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घर में शादी हुई हो फिर भी करें तर्पण, पूर्वजों को मिलती है मुक्ति, पढ़ें पूरी रिपोर्ट - रांची न्यूज

पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जाता है. इसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं. आमलोगों को इसकी महत्ता के बारे में बहुत कम ही पता होता है. पितरों की मुक्ति के लिए तर्पण बेहद ही जरूर है. tarpan during Pitru Paksha

tarpan during Pitru Paksha
पितृ पक्ष के दौरान तर्पण
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 1, 2023, 10:48 AM IST

रांचीः पितृ पक्ष चल रहा है. इसे लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठते हैं. जिसका उत्तर देना कठिन है. ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हम बताने जा रहे हैं, जिससे आपके मन से भ्रम की सारी स्थिति दूर जाएगी, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

दरअसल पितृ पक्ष के दौरान यह सवाल प्रायः सबके मन में उठता है कि रोजाना करने वाली पूजा की जाए या नही. एक और सवाल उठता है कि घर में शादी हुई हो या फिर नांदी श्राद्ध हुआ हो तो क्या श्राद्ध तर्पण किया जाए या नहीं. इसके अलावा एक सवाल और आता है कि तर्पण की शुरुआत किस दिन से की जाए, किसी जाति विशेष के लिए लौकिक रीति है क्या.

इन सारे सवालों का जवाब उत्तर प्रदेश के बिलवाई शिवधाम के पंडित ब्रह्मदत्त चतुर्वेदी ने काफी विस्तार दिया है. उन्होंने बताया कि जैसे हम देव पूजा रोज करते हैं, उसी प्रकार से करते रहना चाहिए. कोई भी अशुद्धता घर की, शरीर की या परिवार की, श्राद्ध करने से नहीं होती है. वही देवता जो आपके इष्ट हैं, पितृ रूप में आपकी पूजा स्वीकार करते हैं. या फिर ऐसा समझें कि पितर ही देव रूप में आकर इस विशेष अवसर पर आपकी पूजा स्वीकार करते हैं .

दूसरे सवाल का जवाब है कि नांदी श्राद्ध हुआ है तो भी, नहीं हुआ है तो भी, प्रतिदिन तर्पण श्राद्ध करना चाहिए. यदि नांदी श्राद्ध हुआ है तो 21 दिन के अंदर आप कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं. घर में कोई अशौच हुआ तो भी उस अशौच का दुष्परिणाम नांदी श्राद्ध के नाते नहीं होगा.

प्रतिदिन तर्पण श्राद्ध प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए. श्राद्ध पक्ष में पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक श्राद्ध तर्पण विशेष है. इस दिन अमुक करेगा इस दिन अमुक करेगा ऐसा केवल लोकमत है,

कूर्म पुराण के अनुसार जो प्राणी विधिपूर्वक शांत मन होकर श्राद्ध करता है, वह सभी पापों से रहित होकर मुक्ति को प्राप्त होता है तथा फिर संसार चक्र में नहीं आना होता. अतः प्राणी को अपने पितरों की संतुष्टि तथा अपने कल्याण के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए. इस संसार में श्राद्ध करने वालों के लिए श्राद्ध से श्रेष्ठ और कोई कल्याण कारक उपाय नहीं है. अतः बुद्धिमान पुरुष को यत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए.

इतना ही नहीं श्राद्ध अपने कर्ता की आयु बढ़ा देता है, पुत्र प्रदान कर कुल परंपरा को अक्षर रखता है, धन-धान्य का अंबार लगा देता है, शरीर में बल और शक्ति का संचार करता है, पुष्टि प्रदान करता है और यश का विस्तार करते हुए सभी प्रकार के सुख प्रदान करता है. इस प्रकार से श्राद्ध सांसारिक जीवन को तो सुखमय बनाता ही है, परलोक को भी सुधरता है और अंत में मुक्ति प्रदान करता है. श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, राज्य, सुख, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं.

