगी. हेमंत सोरेन सरकार भी थोथी दलील दे रही है. ओबीसी आरक्षण बढ़ाने के प्रस्ताव को विधानसभा से पास कर केंद्र को भेजने के बजाए कैबिनेट से पास कराना चाहिए था. अगर हेमंत सरकार ने इस दिशा में गंभीरता से पहल नहीं किया तो सड़क पर आंदोलन होगा. उन्होंने खुलकर कहा कि अगर कोई ओबीसी जाति आर्थिक रूप से सशक्त दिखती है जो उसकी आरक्षण की कैटेगरी को बदलना चाहिए.

रांचीः बिहार सरकार ने महात्मा गांधी की जयंती के दिन कास्ट सर्वे रिपोर्ट जारी कर दिया. अब इसपर बहस भी छिड़ गई है. इसकी तपिश झारखंड तक पहुंच चुकी है. झारखंड बनने के बाद से ही आबादी के हिसाब से पिछड़ों को कम आरक्षण का मामला उठता रहा है. लिहाजा, झारखंड में कास्ट सर्वे की जरूरत को आजसू, राजद और कांग्रेस जोरशोर से उठाती रही है. वहीं भाजपा और सत्ता का नेतृत्व कर रही झामुमो इसकी पैरवी तो करती है लेकिन उत्साह नहीं दिखाती. वैसे रिपोर्ट जारी होते हीयह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट में 6 अक्टूबर को सुनवाई होनी है.

इसे भी पढ़ें- Bihar caste census: बिहार सरकार ने जारी की जातीय गणना रिपोर्ट, जानिए किसकी कितनी आबादी

अब सवाल है कि बिहार का कास्ट सर्वे झारखंड की राजनीति पर किस तरह का असर डाल सकता है. क्या यहां भी कास्ट सर्वे कराने का सरकार पर दबाव बढ़ेगा. किस पार्टी को इसका माइलेज मिल सकता है. जब जाति आधारित ही राजनीति होनी है तो फिर जाति-पात से बाहर निकलने की बात क्यों की जाती है. इसको राजनीति के जानकार और ओबीसी के हक की बात करने वाले किस रूप में देखते हैं.

राजनीति में बार्गेनिंग का दौर होगा शुरूः वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक कास्ट सर्वे से जातीय गोलबंदी बढ़ेगी. जाति आधारित छोटी-छोटी पार्टियां पनपेंगी जो बार्गेनिंग करेंगी. उन्होंने यूपी में ओपी राजभर के स्टैंड का हवाला दिया. जातीय गोलबंदी हमेशा से रही है. लेकिन लालकृष्ण आडवाणी ने केंद्र में वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस लेकर गिरा दिया था. उसी समय मंडल-कमंडल खूब सुर्खियों में आया था. दरअसल, पार्टियां जाति आधारित वोटर को लुभाती रहती हैं. लेकिन ऐसा नहीं कि वोटर सिर्फ जाति के नाम पर ही वोट देता है. क्योंकि पार्टियां अपने आधार पर गणना कर उम्मीदवार देती हैं. उन्होंने कहा कि इस सर्वे से कोई बड़ा उलट पुलट हो जाएगा, ऐसा नहीं लगता.

झामुमो को फायदा होगा या नुकसान? वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने कहा कि झारखंड में आदिवासी बहुलता है. उनके साथ कुर्मी भी पुरातन कारणों से जुड़े हुए हैं. लिहाजा, ट्राइबल की राजनीति करने वाली झामुमो को फायदा होगा. क्योंकि कुर्मी को एसटी का दर्जा देने की मांग को लेकर आए दिन आंदोलन किए जा रहे हैं. इससे ट्राइबल की हकमारी होगी. इसकी वजह से ट्राइबल की गोलबंदी बढ़ेगी. शिबू सोरेन की इस समाज पर पकड़ है. लिहाजा, अपनी हकमारी की संभावना रोकने के लिए ट्राइबल झामुमो के लिए इंटैक्ट होंगे. इसका झारखंड में भाजपा के वोटबैंक पर असर पड़ेगा. क्योंकि भाजपा हिंदू बनाम अल्पसंख्यक की राजनीति को आगे बढ़ा रही है.

