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बिखरता परिवार, तार-तार होते रिश्ते, बचाने में जुटी न्यायपालिका - संयुक्त परिवार

एक समय था कि संयुक्त परिवार बेहद आम हुआ करते थे, लेकिन बदलते वक्त के साथ अब न्यूक्लियर फैमिली आम हो गई है. लेकिन अब इन परिवारों में भी दरार आने लगी हैं. कई बार तो ऐसे भी मामले सामने आते हैं जहां शादी के दो महीने बाद ही मामला तलाक तक पहुंच जाता है.

shattered family in Jharkhand
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Published : Aug 9, 2023, 4:31 PM IST

Updated : Aug 9, 2023, 4:42 PM IST

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रांची: बदलते समय में संयुक्त परिवार के स्थान पर न्यूक्लियर फैमिली का कंसेप्ट तेजी से बढ़ा है. मगर इस न्यूक्लियर फैमिली में छोटे मोटे विवाद की वजह से संबंध तार-तार होने लगे हैं. इस तरह की घटना एक दो नहीं बल्कि हजारों में अदालतों में पहुंचने लगी हैं. स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाई जा सकती है कि जिस रांची सिविल कोर्ट में कभी पारिवारिक विवादों के निपटारे के लिए एक भी विशेष अदालत नहीं होती थी आज यहां एक नहीं तीन-तीन फैमिली कोर्ट हैं. जिसमें हर साल करीब दो हजार नये मामले दाखिल होते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे नव दंपत्ति तलाक के लिए अर्जी दे डालते हैं जिनकी शादी के दो महीने भी नहीं हुए हैं.

ये भी पढ़ें: एसडीएम ज्योति मौर्या के रास्ते पर मथुरा की गीता, सरकारी टीचर बनते ही पति से मांगने लगी तलाक

इसी तरह कुछ ऐसे भी केस सामने आते हैं जो लंबे समय तक लीव इन रिलेशन में रहने के बाद जब शादी के बंधन में बंधते हैं तो कुछ दिन के बाद ही उनकी दूरियां बढ़ने लगती हैं और मामला न्यायालय तक पहुंच जाता है. सबसे ज्यादा खामियाजा उन बच्चों को उठाना पड़ता है जिनके माता-पिता के बीच ऐसे हालात पैदा होते हैं. न्यायालय के आदेश पर ऐसे बच्चों से मिलनेवाले माता-पिता आये दिन आपको सिविल कोर्ट परिसर में देखने को मिलेंगे.

छोटे मोटे विवाद की वजह से बिखरते पारिवार को बचाने में झारखंड विधिक सेवा प्राधिकारजुटा हुआ है. हर जिले में बना मध्यस्थता केंद्र इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. फैमिली कोर्ट से आनेवाले मामले को सुलझाने में मध्यस्थ की अहम भूमिका होता है जो पति-पत्नी के विवादों को हर दिन सुलझाने में लगे रहते हैं. रांची जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव राकेश रंजन कहते हैं कि छोट-मोटे विवादों में लोग अदालत तक पहुंचते हैं, जहां से मध्यस्थता केन्द्र में कई बार कॉउंसिल के बाद परिवार को टूटने से बचाया जाता है.

इस तरह के केसों की संख्या में हाल के वर्षों में हुई अप्रत्याशित वृद्धि पर चिंता जताते हुए पिछले 13 वर्षों से मध्यस्थता का काम कर रही मनीषा और ममता कहती हैं कि पहले संयुक्त परिवार की अवधारणा समाप्त हुई और न्यूक्लियर फैमिली की शुरुआत हुई. अब उसमें भी दरार आनी शुरू हो गई हैं. इसके पीछे मुख्य वजह आज की युवा पीढ़ी का फैमिलियर ना होना है, जो यह नहीं समझते कि पति पत्नी एक समान हैं और दोनों अपनी अपनी जिम्मेदारी कैसे निभाएं. यह बातें बड़े बड़े आर्थिक रूप से संपन्न फैमिली से लेकर एक साधारण परिवार तक की हैं जिस वजह से परिवार आज पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ता जा रहा है.