महर्षि अत्रि का कथन है कि जो पुत्र, भाई, पौत्र अथवा दौहित्र आदि पितृ कार्य में संलग्न रहते हैं और निश्चय ही परम गति को प्राप्त होते हैं. ऋषियों ने यहां तक कह दिया जो श्राद्ध करता है, उसके विधि विधान को जानता है, जो श्राद्ध करने की सलाह तक देता है और जो श्राद्ध का अनुमोदन करता है इन सबको श्राद्ध करने का पूर्ण फल मिलता है .

श्राद्ध नहीं करने से हानिः अपने शास्त्रो में श्राद्ध न करने से होने वाली जो हानि बताई गई है, उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं . इसलिए श्राद्ध तत्व से परिचित होना उसके अनुष्ठान के लिए तत्पर रहना अत्यंत आवश्यक है.

यह सर्व विदित है कि मृत व्यक्ति इस महायात्रा में अपना स्थूल शरीर भी नहीं ले जा सकता, तब रास्ते के लिए अन्न जल कैसे ले जा सकता है, उस समय उसके सगे संबंधी श्राद्ध विधि से उसे जो कुछ देते हैं वही उसे मिलता है. शास्त्रों में मरणोपरांत पिंडदान की व्यवस्था की गई है. सर्वप्रथम शवयात्रा के अंतर्गत 6 पिंड दिए जाते हैं, जिनसे भूमि के अधिष्ठात्रदेवता की प्रसन्नता, तथा भूत पिशाचों द्वारा होने वाली बाधाओं का निराकरण आदि प्रयोजन सिद्ध होते हैं.

इसके साथ ही दशगात्र में दिए जाने वाले 10 पिंडों के द्वारा जीव को आतिवाहिक सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति होती है, यह मृत व्यक्ति की महायात्रा के प्रारंभ की बात हुई. अब आगे उसे रास्ते के भोजन अन्न जल आदि की आवश्यकता पड़ती है. जो उत्तम षोडशी से दिए जाने वाले पिंडदान से उसे प्राप्त होता है, यदि सगे संबंधी पुत्र, पौत्र आदि ना दे तो भूख, प्यास से उसे वहां बहुत दुख होता है.

यह तो हुई श्राद्ध न करने से मृत प्राणी के कष्टों की कथा. श्राद्ध न करने वालों को भी पग पग पर कष्ट का सामना करना पड़ता है, मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे, संबंधियों का रक्त चूसने लगते हैं. साथ-साथ शाप भी देते हैं,

ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट ही कष्ट झेलना पड़ता है, उस परिवार में पुत्र नहीं उत्पन्न होता, कोई निरोग नहीं रहता, लंबी आयु नहीं होती, किसी तरह का कल्याण नहीं प्राप्त होता और न करने के बाद नर्क भी जाना पड़ता है. उपनिषद का वाक्य है कि देवता और पितरों के कार्यों में मनुष्य को कभी भी प्रमाद नहीं करना चाहिए. प्रमाद से प्रत्यवाय होता है.

बहुत लोगों को जिज्ञासा होती है कि पितरों को श्राद्ध की प्राप्ति कैसे होती है, जिज्ञासा स्वाभाविक है. श्राद्ध में दिए गए अन्न आदि सामग्रियां पितरों को कैसे मिलती है, क्योंकि विभिन्न कर्मों के अनुसार मृत्यु के बाद जीव को भिन्न-भिन्न गति प्राप्त होती है. कोई देवता बनता है, कोई पितृ बनता है, कोई मनुष्य बनता है, कोई प्रेत बनता है, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई चिनार का वृक्ष, कोई घास फूस, कोई तमाम सारे पक्षी, आदि श्राद्ध में दिए गए छोटे से पिंड से हाथी का पेट कैसे भर सकता है. इसी प्रकार चींटी इतने बड़े पिंड को कैसे खा सकती है. देवता अमृत से तृप्त होते हैं, पिंड से उन्हें कैसे तृप्ति मिलेगी.