भाजपा की ओबीसी पर कैसी है पकड़ः सारा खेल कुर्सी का है, जानकार तो यही कहते हैं. बिहार में हुए कास्ट सर्वे के मुताबिक 14.26 प्रतिशत आबादी के साथ यादव जाति टॉप पर है. दूसरे नंबर एससी कोटे की दुसाध जाति की आबादी 5.31 और रविदास की आबादी 5.2 प्रतिशत है. वहीं धर्म के आधार पर मुस्लिमों का प्रतिशत 17.70 है. यही वो फॉर्मूला है जिसे लालू यादव सबसे पहले समझे थे और माई समीकरण के साथ सत्ता में बने रहे. लेकिन वक्त के साथ ओबीसी वोट बैंक को भाजपा ने अपनी ओर कर लिया. 2019 के चुनाव के वक्त सीएसडीएस की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में भाजपा को ओबीसी का 26 प्रतिशत वोट मिला था जबकि राजद को 11 प्रतिशत और जदयू को 25 प्रतिशत. उत्तर प्रदेश में 61 प्रतिशत ओबीसी वोटर भाजपा के साथ थे. वहां सपा को 14 और बसपा को 15 प्रतिशत ओबीसी वोट मिला था. पश्चिम बंगाल में भाजपा को रिकॉर्ड 68 प्रतिशत ओबीसी वोट हासिल हुआ था. वहीं तेलंगाना में 23, कर्नाटक में 50 और ओड़िशा में 40 प्रतिशत ओबीसी वोट पर भाजपा ने कब्जा जमाया था.

कास्ट सर्वे से जरुरतमंदों को मिलेगा अधिकारः मूलवासी मोर्चा के राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि कास्ट सर्वे को सामाजिक न्याय के रूप में देखना चाहिए. फॉरवर्ड को भी गरीबी के आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण मिला, उसका किसी ने विरोध नहीं किया. कोर्ट कहती है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता लेकिन ईडब्यूएस मामले में तो प्रतिशत बढ़ गया. डाटा आने से सरकार को पॉलिसी बनाने में मदद मिलेगी. यह कहना गलत है कि कास्ट सर्वे होने से समाज में भेदभाव बढ़ेगा. ओबीसी में भी जातियां दावा करती हैं कि हमारी आबादी ज्यादा है. हमारे गांव में एक राजपूत और दो ब्राह्मण परिवार हैं. दोनों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है. इसलिए कास्ट सर्वे से आर्थिक स्थिति का भी आकलन हो जाएगा. इसका फायदा हर जरूरतमंद को मिलेगा.

जाति प्रथा को हिन्दुस्तान से अलग नहीं किया जा सकता. पीएम के जातिवाद के खिलाफ बयान पर उन्होंने कहा कि वह खुद ओबीसी समाज से आते हैं. उनको जातीय जनगणना कराना चाहिए. मेरा मानना है कि जिसका जो अधिकार है वो मिलना चाहिए. वर्तमान सरकार भगवान भरोसे चल ही है. तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है कि आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जा सकता है. वहां ओबीसी को 50 प्रतिशत आरक्षण मिलता है. तत्कालीन रघुवर सरकार की पहल पर कार्मिक विभाग ने सर्वेक्षण की बात कही थी. लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी.

आर्थिक रूप से सशक्त ओबीसी का खत्म हो आरक्षणः झारखंड ओबीसी आरक्षण मंच के अध्यक्ष कैलाश यादव मानना है कि सामाजिक समानता के लिए यह जानना जरूरी है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से किस जाति की क्या स्थिति है. आज भी आर्थिक रूप से हर वर्ग में लोग पीछे हैं. बजट का जो फंड होता है वो पूंजीपति और बिचौलियों में खत्म हो जाता है. इसलिए कास्ट सर्वे जरूरी है. हमारे आकलन के अनुसार झारखंड में 62 प्रतिशत आबादी ओबीसी की है. झारखंड सरकार और बिहार सरकार की कार्यशैली में बहुत अंतर है. जब हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी तो पहली शर्त यही थी कि ओबीसी को संवैधानिक अधिकार मिलेगा. लेकिन बाबूलाल मरांडी ने अपने कार्यकाल में ओबीसी और एससी का कोटा काट दिया और उसे एसटी को दे दिया. इसमें हमारा क्या कसूर था, हमारे साथ अन्याय हुआ. इसकी भरपाई कब होगी. हेमंत सोरेन सरकार भी थोथी दलील दे रही है. ओबीसी आरक्षण बढ़ाने के प्रस्ताव को विधानसभा से पास कर केंद्र को भेजने के बजाए कैबिनेट से पास कराना चाहिए था. अगर हेमंत सरकार ने इस दिशा में गंभीरता से पहल नहीं किया तो सड़क पर आंदोलन होगा. उन्होंने खुलकर कहा कि अगर कोई ओबीसी जाति आर्थिक रूप से सशक्त दिखती है जो उसकी आरक्षण की कैटेगरी को बदलना चाहिए.

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