रांची: साल 1999 में कारगिल युद्ध के समय भारत माता के लिए सैकड़ों जाबांजो ने अपनी जान की आहुति दी. इस युद्ध में रांची के पिठोरिया निवासी नागेश्वर महतो कि भी शहादत हो गई. कारगिल विजय दिवस के मौके पर जब शहीद नागेश्वर महतो का पार्थिव शरीर रांची लाया गया था तब भारत माता की जयकार से पूरी रांची गूंज उठी.
शहीद नागेश्वर महतो का रांची के पिथोरिया में आज भी वो मकान है जहां उनके पिता ने अपने जीवन की शुरुआत की. इस मकान में अक्सर नागेश्वर महतो आते और गांव में अपने बचपन के दोस्तों से मुलाकात करते. शहीद नागेश्वर महतो का जन्म कांके स्थित इंडियन वाटर लाइन में साल 1961 में हुआ. इनके पिता स्वर्गीय भुनेश्वर महतो एवं माता श्रीमती बुधनी देवी थे. परिवार में 5 भाई और एक बहन थी. भाइयों में यह चौथे स्थान पर थे. शहीद नागेश्वर महतो का पालन पोषण वाटर लाइन के क्वार्टर में ही हुआ.
शहीद नागेश्वर महतो बचपन से ही चंचल प्रवृत्ति के रहे. इनकी प्रारंभिक एजुकेशन कांके स्थित संत जेवियर स्कूल से हुई. साल 1979 में मैट्रिक परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद उन्होंने रांची में आईटीआई का कोर्स किया. तकनीकी शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही रांची में सेना की बहाली में इनका चयन हो गया. दिनांक 29.10.1980 को वो सेना में भर्ती हुए और देश की सेवा में लग गए.
सेना में भर्ती होने के बाद उन्हें ईएमई (EME) कोर्स के बेसिक प्रशिक्षण के लिए भोपाल भेजा गया. प्रशिक्षण खत्म होने के बाद इनका तबादला श्रीनगर हो गया. इसके बाद 1986 में इनका तबादला रांची के दीपाटोली में हुआ. नागेश्वर महतो ने 10 मई 1986 को अपने दांपत्य जीवन की शुरूआत संध्या देवी के साथ की. इसके बाद सन 1989 में उनका हैदराबाद तबादला हो गया. नागेश्वर महतो को फोर्स की तरफ से एचएमटी कोर्स के लिए बरौदा भी भेजा गया. कोर्स क्वालीफाई होने के बाद इन्हें एचएमटी की पदोन्नति देकर कलिंग भेज दिया गया.
कलिंग में भी नागेश्वर महतो ने अपने कर्तव्य को ईश्वर की पूजा के समान निभाया. इसके बाद 1996 में उनका तबादला 79 फील्ड राइट झांसी में हुआ. झांसी में पदोन्नति के साथ नागेश्वर महतो नायब सूबेदार बन गए. इस पदोन्नति के बाद नागेश्वर महतो बोफोर्स तोप के मेकेनिकल के रूप में चयनित हुए. फरवरी 1999 में इनको बोफोर्स टॉप एम्युनिशन ट्रायल के लिए राजस्थान भेजा गया, जिसमें विदेश के 3 सदस्य भी शामिल रहे. वहां उनकी कार्यकुशलता की विदेशी टीम ने बेहद तारीफ की. इसके बाद अप्रैल 1999 में उनका 108 मध्यम रेजिमेंट नौशेरा में तबादला हो गया.
इस दौरान भारत पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध शुरू हो गया, जिसमें इन्हें बोफोर्स तोप पर तैनात किया गया. युद्ध के दौरान लगातार हो रही फायरिंग के बाद बोफोर्स तोप में कुछ तकनीकी खराबी आ गई. दुश्मन पर हमला जारी रखने के लिए नागेश्वर महतो तोप को ठीक करने में जुटे थे. तभी 13 जून 1999 को दोपहर के वक्त दुश्मन के गोले का स्प्रिंटर जांबाज नागेश्वर के पूरे शरीर में समा गया. रविवार का दिन था और उस वक्त दोपहर के 3:00 बज रहे थे. रांची का यह सपूत भारत माता पर अपनी आहुति दे चुका था. उस वक्त फायरिंग रेंज में कैसा मंजर रहा होगा इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है.
कारगिल विजय दिवस की इस विशेष सीरीज में आपने शहीद नागेश्वर महतो की जन्मभूमि और उनके सेना में जाने से पहले की गाथा देखी. आने वाली सीरीज में ईटीवी भारत आपको बताएगा कि जांबाज नागेश्वर की शहादत से पिठोरिया में क्या बदलाव आया और किस हाल में है इस शहीद का परिवार.......