इन प्रश्नों का शास्त्र में सुस्पष्ट उत्तर दिया गया है. नाम, गोत्र के सहारे विश्व देव एवं अग्निश्वात आदि दिव्य पितर हब्य कव्य को पितरों को प्राप्त करा देते हैं. यदि पिता देव योनि को प्राप्त हो गया हो तो दिया गया अन्य उसे वहां अमृत होकर प्राप्त हो जाता है. मनुष्य योनि में अन्न रूप में. पशु योनि में घास रूप में, नाग योनि में वायु रूप में. यक्षयोनि में पान रूप में. अन्य योनियों में भी उस श्राद्ध वस्तु को भोगजनक तृप्ति कर पदार्थों के रूप में प्राप्त होकर अवश्य तृप्त करती है

जिस प्रकार गौशाला में भूली गाय माता का बछड़ा किसी न किसी प्रकार अपनी मां को ढूंढ ही लेता है, उसी प्रकार मंत्र तत्तद वस्तु जात को प्राणी के पास किसी ने किसी प्रकार पहुंचा ही देता है. नाम, गोत्र, हृदय की श्रद्धा एवं उचित संकल्प पूर्वक दिए हुए पदार्थ को भक्ति पूर्वक उच्चारित मंत्र उनके पास पहुंचा देता है. जीव चाहे सैकड़ो योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है.

ब्राह्मण भोजन से भी श्राद्ध की पूर्तिः सामान्यतः श्राद्ध की प्रक्रिया पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोजन, और दान है. मृत्यु के बाद जो लोग देवलोक या पितृ लोक में पहुंचते हैं, वह मंत्रों के द्वारा बुलाए जाने पर उन लोकों से उसी क्षण श्राद्ध स्थान में आ जाते हैं और निमंत्रित ब्राह्मणों के माध्यम से भोजन कर लेते हैं, सूक्ष्म ग्राही होने के कारण ब्राह्मणों के शरीर में प्रवेश कर लेते हैं, भोजन के सूक्ष्म कणों से, उसकी सुगंध से उनका भोजन हो जाता है, वह तृप्त हो जाते हैं, वेद में बताया गया है. अथर्ववेद का कथन है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह पितरों को प्राप्त होता है,

रांचीः पितृ पक्ष चल रहा है. इसे लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठते हैं. जिसका उत्तर देना कठिन है. ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हम बताने जा रहे हैं, जिससे आपके मन से भ्रम की सारी स्थिति दूर जाएगी, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

दरअसल पितृ पक्ष के दौरान यह सवाल प्रायः सबके मन में उठता है कि रोजाना करने वाली पूजा की जाए या नही. एक और सवाल उठता है कि घर में शादी हुई हो या फिर नांदी श्राद्ध हुआ हो तो क्या श्राद्ध तर्पण किया जाए या नहीं. इसके अलावा एक सवाल और आता है कि तर्पण की शुरुआत किस दिन से की जाए, किसी जाति विशेष के लिए लौकिक रीति है क्या.

इन सारे सवालों का जवाब उत्तर प्रदेश के बिलवाई शिवधाम के पंडित ब्रह्मदत्त चतुर्वेदी ने काफी विस्तार दिया है. उन्होंने बताया कि जैसे हम देव पूजा रोज करते हैं, उसी प्रकार से करते रहना चाहिए. कोई भी अशुद्धता घर की, शरीर की या परिवार की, श्राद्ध करने से नहीं होती है. वही देवता जो आपके इष्ट हैं, पितृ रूप में आपकी पूजा स्वीकार करते हैं. या फिर ऐसा समझें कि पितर ही देव रूप में आकर इस विशेष अवसर पर आपकी पूजा स्वीकार करते हैं .

दूसरे सवाल का जवाब है कि नांदी श्राद्ध हुआ है तो भी, नहीं हुआ है तो भी, प्रतिदिन तर्पण श्राद्ध करना चाहिए. यदि नांदी श्राद्ध हुआ है तो 21 दिन के अंदर आप कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं. घर में कोई अशौच हुआ तो भी उस अशौच का दुष्परिणाम नांदी श्राद्ध के नाते नहीं होगा.

