रांची: कार्तिक मास की अमावस्या पर पूरे देश में काली पूजा हर्षोल्लास के साथ की जा रही है. पूजा का शुभ मुहूर्त रात 9:00 बजे से 3:00 बजे तक है.
हिंदू परंपरा के अनुरूप काली पूजा दो तरह से की जाती है. एक सामान्य रूप से तो वहीं, दूसरी तरफ श्मशान काली की पूजा की जाती है. दोनों पूजा में मां काली के स्वरूप और रंग अलग-अलग होते हैं. पूजा का विधि विधान भी बिल्कुल अलग होता है. सामान्य रूप से काली पूजा पंडालों के अलावा घरों में मां काली की मूर्ति को विराजमान कर पूजा की जाती है, जबकि श्मशान काली की पूजा घर में करना संभव नहीं है. इस पूजा में श्मशान घाट की मिट्टी से शिवलिंग बनाई जाती है और मां भगवती की आवाहन कर महा काली की पूजा की जाती है.
काली पूजा को लेकर राजधानी रांची में कई छोटे-बड़े भव्य और आकर्षक पंडाल बनाए गए हैं, जहां मां काली की मूर्ति को विराजमान कर पूरी विधि विधान से पूजा की जाएगी. वहीं, रांची के करमटोली स्थित तूफान क्लब काली पूजा समिति पिछले 35 सालों से मां काली की पूजा कर रही है. मात्र डेढ़ सौ रुपया से पूजा की शुरुआत की गई थी, जो अब समय के साथ भव्य रूप ले चुका है. यहां श्मशान काली की पूजा पूरी विधि विधान से की जाती है. डोरंडा स्थित मां काली मंदिर में मां भगवती का आवाहन कर पूजा की जाती है. पूजा के दौरान यहां बलि देने की प्रथा है. मां काली के प्रति लोगों में आस्था इस कदर बढ़ गई है, कि मन्नत पूरी होने पर लोग यहां बलि देते हैं.
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वैसे तो काली पूजा पूर्वी भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है. वहीं, राजधानी रांची में भी समय के साथ लोगों में मां काली के प्रति आस्था दिनों दिन बढ़ती जा रही है. यही वजह है कि शहर के विभिन्न जगहों में कई छोटे-बड़े भव्य और आकर्षक पंडाल भी बनाए जाने लगे हैं.