बहरहाल बदलते समय के साथ पारिवारिक जीवन में हो रहे ऐसे बदलाव ने संबंधों के डोर को इतना कमजोर कर दिया है कि थोड़ी सी बात पर व्यक्ति अपने सभी रिश्तों को भुलाकर अलग जीवन जीने का फैसला ले लेता है जो वाकई में चिंता का विषय है.

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रांची: बदलते समय में संयुक्त परिवार के स्थान पर न्यूक्लियर फैमिली का कंसेप्ट तेजी से बढ़ा है. मगर इस न्यूक्लियर फैमिली में छोटे मोटे विवाद की वजह से संबंध तार-तार होने लगे हैं. इस तरह की घटना एक दो नहीं बल्कि हजारों में अदालतों में पहुंचने लगी हैं. स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाई जा सकती है कि जिस रांची सिविल कोर्ट में कभी पारिवारिक विवादों के निपटारे के लिए एक भी विशेष अदालत नहीं होती थी आज यहां एक नहीं तीन-तीन फैमिली कोर्ट हैं. जिसमें हर साल करीब दो हजार नये मामले दाखिल होते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे नव दंपत्ति तलाक के लिए अर्जी दे डालते हैं जिनकी शादी के दो महीने भी नहीं हुए हैं.

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इसी तरह कुछ ऐसे भी केस सामने आते हैं जो लंबे समय तक लीव इन रिलेशन में रहने के बाद जब शादी के बंधन में बंधते हैं तो कुछ दिन के बाद ही उनकी दूरियां बढ़ने लगती हैं और मामला न्यायालय तक पहुंच जाता है. सबसे ज्यादा खामियाजा उन बच्चों को उठाना पड़ता है जिनके माता-पिता के बीच ऐसे हालात पैदा होते हैं. न्यायालय के आदेश पर ऐसे बच्चों से मिलनेवाले माता-पिता आये दिन आपको सिविल कोर्ट परिसर में देखने को मिलेंगे.

छोटे मोटे विवाद की वजह से बिखरते पारिवार को बचाने में झारखंड विधिक सेवा प्राधिकारजुटा हुआ है. हर जिले में बना मध्यस्थता केंद्र इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. फैमिली कोर्ट से आनेवाले मामले को सुलझाने में मध्यस्थ की अहम भूमिका होता है जो पति-पत्नी के विवादों को हर दिन सुलझाने में लगे रहते हैं. रांची जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सचिव राकेश रंजन कहते हैं कि छोट-मोटे विवादों में लोग अदालत तक पहुंचते हैं, जहां से मध्यस्थता केन्द्र में कई बार कॉउंसिल के बाद परिवार को टूटने से बचाया जाता है.

इस तरह के केसों की संख्या में हाल के वर्षों में हुई अप्रत्याशित वृद्धि पर चिंता जताते हुए पिछले 13 वर्षों से मध्यस्थता का काम कर रही मनीषा और ममता कहती हैं कि पहले संयुक्त परिवार की अवधारणा समाप्त हुई और न्यूक्लियर फैमिली की शुरुआत हुई. अब उसमें भी दरार आनी शुरू हो गई हैं. इसके पीछे मुख्य वजह आज की युवा पीढ़ी का फैमिलियर ना होना है, जो यह नहीं समझते कि पति पत्नी एक समान हैं और दोनों अपनी अपनी जिम्मेदारी कैसे निभाएं. यह बातें बड़े बड़े आर्थिक रूप से संपन्न फैमिली से लेकर एक साधारण परिवार तक की हैं जिस वजह से परिवार आज पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ता जा रहा है.

बहरहाल बदलते समय के साथ पारिवारिक जीवन में हो रहे ऐसे बदलाव ने संबंधों के डोर को इतना कमजोर कर दिया है कि थोड़ी सी बात पर व्यक्ति अपने सभी रिश्तों को भुलाकर अलग जीवन जीने का फैसला ले लेता है जो वाकई में चिंता का विषय है.

Last Updated : Aug 9, 2023, 4:42 PM IST
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