प्रतिदिन तर्पण श्राद्ध प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए. श्राद्ध पक्ष में पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक श्राद्ध तर्पण विशेष है. इस दिन अमुक करेगा इस दिन अमुक करेगा ऐसा केवल लोकमत है,

कूर्म पुराण के अनुसार जो प्राणी विधिपूर्वक शांत मन होकर श्राद्ध करता है, वह सभी पापों से रहित होकर मुक्ति को प्राप्त होता है तथा फिर संसार चक्र में नहीं आना होता. अतः प्राणी को अपने पितरों की संतुष्टि तथा अपने कल्याण के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए. इस संसार में श्राद्ध करने वालों के लिए श्राद्ध से श्रेष्ठ और कोई कल्याण कारक उपाय नहीं है. अतः बुद्धिमान पुरुष को यत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए.

इतना ही नहीं श्राद्ध अपने कर्ता की आयु बढ़ा देता है, पुत्र प्रदान कर कुल परंपरा को अक्षर रखता है, धन-धान्य का अंबार लगा देता है, शरीर में बल और शक्ति का संचार करता है, पुष्टि प्रदान करता है और यश का विस्तार करते हुए सभी प्रकार के सुख प्रदान करता है. इस प्रकार से श्राद्ध सांसारिक जीवन को तो सुखमय बनाता ही है, परलोक को भी सुधरता है और अंत में मुक्ति प्रदान करता है. श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, राज्य, सुख, स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं.

महर्षि अत्रि का कथन है कि जो पुत्र, भाई, पौत्र अथवा दौहित्र आदि पितृ कार्य में संलग्न रहते हैं और निश्चय ही परम गति को प्राप्त होते हैं. ऋषियों ने यहां तक कह दिया जो श्राद्ध करता है, उसके विधि विधान को जानता है, जो श्राद्ध करने की सलाह तक देता है और जो श्राद्ध का अनुमोदन करता है इन सबको श्राद्ध करने का पूर्ण फल मिलता है .

श्राद्ध नहीं करने से हानिः अपने शास्त्रो में श्राद्ध न करने से होने वाली जो हानि बताई गई है, उसे जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं . इसलिए श्राद्ध तत्व से परिचित होना उसके अनुष्ठान के लिए तत्पर रहना अत्यंत आवश्यक है.

यह सर्व विदित है कि मृत व्यक्ति इस महायात्रा में अपना स्थूल शरीर भी नहीं ले जा सकता, तब रास्ते के लिए अन्न जल कैसे ले जा सकता है, उस समय उसके सगे संबंधी श्राद्ध विधि से उसे जो कुछ देते हैं वही उसे मिलता है. शास्त्रों में मरणोपरांत पिंडदान की व्यवस्था की गई है. सर्वप्रथम शवयात्रा के अंतर्गत 6 पिंड दिए जाते हैं, जिनसे भूमि के अधिष्ठात्रदेवता की प्रसन्नता, तथा भूत पिशाचों द्वारा होने वाली बाधाओं का निराकरण आदि प्रयोजन सिद्ध होते हैं.

इसके साथ ही दशगात्र में दिए जाने वाले 10 पिंडों के द्वारा जीव को आतिवाहिक सूक्ष्म शरीर की प्राप्ति होती है, यह मृत व्यक्ति की महायात्रा के प्रारंभ की बात हुई. अब आगे उसे रास्ते के भोजन अन्न जल आदि की आवश्यकता पड़ती है. जो उत्तम षोडशी से दिए जाने वाले पिंडदान से उसे प्राप्त होता है, यदि सगे संबंधी पुत्र, पौत्र आदि ना दे तो भूख, प्यास से उसे वहां बहुत दुख होता है.

