रांची: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने वर्ष 2025 के लिए जिन महान विभूतियों को 139 पद्म पुरस्कार प्रदान करने की मंजूरी दी है, उनमें एक नाम झारखंड के महाबीर नायक का भी है. रांची के हटिया के एचईसी विस्थापित नायम मोहल्ले के रहने वाले 82 वर्षीय नागपुरी लोक कलाकार महाबीर नायक को इस बात की तसल्ली और खुशी है. उम्र के इस पड़ाव में उनकी कला को सम्मान "पद्मश्री" के रूप में मिला है.
महाबीर नायक ने कहा कि कलाकारों की कला के सम्मान के साथ साथ सरकार को उनकी आर्थिक स्थिति में कैसे सुधार हो, इसके लिए भी सरकार को जरूर सोचना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से राज्य के कलाकारों को पेंशन देने की बात कही गयी थी लेकिन आज तक वह योजना धरातल पर नहीं उतरी.
भिनसरिया और अध रतिया के राजा के रूप में मिली पहचान
पद्मश्री सम्मान के लिए मनोनीत किये गए लोक कलाकार महाबीर नायक कहते हैं कि "कला" उनमें पिता-दादा से मिली है. दादा आनंद नायक और पिता खुद्दु नायक नागपुरी के बेहतरीन कलाकार रहे और वह प्रसिद्ध कवि घासी राम की कविताओं को गाते थे. वहीं से सुरों की समझ विकसित हुई. उन्हें याद नहीं है कि कितनी गीतों को उन्होंने गाया और कितनी गीत लिखे यह याद नहीं है. फिर भी करीब 2000 नागपुरी गीत गाने वाले महाबीर नायक ने 400 से अधिक शिष्ट नागपुरी गीत भी गा चुके है. पुराने कवियों-गीतकारों के 5000 से ज्यादा गीतों के संकलनकर्ता भी हैं.
जीविका चलाने के लिए HEC में की नौकरी
महाबीर नायक कहते हैं कि वह HEC में 38 वर्ष तक नौकरी भी की. उनको इस बात का दुख भी है कि आज कलाकारों पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है. पद्मश्री अवार्ड से पहले महाबीर नायक को पिछले वर्ष प्रतिष्ठित अमृत पुरस्कार भी मिल चुका है. पद्मश्री मिलने से उनके उत्साह का संचार जरूर हुआ है.
नागपुरी को झारखंड की राजभाषा घोषित करे सरकार
पद्मश्री पुरुस्कार के लिये मनोनीत नागपुरी लोक कलाकार महाबीर नायक कहते हैं कि "नागपुरी भाषा" में झारखंड की राजभाषा बनने की सभी योग्यताएं हैं. पुराने जमाने में यह राजा-रजवाड़े की भाषा भी थी, सरकार को चाहिए कि नागपुरी भाषा को राजभाषा का दर्जा दे. "नागपुरी गीतों के झोपा" नाम से महाबीर नायक की दो पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी है.
1992 में ही नागपुरी गीतों को ताइवान तक पहुंचाने वाले महाबीर नायक को देर से ही सही पद्मश्री मिलने की खुशी पूरे झारखंड को है तो इस बात का मलाल भी कि स्वर्णिम कला संस्कृति वाले राज्य में कलाकार की पूछ नहीं है. उन्हें इस बात का दर्द आज भी सताता है कि HEC के जिस विस्थापित मोहल्ले में वह रहते हैं किसी दिन उन्हें यहां से भी उजाड़ न दिया जाए. हेमंत सोरेन सरकार एक ऐसी नीति बनाये जिससे राज्य का मान सम्मान, देश दुनिया में बढ़ाने वाले कलाकारों को भी पुरस्कार के साथ साथ आर्थिक मदद की व्यवस्था हो.
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