रांची: झारखंड की प्रमुख नदियों में से एक स्वर्णरेखा नदी रांची के नगड़ी प्रखंड के रानीचुआं से निकलती है. सरकार ने इसे कई बार पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की. इसके अलावा यहां सुविधाएं बढ़ाने की बात भी हुई ताकि राज्य और राज्य के बाहर के लोग पठारी इलाके में नदी का उद्गम स्थल देख सकें लेकिन, इस क्षेत्र को आज भी विकास का इंतजार है.
क्या कहते हैं आरयू के भूगोल प्रोफेसर: रांची विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान के प्रोफेसर डॉ नितीश प्रियदर्शी (Geology Professor of Ranchi University) कहते हैं कि नगड़ी का वह इलाका जहां से स्वर्णरेखा नदी निकलती है, वहां के पठारी इलाकों से दो और नदी, कोयल और कारो निकलती है. वह पूरा इलाका लैटेराइट पठार का क्षेत्र है लेकिन, पिछले कुछ सालों से इस इलाके में कंस्ट्रक्शन और अन्य वजह से उद्गम क्षेत्र सिमटा है. नितीश प्रियदर्शी ने कहा कि रांची से सटे उद्गमस्थल को ईको टूरिज्म और रिलिजियस टूरिज्म के रूप में विकसित किया जा सकता है. नितीश प्रियदर्शी कहते हैं कि रांची विश्वविद्यालय के छात्र छात्राएं वहां शैक्षणिक कार्यों के लिए जाते हैं.
नदी उद्गमस्थल के पास के तालाब पर टूट गए हैं टाइल्स, सरकार का कोई ध्यान नहीं: पिस्का नगड़ी स्वर्णरेखा उद्गम स्थल रानीचुआं (Swarnarekha river origin place) के पास के तालाब के चारों ओर लगा टाइल्स तक टूटा हुआ है. इस तालाब तक जाने का भी रास्ता नहीं है. वहीं पास में ही कई चावल फैक्टरियां लग गयी है.
सरयू राय ने भी स्वर्णरेखा उद्गमस्थल को विकसित करने की मांग की है: निर्दलीय विधायक और पर्यावरणविद सरयू राय भी स्वर्णरेखा उद्गम स्थल को विकसित करने की मांग कई बार कर चुके हैं. हर साल उद्गमस्थल से वह पदयात्रा भी निकालते हैं, बावजूद इसके सरकार का ध्यान इस ऐतिहासिक नदी के उद्गमस्थल पर नहीं पड़ा है.
पांडवों से जुड़ी हैं कुछ मान्यताएं: स्वर्णरेखा नदी झारखंड से निकल कर ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बहती है और फिर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है. ऐसी मान्यता है कि पांडव भी यहां आए थे और कुछ दिनों तक यहां रुके थे. अगर इन मान्यताओं पर शोध हो तो इसे पौराणिक महत्व भी मिल सकता है और बड़ी संख्या में यह क्षेत्र पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है.