यह तो हुई श्राद्ध न करने से मृत प्राणी के कष्टों की कथा. श्राद्ध न करने वालों को भी पग पग पर कष्ट का सामना करना पड़ता है, मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे, संबंधियों का रक्त चूसने लगते हैं. साथ-साथ शाप भी देते हैं,

ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट ही कष्ट झेलना पड़ता है, उस परिवार में पुत्र नहीं उत्पन्न होता, कोई निरोग नहीं रहता, लंबी आयु नहीं होती, किसी तरह का कल्याण नहीं प्राप्त होता और न करने के बाद नर्क भी जाना पड़ता है. उपनिषद का वाक्य है कि देवता और पितरों के कार्यों में मनुष्य को कभी भी प्रमाद नहीं करना चाहिए. प्रमाद से प्रत्यवाय होता है.

बहुत लोगों को जिज्ञासा होती है कि पितरों को श्राद्ध की प्राप्ति कैसे होती है, जिज्ञासा स्वाभाविक है. श्राद्ध में दिए गए अन्न आदि सामग्रियां पितरों को कैसे मिलती है, क्योंकि विभिन्न कर्मों के अनुसार मृत्यु के बाद जीव को भिन्न-भिन्न गति प्राप्त होती है. कोई देवता बनता है, कोई पितृ बनता है, कोई मनुष्य बनता है, कोई प्रेत बनता है, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई चिनार का वृक्ष, कोई घास फूस, कोई तमाम सारे पक्षी, आदि श्राद्ध में दिए गए छोटे से पिंड से हाथी का पेट कैसे भर सकता है. इसी प्रकार चींटी इतने बड़े पिंड को कैसे खा सकती है. देवता अमृत से तृप्त होते हैं, पिंड से उन्हें कैसे तृप्ति मिलेगी.

इन प्रश्नों का शास्त्र में सुस्पष्ट उत्तर दिया गया है. नाम, गोत्र के सहारे विश्व देव एवं अग्निश्वात आदि दिव्य पितर हब्य कव्य को पितरों को प्राप्त करा देते हैं. यदि पिता देव योनि को प्राप्त हो गया हो तो दिया गया अन्य उसे वहां अमृत होकर प्राप्त हो जाता है. मनुष्य योनि में अन्न रूप में. पशु योनि में घास रूप में, नाग योनि में वायु रूप में. यक्षयोनि में पान रूप में. अन्य योनियों में भी उस श्राद्ध वस्तु को भोगजनक तृप्ति कर पदार्थों के रूप में प्राप्त होकर अवश्य तृप्त करती है

जिस प्रकार गौशाला में भूली गाय माता का बछड़ा किसी न किसी प्रकार अपनी मां को ढूंढ ही लेता है, उसी प्रकार मंत्र तत्तद वस्तु जात को प्राणी के पास किसी ने किसी प्रकार पहुंचा ही देता है. नाम, गोत्र, हृदय की श्रद्धा एवं उचित संकल्प पूर्वक दिए हुए पदार्थ को भक्ति पूर्वक उच्चारित मंत्र उनके पास पहुंचा देता है. जीव चाहे सैकड़ो योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है.

ब्राह्मण भोजन से भी श्राद्ध की पूर्तिः सामान्यतः श्राद्ध की प्रक्रिया पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोजन, और दान है. मृत्यु के बाद जो लोग देवलोक या पितृ लोक में पहुंचते हैं, वह मंत्रों के द्वारा बुलाए जाने पर उन लोकों से उसी क्षण श्राद्ध स्थान में आ जाते हैं और निमंत्रित ब्राह्मणों के माध्यम से भोजन कर लेते हैं, सूक्ष्म ग्राही होने के कारण ब्राह्मणों के शरीर में प्रवेश कर लेते हैं, भोजन के सूक्ष्म कणों से, उसकी सुगंध से उनका भोजन हो जाता है, वह तृप्त हो जाते हैं, वेद में बताया गया है. अथर्ववेद का कथन है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह पितरों को प्राप्त होता है,

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